Shubhra Varshney

Children Stories

5.0  

Shubhra Varshney

Children Stories

प्रतिष्ठा

प्रतिष्ठा

2 mins
339


वैभवता व प्रतिष्ठा का संगम स्थल 'दयाल विला' विधायक सर्वेश दयाल का दंभ सूचक था ।


पूर्णता वातानुकूलित भवन बाहर की प्रचंड गर्मी से अप्रभावित परंतु आंतरिक रोष व विरोध से उपजे ताप को कम करने में असमर्थ था।

उदास स्वर में विवेक ने पूछा," पिताजी यही आपका अंतिम निर्णय हैं?"


फाइलों में नजरे गड़ाए हुए ही सर्वेश दयाल ने ऊंचे स्वर में कहा, "हां! बहू को सोनोग्राफी जांच करानी ही होगी।"


"पर पिताजी यह अनैतिक व गैरकानूनी है आप से बेहतर कौन समझ सकता है। उस पर यह हमारी प्रथम संतान है।" थोड़ा साहस एकत्रित कर विवेक ने पुनः अपनी बात रखी।


" तुम्हारी प्रथम संतान पुत्र हो तभी तो हमारी प्रतिष्ठा बनी रहेगी।" सर्वेश दयाल ने निर्णायक स्वर में कहा," कल बहू को लेकर डॉक्टर कपूर के क्लीनिक पर पहुंच जाना मेरी उनसे बात हो गई है।"


कक्ष का पर्दा हिला।

विवेक ने पर्दे की ओट में छुपी अपनी पत्नी का मुरझाया चेहरा देखा।

पर पिताजी को अपनी ओर क्रोधित नजरों से देखते हुए देख विवेक ने अपनी नजरें झुका ली।


पिता पर पूर्णता आश्रित विवेक विरोध की स्थिति में नहीं था। उसकी मां सीता देवी अपने पति की ही दर्पण प्रतिबिंब थी और आधुनिक विचारों वाली उसकी पत्नी दिव्या पारंपरिक जीवन जीने को बाध्य थी।


तभी कक्ष में दयाल साहब के सलाहकार माथुर साहब का प्रवेश हुआ।


" कहिए माथुर जी, आज शाम की सभा के लिए मेरा भाषण तैयार है?"

सर्वेश दयाल के पूछने पर माथुर जी ने एक कागज का पन्ना बढ़ाते हुए कहा, "यह रहा कृपया आप एक बार बोलने का अभ्यास कर लीजिए।"

कहने के साथ माथुर साहब कुर्सी खींचते हुए बैठ गए।


सर्वेश दयाल ने पढ़ना शुरू किया, "मेरे प्रिय साथियों आज हम सब यहाँ बढ़ते लिंगानुपात की समस्या को हल करने के कारागार उपाय ढूंढने को एकत्रित हुए हैं।"


आगे पढ़ने पर बोलते हुए सर्वेश दयाल की जीभ लड़खड़ाने लगी। आँखें लज्जा से नीची हो गई पन्ना छूट गया।


पर्दा अब बहुत जोरों से हिल रहा था।


Rate this content
Log in