फटी जेब

फटी जेब

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क्या बताऊं जेबों की भी अपनी दास्तां है। पहले जब सिक्के चलते थे तो लोग पोटलियों में ले के चलते थे ।जब से रुपए आये तो जेब का अविष्कार हुआ और जेब आई तो जेब कतरे भी आ गए ।

संसार में न जाने कितने प्रकार की जेबें हैं,

चोर की, साहूकार की, घूसखोरों की। आज धोबी घाट पर बहुत सारे कपड़े सूख रहे थे ।उन कपड़ों में कुछ खाकी वर्दी कुछ सफेद कुर्ते पास ही साधारण सी शर्ट पैंट भी सूख रहे थे कुछ जींस भी सूख रहीं थी। कुछ साड़ी भी हवा में लहरा रही थी ।


एक सादा सफेद कुर्ते की जेब बोली "देखो इस वर्दी की जेब तो कितनी काली है।"शर्ट की जेब बोली "कहां ? मुझे तो साफ ही दिख रही है।"

"तू क्या जाने ये काली कमाई रख रख के इनका तो रंग ही काला हो गया है।"

"ओह ! ये बात है।"

" तुम्हारे इस फटेहाल जेब में मेहनत से उड़ी रेत के कण मोजूद हैं जो सोने से कीमती है।"

"हूँ ! आज कुछ कुछ समझ आया।"


तभी नजदीक ही सूख रहीं बच्चे की शर्ट की जेब बोली "अंकल अंकल वो देखो मेरी मां की साड़ी, मम्मी के पास कोई जेब नहीं, उसका आंचल कितना पवित्र है पल्ले के ठोक में बंधा एक रुपया भी।"


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