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L. N. Jabadolia

Others

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L. N. Jabadolia

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पोस्टर जगत

पोस्टर जगत

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जैसे ही मै जयपुर की एक नामी सड़क से गुजरा , देखा कि हर चौराहे पर नेताजी के पोस्टर ही पोस्टर लगे हुए हैं। कुछ मजबूती से लगे थे, कुछ फटे हुए तो कुछ के ऊपर फिर कोई दूसरा पोस्टर, कुछ आधे लटके पड़े जो कि कई बार हादसे के कारण भी बन जाते हैं। । आज कल व्हाट्सप्प फेसबूकिया दुनिया के साथ साथ ,पोस्टर की भी दुनिया चल रही है , आपको हर जगह कोई न कोई पोस्टर मिल ही जायेगा, चाहे नेताजी का जन्मदिन हो या पुण्य तिथि, चाहे कोई त्यौहार हो या भजन कीर्तन , भंडारा , पदयात्रा या अन्य कोई ( वैसे महीने में कोई न कोई एक दो त्यौहार या फिर अन्य मौका आ ही जाता है और नेजाजी के पोस्टर तैयार) । ऐसे लगता है जैसे नेताजी ने एक साल का प्लान बना दिया हो, यहाँ एक बात और देखने को मिलती है, पोस्टर में नेताजी के साथ साथ नीचे स्थानीय नेताओं के भी फोटो दिखती है, और उन पर कुछ पद (वैसे स्वार्थवंस बहुत सारे पद निकल ही जाते है) या कुछ नहीं तो समाजसेवी, फलाना क्षेत्र आदि लिखकर ऐसे हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं जैसे मानो ये ही असलियत में नेताजी हों। हो सकता है ये उनका प्रसिद्धि पाने का तरीका हो। कभी कभार तो बड़े नेताजी को ही पता नहीं होता कि उसका पोस्टर किसी ने लगा दिया और कहाँ लगा दिया, क्या लिख के लगा दिया, किस हालत में लगा दिया । पोस्टर में एक महीना तक जन्मदिन मनता रहता है। कहा जाये तो ये सटीक ही होगा “नेता रीत सदा चल आई , प्राण जांय पर पोस्टर न हटई, वैसे भी आजकल एडवरटिजमेंट की दुनिया है , बिना विज्ञापन कोई सामान बिकता ही नहीं, और उपभोक्ता भी विज्ञापन देखकर ही उत्पाद खरीदते हैं चाहे बड़े हो या बच्चे। लेकिन विज्ञापन हमेशा वास्तविकता से कहीं छद्म दिखावे मात्र होता है ऐसे बहुत उदाहरण मिलेंगे , बड़े बड़े लुभावित दावे झूंठे साबित होते है जो कि विज्ञापन में दावे किये जाते हैं । ऐसे ही विज्ञापन राजनीति में भी चलन में आ गया है, पोस्टर से ही नेताजी का कॉलोनीवासियों से मिलान हो जाता है, एक मुस्कुराता हुआ चेहरा मानों हमसे अपील कर रहा हो कि मेरा एक पोस्टर और लगवा दो, भले ही उस मुस्कराते चेहरे के नीचे कचरे का ढेर लगा हो और पोस्टर देखते हुए गाय कचरे को चबा चबा के खा रही हो और कह रही हो कि मुझे भी मेरा हक़ दिलवा दो। भले ही वो पोस्टर एकतरफा हो लेकिन इसमें फायदा नेताजी को जरूर होता है। कॉलोनीवासियों को तो वो ही टूटी हुई सड़क, 10 दिन पहले की बारिश के पानी से भरे हुए गड्डे, मंडराते आवारा पशु आदि से ही पाला पड़ेगा । शहर को गन्दा करने पर नगर निगम का नियम भी है, पोस्टर लगाने से पहले इजाजत भी लेनी पड़ती है, विज्ञापन पोस्टर के नगर निगम से जगह सुनिश्चित की हुई है जो की आदेय (Chargeable) है ।, लेकिन वो केवल कागजी लिखावट / कार्यवाही तक ही सिमित है कभी कभार तो ऐसे प्रतीत होता है जिस प्रकार महापुरषों के विचारों को केवल पोस्टर/चित्र तक सिमित कर दिया , वैसे ही सरकार की योजनाओ को भी पोस्टर तक ही सिमित कर दिआजकल गली गली में नेता पैदा हो रहे हैं , और नेतागिरी में ही फ्यूचर बढ़िया लगता है।आजकल ये ही जुमला चल रहा है , अपने से बड़े नेताजी को शायद यही पूछते रहते कि नेताजी इस बार पोस्टर में आपकी कौन सी फोटो लगाऊं, मेरी फोटो भी बगल में लगा दूं क्या, इससे नेताजी का खर्च बच जायेगा और छोटे नेता को विज्ञापन का बहाना । बस फिर कॉलोनी में इतराता फिरेगा कि मेरी बड़े नेता से जान पहचान है, चाहे वो दसवीं पास भी न हो लेकिन ज्ञान आपको एम ए, बी ए से भी ज्यादा देने लगेगा । स्थानीय राजनीति में पढ़े लिखे लोग कम ही दिलचस्पी लेते हैं शायद उनको क्षेत्रमिति का अनुभव नहीं होता है या फिर वो उसके योग्य नहीं है । ऐसे ही एक दिन मेरा जानकर पढ़ा लिखा नया-नया बन्दा राजनीति ज्वाइन करने आया तो नेता जी ने पूछा - 'तुम्हे क्षेत्रमिति आती है।' लड़का - 'नहीं तो , लेकिन क्षेत्रमिति का राजनीति से कैसा सम्बन्ध।' नेता - 'बच्चे ! क्षेत्रमिति मतलब पोस्टर की साइज, कैलकुलेशन, कैसे लगाना है, कब लगाना है कितना बड़ा लगाना है वगैरह वगैरह ।' लड़का - ' पोस्टर , ये क्या होता है ? 'घर जाओ बेटा, तुम नेता बनने के काबिल ही नहीं हो क्योंकि तुम्हारा फाउंडेशन बहुत ज्यादा वीक है। जिस प्रकार आई आई टी, वगैरह में पास होने के लिए फिजिक्स में पकड़ होनी चाहिए उसी प्रकार नेतागीरी में टॉप करने के लिए पोस्टर का ज्ञान जरुरी है ' - नेता ने पोस्टर की प्रशंसा में बात कह डाली और फिर एक अधेड़ सा लड़का, नेताजी का एक बड़ा सा पोस्टर लिए आया और कॉलोनी के नाम के ऊपर, पहले से टके हुए पोस्टर पर, अपने नाम के साथ कॉलोनी में लगा दिया और उस पर नीचे लिखा था “आपका प्यारा जन सेवक, फलाना क्षेत्र…”।


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