पतंग
पतंग
वासु को बचपन से ही पतंग का बहुत शौक था, अक्सर घर में डांट पड़ती सारा दिन छत पर पतंग पतंग उड़ाना और कोई काम नहीं, परीक्षा में भी पतंग लिख देना। अब इस उम्र में उसको हमेशा तो समय नहीं मिलता लेकिन मकर संक्रांति वाले दिन वह सारा दिन इसी में लगा रहता है। ऑफिस में भी सहकर्मी चर्चा करते है कि अब मांझा कांच चढ़ा हुआ आता है, हर साल न जाने कितने पक्षी मर जाते हैं और न जाने कितने लोग घायल होते हैं। बाइक से जाते लोगों की कभी नाक तो कभी गर्दन कट जाती है। सूरत और बड़ौदा शहर में ही ये संख्या सैकड़ों पार कर जाती है।
"जागरूक नागरिक होने के नाते इस बात पर गौर करना चाहिए हम सब को कांच वाला मांझा नहीं उपयोग करना चाहिए, एक प्रण करें इस बार सुरक्षित उत्तरायण मनाएंगे और कांच वाला धागा प्रयोग नहीं करेंगे।" अशोक सब को समझाते हुए बोला।
वासु से रहा नहीं गया वह गुस्से में बोला, "यार यह सब फालतू बातें मत करो अगर पेंच न काटे तो पतंग का मज़ा नही आता, रही बात लोगों की तो ध्यान से चले तो नहीं होंगे घायल।"
"आज तो मजा ही आ गया अंधेरा होते-होते उनतालीस तो काट ही लूँगा।" वासु संक्रांति के दिन बड़े उत्साह में पतंग उड़ाते हुए नीलेश से बोला।
"हाँ-हाँ क्यों नहीं भाई! वैसे मेरे भी दस तो हो ही जायेंगे क्योंकि मेरा मांझा दूसरा है।" नीलेश बोला।
"अरे सुनो! जल्दी नीचे आओ।" वासु की पत्नी छाया की घबराई सी आवाज नीचे घर से आई।
"अभी नहीं आ सकता तुम आ के बोलो।" वासु चिल्लाया।
"हॉस्पिटल से फोन आया है, पार्थ के गर्दन में पतंग के मांझा से गहरा कट लग गया है।" वो बिचारा तो कोचिंग जा रहा था, छाया रोते हुए बोली।
"हे भगवान!!! पता नहीं क्यों उड़ाते है लोग ऐसे पतंग; चलो जल्दी अस्पताल चलते है।" कह के वासु तेजी से अस्पताल की और भाग चला।