पुरानी खिड़कियां
पुरानी खिड़कियां
कभी कभी पुरानी वस्तुओं से मोह हो जाता है। वैसे भी परिवर्तन इतनी जल्दी स्वीकार नहीं होता है। पुरानी वस्तुओं की आदत हो जाती है। उनके बिना सब अधूरा लगता है। यह तो नयी पीढी है जिसे पुराना कुछ भी पसंद नहीं। सब कुछ बदलना चाहती है। पर जब बदलाव बहुत जरूरी हो तो भी बुजुर्गों का जिद करना ठीक नहीं है। अब शांताराम जी को देखो। आयु कुछ साठ से थोड़ा ही कम होगी। उनकी पत्नी राधा भी पचपन के आसपास की होंगीं। दोनों बेटे शादीशुदा हैं। बड़ा सुधाकर एक प्रतिष्ठित कंपनी में इंजीनियर है।उसकी पत्नी रत्ना एक गृहणी है और बेटी साधना कक्षा आठ की छात्रा है। दूसरा बेटा रोहन की शादी हूए भी चार साल हो चुके थे। उसकी पत्नी भी उसी के साथ काम करती है। सच्ची बात तो यह है कि रोहन ने प्रिया से अपनी मर्जी से शादी की थी। आज के बच्चों की बुद्धि का क्या। बड़ों के विचार अनुभव से तपकर बनते हैं। बच्चे हमेशा जज्बाती होते हैं। पर कर ही क्या सकते हैं।
एक ही घर में दो काल रह रहे थे। एक तरफ शांताराम व राधा प्राचीन काल को लिये थे। वहीं रोहन और प्रिया ज्यादा ही आधुनिक दिखते। उनकी आधुनिकता केवल व्यवहार में ही नहीं अपितु पहनावे में भी दिख जाती। शांताराम और राधा को यह बात ज्यादा खलती। बहू को कुछ तो सोचना चाहिये। आखिर अब वह बहू है। रोहन को भी इस बात की कोई चिंता नहीं है। पर यह क्या? अब तो बड़ी भी सूट पहनने लगी है। पर्दा करना तो कबका बंद हो गया है।खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है। पर शांताराम और राधा जी पर कोई अंतर न आया।
घर में सारी खिड़कियां बदल चुकी थीं। पर शांताराम जी ने अपने कमरे की खिडकियां नहीं बदलबाईं। काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में खिड़कियां अक्सर यदि खुल जायें तो बंद न होतीं और बंद खिडकियों को खोलने पर बहुत मेहनत लगती। कभी बंद खिडकियां रात में यकायक खुल जातीं। भड़भड़ की आवाज अक्सर यहीं कहतीं कि भले आदमी.. ।अब तो मुझे आजाद करो। अब नयों को मौका दो। नये नयी आवश्यकता पर खरे उतरेंगे। पर शांताराम जी को नये शव्द से ही नफरत थी। पर शायद वह खुद भूल जाते कि नये की आलोचना करते करते वह खुद की भी आलोचना कर रहे हैं। आखिर बच्चों को संस्कार तो उन्हीं ने दिये हैं। सही बात यह थी कि बच्चों में शांताराम व राधा जी के संस्कार कूट कूट कर भरे थे। अंतर बस इतना था कि वे पुरानों के स्नेह के साथ साथ परिवर्तन को भी स्वीकार करते थे। परिवर्तन तो संसार का नियम है। कालचक्र को बेबजह रोकना उन्हें सही नहीं लगता।
रविवार के दिन घर में शांताराम, राधा और प्रिया ही थे। रत्ना के मायके में एक विवाह का आयोजन था। सुधाकर, रत्ना और साधना वहीं गये थे। शांताराम जी की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। बुढापे में दिक्कतें तो लगी रहती हैं। पर रोहन को भी आफिस से जरूरी काम आ गया । अचानक शांताराम जी घर में ही फिसल गये। उठने की कोशिश की पर उठ नहीं पा रहे थे। वैसे प्रिया को आवाज लगा सकते थे। पर एक तो बहू उन्हें उठाने में मदद करे, यह उचित नहीं लगा। दूसरा प्रिया के लिये उनके मन में ज्यादा स्नेह भी नहीं था।
" यह क्या पापा जी। आपने मुझे नहीं बुलाया।"
मालूम नहीं प्रिया ने शांताराम जी के गिरने की आवाज सुन ली या वह वैसे ही आ गयी। पर उसने तुरंत शांताराम जी को उठाकर बैड पर लिटा दिया। नजदीक बैठ चोट को सहलाने लगी। चोट ज्यादा नहीं थी। पर बुढापे के शरीर में जरा सी चोट बहुत लगती है। प्रिया ने चोट पर मलहम लगाया। थोड़ा आराम मिला। पेन किलर लेकर सो गये।
आज सपने में शांताराम को अपनी बेटी पार्वती दिखी।पार्वती बचपन में वह बहुत चंचल थी। उसकी चंचलता पर शांताराम हसा करते थे। शांताराम चोट लगने का नाटक करते और पार्वती उन्हें मलहम लगाती। शांताराम हसकर पूछते - "एक दिन तो तू ससुराल चली जायेगी। फिर कभी मुझे चोट लगी तो मलहम कौन लगायेगा।" पार्वती भी बोलती - " पापा। मैं बहुत रूप बनाना जानती हूं। जादूगरनी हूं। एक रूप से ससुराल चली जाऊंगी तो दूसरे रूप से तुम्हारे पास रहूंगी। मैं फिर भी आपको मलहम लगाऊंगी।" फिर स्वप्न आगे बढता। पार्वती ससुराल जा रही है। तभी दूसरा रूप रख रही है। कुछ तिलस्मी कहानियों की तरह। शांताराम पार्वती का दूसरा रूप चाहकर भी देख नहीं पाते। तभी आंख खुल जाती है। राधा उनके नजदीक बैठी हैं।
" राधा। आज कुछ याद आया। "
" याद आया। वही देख रही थी। पार्वती की तरह आपका ध्यान प्रिया रख रही थी। नहीं... । सचमुच हम गलत थे आज तक। बहू भी बेटी ही है। फिर समय के साथ सब बदलता है। कुछ बदलाव स्वीकार करना गलत भी नहीं है। पुरानी बातें किसी समय कितनी भी सही रहीं हों, आज बदलाव चाहती हैं।"
" सही कह रही हो राधा। अब तो यह पुरानी खिङकी भी हवा रोक नहीं पाती। खिङकी में भी बदलाव जरूरी है और हमारे मनों में भी। "
दूसरे दिन शांताराम जी ने अपने कमरे की खिड़की बदलवा दीं। पुरानी खिड़की की जगह नयी खिड़की लगी थी। शांताराम और राधा ने कुछ नहीं कहा पर आज प्रिया को पहली बार लगा कि सास और ससुर ने उन्हें स्वीकार कर लिया है।
