राधा कृष्ण
राधा कृष्ण
राधा की बात हो और कृष्ण का ज़िक्र भी नहीं हो, भला यह तो कैसे सम्भव हैं। तो चलो आज राधा कृष्ण के प्रेम की कहानी सुनाता हूँ, राधा कृष्ण दोनों को प्रेम में एक दूसरे के बगैर अधूरा माना जाता हैं।
सभी भक्त कृष्ण को राधा कृष्ण के नाम से पुकारने लगे, यह दोनों नाम सिर्फ़ एक दूसरे के लिए बने हैं। और इन्हें अलग कभी नहीं किया जा सकता हैं। आईये हम आगे बढ़ते हैं, राधा कृष्ण के प्रेम की एक आलौकिक कथा.....
जब मामा कंस ने भगवान "श्रीकृष्ण" और बलराम को आमंत्रित किया था, और तब ही पहली बार भगवान "श्रीकृष्ण" और राधा दोनों एक दूसरे से अलग हुए थे।
पर विधि विधान कुछ और ही था, राधारानी फिर एक बार "श्रीकृष्ण" से मिलने द्वारिका नगरी जा पहुँची थी, और जब द्वारिका में कृष्ण ने राधा को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुए, संकेतों की भाषा में दोनों एक दूसरे को निहारते हुए काफी देर तक बात करते रहें,
यह शास्त्रों में भी वर्णित किया गया हैं, कि राधा जी को द्वारिका कान्हा की नगरी में कोई पहचानता भी नहीं था।
तभी राधारानी के अनुरोधों पर कृष्ण ने उन्हें महल में बुलाया और राधारानी को देविका के रूप में नियुक्त किया, फिर राधा दिनभर अपने महल में रहती, और महल से जुड़े हुए सभी कार्यों को काफ़ी बारीकी से देखती थी,
और फिर सही मौक़ा मिलने पर राधा कृष्ण के दर्शन कर लेती, लेकिन सांस्कारिक जीवन से उनकी विदाई की बेला काफ़ी नज़दीक आई तभी राधा कृष्ण से दूर जाने के लिए मजबूर हो गयीं।
तभी एक शाम राधा उस महल से चुपके से निकल आईं, और ना सोचें समझें जाने कहाँ किस ओर चल पड़ी, राधा को नहीं पता था, कि राधा कहाँ जा रही हैं, पर भगवान "श्रीकृष्ण" जानते थे,
तभी धीरे-धीरे समय काफ़ी गुज़रता चला गया, और राधारानी बिल्कुल अकेली पड़ गईं थी, और तभी राधारानी को भगवान "श्रीकृष्ण" की आवश्यकता पड़ी वह किसी भी तरह से भगवान "श्रीकृष्ण" को देखना चाहती थी।
तभी राधा कि यह इच्छा जानते ही भगवान "श्रीकृष्ण" राधा के सामने प्रगट हो गए।
भगवान "श्रीकृष्ण" को राधारानी अपने सामने देखकर अति प्रसन्न हो गईं, परन्तु समय उनके काफ़ी निकट था, जब राधा अपने प्राण त्याग कर सारी सृष्टि को अलविदा कहना चाहती थी, भगवान "श्रीकृष्ण" ने राधा से कहाँ वह उनसे कुछ माँगे, लेकिन राधा ने उन्हें मना कर दिया,
तभी भगवान "श्रीकृष्ण" ने दोबारा अनुरोध किया और राधा ने कहा भगवान "श्रीकृष्ण" को वह आखरी बार भगवान "श्रीकृष्ण" को बाँसुरी बजाते हुए अंतिम बार उन्हें देखना चाहती हैं।
तभी भगवान "श्रीकृष्ण" ने बाँसुरी निकाली और बहुत सुंदर मधुर मीठी सुरीली धुन बजाने लगें। तभी बाँसुरी की धुन सुनते सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
राधा के जाते ही भगवान "श्रीकृष्ण" बहुत दुःखी हुए और उन्होंने अपनी बाँसुरी तोड़ कर काफ़ी दूर फेंक दी, जिस जगह पर राधा ने कृष्ण का अपने अंतिम समय तक इंतज़ार किया।