प्रेम कहानी..
प्रेम कहानी..
कहानी किसकी बनती है..... जो इतिहास रच दे या अपूर्ण हो... कहानी किसे कहेंगे, लैला मजनू, रोमियो जूलियट आदि आदि आदि.. इतिहास में भी कई प्रेम कहानियां बनी.. हम तो समझ ही नहीं पाए कि प्रेम कहानी बनती कैसी है..
प्रेम कहानी में एक लड़का होता है, एक लड़की होती है..
कभी दोनों हँसते हैं कभी दोनों रोते हैं..
या....
तेरी मेरी प्रेम कहानी किताबों में किताबों में..
किताबों में भी न मिलेगी..
कितनी प्रेम कहानी पढ़े.. किसी ने खुद की लिखी किसी ने दूसरों की या किसी ने ऐतिहासिक किसी ने पौराणिक...
अजीब है न प्रेम पर लिखना.. या तो अनन्त या इतना सूक्ष्म की नजर न आए,
प्रेम..
उफ्फ, सुनकर या पढ़कर ही आँखों के सामने एक छवि बन जाती है.. और जब वो साकार होकर प्रत्यक्ष हो तो सारी दुनिया में बस एक वही नजर आता है.. उस से परे कुछ नहीं..
वो मिला, प्रेम हुआ, सपने देखे और टूट गए, और बन गई कहानी..
फिर एक बार वो मिला प्रेम की भूख जो दबी छुपी थी फिर जाग उठी,, फिर वही ख्वाब ख्याल हँसना रोना मिलन जुदाई... क्या ये भी कहानी बनेगी???????
जितना जाना जितना समझा, शायद कहानी अपूर्णता से ही जन्म लेती है......
प्रेम पर लिखना हमेशा पसन्द रहा है.. जिसे खो दिया या जिसे, शायद.....पाया या नहीं..... क्या पता... उसके लिए लिखना,,, पर लिखना अच्छा लगा..
जब जब प्रेम कहानी लिखी अपूर्ण ही रही..
तो फिर ये लिखा जाए.....
हमारी अधूरी कहानी....
