साली की शादी
साली की शादी
जिंदगी मेरी आज भी अधूरी है। बग़ैर किसी निश्चित मुकाम के... मगर दिल में एक ख़ुशी मिलती है जब मेरे द्वारा किसी का घर बस जाता है। किसी को किसी का जीवन भर के लिए साथ मिल जाता है। जी हाँ मैं अपने जीवन से कुछ पल चुराकर घर-जोड़े का काम कर लेता हूँ जिससे मेरे मन को तसल्ली मिलती है।
दादी हमें बचपन से यही सिखाती थी कि, किसी के कार्य में कभी कोई विघ्न नहीं डालना चाहिए, वह भी शादी के लिए खासकर। कन्या दान अपनी हो या अपने द्वारा किसी दूसरे की लड़की की शादी हो, कराने में सौ गुना पूण्य मिलता है।
ससुराल में आना-जाना काफी था। ससुर के भाई अपनी लड़की की शादी की चिंता से बहुत परेशान थे। इसे मेरा सौभाग्य समझो या मेरे द्वारा यह कार्य सम्पन्न होना था। हमने संकल्प किया कि साली की शादी कराकर दम लेंगे।
मेरे बड़े साढ़ू भाई चन्द्रकेश जी का साथ मिल गया और हम दोनों दो साल की कड़ी मेहनत करके समाज में घूमते रहे आखिरकार शादी के लिए वर मिल ही गया।
उन्नाव जनपद में एक बहुत ही सीधा साधा परिवार मिल गया। लड़का बेसिक स्कूल में अध्यापक था।
इसी तरह मैं अपने जीवन में तीन-चार शादी कर चुका हूं। इज्जत और सम्मान भरपूर मिलता है समाज में इस वजह से।
एक बात और बता दें हम अपने सुधी पाठकों को कि, यदि कोई भी नेक कार्य करो बुराई होना निश्चित है।
मगर किसी की परवाह किये बिना हम अपनी कार्यों को बख़ूबी अंजाम देना जानते है।
दो अजनबी दिलों को मिलाकर कुछ पुण्य कमा लेता हूँ जिससे मेरी ज़िंदगी आसान हो जाती है जीने में।
साली तो अपनी थी आज भी वह मेरा एहसान मानकर मेरी हर सम्भव मदद करती है।
