राष्ट्रवाद व उसकी प्रगति
राष्ट्रवाद व उसकी प्रगति
एक राजा था वह बहुत ईमानदार , कर्मठ व प्रजावत्सल शासक था। उसे हमेशा अपने राजा की उन्नति व तरक्की की चिन्ता रहती। वह चाहता था कि मेरे बाद भी मेरे राज्य का सतत् विकास व उन्नति होती रहे इसी सोच में वह लगा रहता था। उसने एक घोषणा करवाई मेरे तीन सवालों का जो भी उत्तर देगा मैं उसको अपनी राजकुमारी ब्याह दूंगा। राजा का पहला सवाल- किसी भी राजा की सतत् उन्नति कैसे संभव है ? राजा का दूसरा सवाल- भगवान की सेवा से बढ़कर और क्या हो सकता। राजा का तीसरा सवाल- राज्य / राष्ट्र पर बोझा कौन है ? उपरोक्त प्रश्नों को सुनकर विद्वान अपने - अपने मत पुष्ठ करके राजा को बारी - बारी से आकर उनका उत्तर सुझाने लगे पर राजा को किसी का उत्तर पसंद नहीं आया।
पहले प्रश्न के उत्तर में निम्न सुझाव आये :
( i ) किसी ने कहा जनता पर अधिक टैक्स लगाकर राज्य का खजाना मजबूत रखा जाये।
( ii ) किसी ने कहा अधिक सड़कें बनवाई जायें।
( iii ) किसी ने कहा कमजोर राज्यों पर आक्रमण कर उन्हें गुलाम बनाया जाए।
( iv ) किसी ने कहा राज्य के अनावश्यक खर्चो में कटौती की जाये।
( v ) तो किसी ने कहा फिजूलखर्ची अनावश्यक राज्य का खजाना नहीं लुटाया जाये।
दूसरे प्रश्न के उत्तर में निम्न सुझाव आये :
( 1 ) भगवान की सेवा से बढ़कर माँ - बाप की सेवा है।
( 2 ) भगवान की सेवा से बढ़कर परिवार का पालन - पोषण है।
( 3 ) भगवान की सेवा से बढ़कर दीनों की सहायता करना है।
( 4 ) भगवान की सेवा से बढ़कर , विप्रो का सम्मान , गाय की सेवा , कन्याओं की सेवा इत्यादि।
( 5 ) तो किसी ने कहा सदाव्रत, बावड़ी, तालाब , पेड़ लगवाना , कथा - कीर्तन करवाना , भण्डारा इत्यादि।
तीसरे प्रश्न के उत्तर में निम्न सुझाव आये :
( 1 ) बीमार व्यक्ति
( 2 ) वृद्ध व्यक्ति
( 3 ) नशेबाजी
( 4 ) चोर / डाकू / हत्यारे
( 5 ) अप्रासंगिक पुरानी योजनायें जिनका वर्तमान में कोई औचित्य नहीं है। इन उत्तरों के अलावा भी कई अन्य समाधान भी सुझाये गए। परन्तु राजा किन्हीं भी प्रश्नों के उत्तरों से संतुष्ट नहीं हुआ। एक व्यक्ति आया वह बड़ी ही विनम्रता से राजा के सम्मुख अपनी बात रखने को उत्सुक हुआ। उसने कहा महाराज
पहले प्रश्न का उत्तर मेरे अनुसार यह है कि- राज्य के प्रत्येक नागरिक जिनका जो भी दायित्व है उनका कर्मठता व ईमानदारी से काम करें अपना विकास तो राष्ट्र का विकास ऐसा नहीं हो कि एक दिन कमा लिया चार दिन बैठकर खा लिया सभी अपनी - अपनी जिम्मेदारी समझें तो राष्ट्र की उन्नति दिन - दूनी रात चौगुनी होना संभव है।
दूसरे प्रश्न का उत्तर मेरे अनुसार यह है कि भगवान की सेवा से बढ़कर राष्ट्र की सेवा है यथा राज्य की संपत्ति की रक्षा करना , उसकी देखभाल करना व उसका सदुपयोग करना।
तीसरे प्रश्न का उत्तर मेरे अनुसार यह है कि- राज्य पर बोझ अकर्मण्य व्यक्ति है जो बिना कुछ किये राजा से अपने लिए मुफ्त में राशन पानी व ऐशो आराम की चीजों की अभिलाषा रखते हैं। राजा को उस नवयुवक के सभी प्रश्न के उत्तर भा गये राजा बहुत खुश हुआ उसने अपने वादे के अनुसार उस नवयुवक से अपनी राजकुमारी का ब्याह कर दिया व उस नवयुवक को राजा बनाकर निश्चिन्त होकर तपस्या के लिए निकल पड़ा।
इस कहानी से हमें निम्न शिक्षायें मिलती हैं ( 1 ) राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
( 2 ) हमें राष्ट्र की संपत्ति की रक्षा करना चाहिए।
( 3 ) हमें अपना कार्य मेहनत व परिश्रम से करना चाहिए।