परिवारवाद और सीखना
परिवारवाद और सीखना
प्रिय डायरी,
लाकडाउन का समय चल रहा है, और सभी अपने घर में कैद हैं। सभी परिवार के सदस्य इकट्ठे हो रहे हैं मिलजुल के कार्य कर रहे है। हम लोग फिर अर्थवाद से परिवारवाद पर आ गये हैं।
लाकडाउन की अच्छाइयां भी हैं जो सामने आ रही हैं। हम वही जीवन जीने लगे हैं जो वर्षों पहले हम जीते थे और आज यह व्यक्तव्य 'सादा जीवन, उच्च विचार' सही प्रतीत हो रहा है। फिर से हमारा खाना-पीना, रहना साधारण हो गया है।
लाकडाउन में आपसी सहयोग, प्रेम बड़ा है और यह भी सभी ने महसूस किया है कि धन-सम्पत्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है जीवन। धन-दौलत इकट्ठी कर ली और अचानक ने मृत्यु या महामारी हो जाए तो यह धन-दौलत भी पड़ी की पड़ी रह जाती है।
लाकडाउन में कहीं कोने में छुपी आपके अंदर का कलाकार बाहर निकल कर आया है। कई बरसों से रखे कूची-कलम निकल आये हैं। लोग अपनी प्रतिभा को बाहर ला रहे हैं किसी के अंदर का कलाकार जागा है तो कोई पाक-कला में हाथ आजमा रहा है। कोई लेखन की क्षमता बढ़ा रहा है तो नृत्य-संगीत में अपने हुनर को बाहर निकाल रहा है। काम-जिम्मेदारी के कारण समय के अभाव में अपनी हाबी को अब समय दे रहे हैं।
महिलाएं अपने आप को नये नये चैलेंज स्वीकार करने में दे रही हैं चाहें साड़ी चैलेंज हो, मदर डेयर चैलेंज या नो-मेकअप चैलेंज उसमें व्यस्त रख रही हैं।इसके अलावा इस समय सोशल मीडिया में यह भी देखने को आया है कि महिलाऐं गोलगप्पे बनाने में हाथ आजमा रही हैं।
लाकडाउन कुछ दिन में समाप्त हो जायेगा पर एक बात तो हम मनुष्यों को सिखा जायेगा कि परिवार से बड़ा कुछ नहीं।