पिकनिक
पिकनिक
बात 1976 की है। मैं शासकीय महाविद्यालय, दुर्ग (छत्तीसगढ़)में एम ए (पूर्व)हिन्दी साहित्य में अध्ययनरत था। उस समय मैं छात्र संघ का महासचिव और हिन्दी साहित्य समिति का अध्यक्ष भी था।
समिति ने प्रस्ताव पारित किया कि सिरपुर जिला-महासमुंद (छत्तीसगढ़)में ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्व का स्थान, सिरपुर में विद्यार्थी और 2-3 प्राध्यापक पिकनिक में जायेंगे।
मैंने अपने मित्र रमन से कहा, “सिरपुर यहां से 120 किलोमीटर दूरी पर है। 36 सीटर बस के आने-जाने का, किराया अपने पापा से पूछो। यार कालेज की ट्रिप पिकनिक के लिए जाने वाली है।" उसने किराया बताया।मुझे उचित लगा। रमन के पिताजी का ट्रांसपोर्ट का कारोबार था। हमने चन्दा किया और शेष रकम हमें प्राचार्य महोदय ने फण्ड से दिलवा दिया।
सिरपुर प्रकृति की गोद में, बसा रमणीय स्थल है।पवित्र महानदी के तट पर बसा। हम मित्रगण बस के सफर में, मस्ती और आनंद के सागर में डूबने-उतराने लगे। नाच-गाना, हॅंसी-मजाक, चुटकुले, कविता-शायरी, फिल्मी गीत सभी सुनाने लगे। सभी आनंदित थे।
बस में एक मित्र शांत नजर आया। मैं उसके पास गया और बोला, "यार तुझे क्या हुआ। शांत बैठा है। एन्जॉय कर भाई।" उसने बोला, "भाई, मैं तेरे कारण आया हूँ। मां तो मना कर रही थी।" मैने पूछा, "बता क्या बात है।" उसने कहा, "रात मैं पढ़ रहा था। नींद नहीं हो पायी है। थकावट लग रही हैं।" मैंने कहा, "यार तू ऐसा कर। पीछे की सीट खाली है। तू जाकर लेट जा। परंतु, तूझे नींद आ जायेगी? सभी मस्ती कर रहे हैं।" उसने कहा, "मैं कोशिश करता हूँ।"
हम सिरपुर पहुॅंचे। वहां की शिलालेखों में लिखा इतिहास पढ़कर हम रोमांचित हो उठे। सिरपुर में गंधेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर, लक्ष्मण जी का मंदिर(ईंटों से निर्मित, लाल छटा के कारण भव्य नजर आ रहा था)उसके बाजू में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का मंदिर था। सभी कुछ दर्शनीय और पवित्र।
भारत सरकार और छत्तीसगढ़ शासन ने सिरपुर को पर्यटन स्थल बनाया है और उसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल घोषित किया है। सोमवंशी शासकों ने इसका निर्माण करवाया था और सिरपुर को दक्षिण कौशल राज्य की राजधानी, होने का भी गौरव हासिल है।
मुझे पता चला कि दो मित्र, एक दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं। मैं अमर के पास गया और उससे कहा, "अमर तू, अवधेश से बात नहीं कर रहा है।" उसने कहा, "यार, अवधेश बहुत खराब है। कल मेरे घर आया और पता नहीं, मेरी बहन से क्या बोला? वह रो रो कर मां को बता रही थी। मां ने मुझे कहा कि मैं अवधेश से दूर रहूँ। मां ने कहा है तो मैं उससे क्यों बात करूं। तू ही बोल।" मैंने अमर से कहा, "तू चिंता मत कर, मैं सब ठीक कर दूंगा।" मैंने अवधेश से विषय पर बात की। उसे अच्छा-बुरा समझाया।वह अपनी गलती मान गया। वह मेरे साथ अमर के पास आया कहा, "यार अमर, मुझसे गलती हो गयी है। मुझे माफ कर दे।तेरी बहन मेरी भी बहन हुई।" और वे दोनों एक दूसरे के गले लग गये।
वापसी में मैं प्राध्यापक की अनुमति और कुछ मित्रों को, साथ लेकर गांव वालों से मिलने, गाँव के अंदर गये।एक बड़ी जगह चौपाल में, 8-10 ग्रामीण दिखे। मैंने पूछा, "गांव का सरपंच कौन है।" एक व्यक्ति ने हमारा परिचय पूछा। हमने बता दिया। वह कहने लगा, "साहब मैं सरजू गांव का सरपंच हूँ।" फिर हमने उससे गांव की शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आंगनवाड़ी, राशन दुकान, सरकारी, योजनाओं की जानकारी ली और गाँव वालों का जीवन, समझने की कोशिश की। सरजू ने कहा, "यह पिछड़ा और आदिवासी क्षेत्र है। खेती-बारी करके ही हमारा परिवार चलता है। समस्या ही समस्या है गांव में। क्या क्या बतायें?"
हमने कुछ दोस्तों के साथ पवित्र नदी में स्नान करने का आनंद लिया। हमें देर हो रही थी। सभी वापसी की तैयारी करने लगे।
मेरे लिए यह पिकनिक, मित्रों के साथ, बिताया हुआ यादगार दिन था।कभी याद आती है तो पुरानी तस्वीर देखकर उन पलों को जी लेता हूँ। हां सरजू(सरपंच)की बात भी कि, “साहब हम सीधे साधे लोग हैं। मेहनती भी हैं। एक दिन हम, इस गांव को श्रेष्ठ गांव जरूर बनायेंगे।”
