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रंजना उपाध्याय

Others

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रंजना उपाध्याय

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पहले आत्मा फिर परमात्मा

पहले आत्मा फिर परमात्मा

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सुधा रोज नियम से बच्चों को स्कूल भेजना और पतिदेव को ऑफिस भेजने के बाद नहा धोकर भगवान जी के पूजन में बैठती थी।और उसका उल्टा सासु माँ के नियम कुछ अलग ही थे,आज सुबह थोड़ी देर से आंख खुली तो जल्दी जल्दी आधे घण्टे के अंदर बच्चों को तैयार करके हाथ मे ब्रेड पकड़ा कर बिल्डिंग से नीचे उतार दिया।तब तक वैन आ गयी और बच्चे चले गए।अब जल्दी से घर पर आई तो मनीष का लंच बॉक्स और नाश्ता तैयार किया।और धीरे से आवाज दिया।

"माँ जरा आप आज लड्डू गोपाल जी का भोग लगा दीजिये।आज मुझे थोड़ा लेट होग।आप तो नहा चुकी हैं।

माँ ने बोला "अरे सुधा तेरे भगवान को मेरे हाथ का पसन्द नहीं आएगा।तो तुम्हीं भोग लगाना।मुझे तो बड़ी जोर की भूख लगी है।"

सुधा गुस्से में लाकर नाश्ता टेबल पर लगा दिया।और माँ जी ने खाना शुरू कर दिया।एक निवाला लेकर मुह के तरफ़ बढ़ाते हुए बोली "पहले आत्मा फिर परमात्मा"। सुधा सारा का निबटा कर नहा धोकर लड्डू गोपाल को नहला कर भोग लगा कर उठी तब तक बच्चों के आने का समय हो गया।भागी दौड़ी नीचे गयी वैन का इंतजार कर रही थी।तब तक सासु माँ का भतीजा मेरी तरफ आ रहा था।

" अरे भाभी आप नीचे ही मिल गइं,चलिए चलते हैं।बुआ कहाँ हैं।सुधा ने बोला "आप चलिए मैं अनु और गोलू को लेकर आती हूँ।"


"कोई नहीं ,आप चलिए, साथ मे ही चलेंगे।तब तक वैन आ जाती है।दोनों बच्चों को लेकर ऊपर कमरे में जाती है।


बच्चों का यूनिफॉर्म निकाल कर दूसरे कपड़े पहना कर फिर सासु माँ के भतीजे को चाय पानी दी।फिर अपना खाना और बच्चों का एक साथ लेकर अपने कमरे में चली गयी।खाना खत्म हुआ फिर बच्चों को सुलाकर बैठी ही थी।तब तक सासु माँ की आवाज आती है।

"अरे बहू जरा इधर आना,रिंकू को तुम्हारे हाथ का बना प्याज का पकौड़ा बहुत पसंद है।देख लो अगर प्याज़ है तो जरा बना देना।"

सुधा जी माँ जी बोलकर किचन में घुस गई।जल्दी जल्दी बनाकर सॉस के साथ ले जाकर दे दी।सासु मां फिर बोली "अरे सुधा चटनी बना दी होती।

"सॉस के साथ उतना अच्छा नहीं ं लगता जितना चटनी के साथ।"सुधा गुस्से में भनभनाती हुई जाकर चटनी बनाई और ले जाकर कमरे में दे दी।


दूसरे दिन सुधा ने जल्दी से उठकर सारा काम निबटा कर लड्डू गोपाल जी को भोग लगाकर अपना नाश्ता मनीष के साथ करने लगी।

माता जी ने कहा "अरे बहू आज तुमने अपने भगवान जी को भोग नहीं लगाया।"सुधा ने कहा "माँ अभी मेरी उम्र ही क्या है ।पहले आत्मा को संतुष्ट करूँ फिर परमात्मा खुद ख़ुश हो जाएंगे।क्यों आप का भी तो यही कहना है।"

सुधा अपने भगवान जी का चोरी से भोग लगा कर रोज ऐसे करने लगी।सासु माँ परेशान होने लगी।कि अब तो मेंरेे गले यह काम पड़ गया।सुधा अपनी सास को इस तरह भाव भजन कीर्तन के रास्ते पर ले आयी।अब दोनों सास बहू एक साथ शाम को पूजा स्थल पर बैठती हैं।रोज सुबह जल्दी स्नान करके सासु माँ भगवान जी का भोग लगाना और आरती करना सब शुरू की इस जिम्मेदारी से सुधा को मुक्ति मिली।अब सुधा को बंधन नहीं रहता है।क्योंकि भगवान जी का भोग सुबह हो जाता है।जब सुधा को फुर्सत मिलती है तो जाकर अपने मंदिर में भाव भजन कर लेती है।


चलिए इसी बहाने सासु माँ भाव भजन भी करने लगी।घर मुखिया या यूं कहें कि घर के बूढ़े बुजुर्ग पूजा पाठ करें तो बहुत अच्छा होता है।और अधिकतर यही देखने को भी मिलता है।सुधा ने बहुत ही चालाकी और बहुत ही प्यार से अपनी सासू माँ का मन राम नाम मे लगवा दिया।कम से कम टीवी छोड़कर आधा घण्टा भाव भजन तो करती हैं।नहीं तो चौबीस घण्टे टीवी ,"अरे सुधा इस सीरियल में ये बहुत गन्दा रोल करती है।इस सीरियल में वो " यही दिन भर का काम रहता था।


अब तो अड़ोसी पड़ोसी के मिलने पर भाव भजन कुछ धर्म कर्म भी चलता है।धार्मिक बातें भी होती हैं।यह सब देख सुधा मन ही मन बहुत खुश होती थी।

एक दिन मनीष ने बोला "माँ ये कैसे तुम भाव भजन में बैठी हो।ये क्या हो गया है ।कहीं सुधा के अंदर का कीड़ा तुम्हारे अंदर तो नहीं चला गया।"


"क्या करे बेटा ज्यादा पूजा पाठ वाली बहू ले आये हैं तो हमे भी सीखना ही पड़ेगा।और अब मैं इसके जाल से नहीं बच पाऊँगी।पता नहीं क्या जादू किया है।पहले मेरा ये कहना था मेरा की" पहले आत्मा तब परमात्मा" अब तो यह कहना हो गया।कि "पहले परमात्मा फिर आत्मा" लेकिन बेटा बहुत मन को शान्ति मिलती है।बहुत अच्छा किया सुधा ने फालतू टीवी में पड़ी रहती थी।अब कम से कम थोड़ा बहुत ज्ञान ही बढ़ रहा है।शाम को मंदिर में इतनी भीड़ होती है।कि कहो मत , मैं भी जाती हूँ।दस तरह की महिलाएं आती हैं।दस तरह का ज्ञान भी देती हैं।जो होता है बहुत अच्छे के लिए होता है।मेरी बहु ने मेरी आंखें खोल दी।मेरी बहु बहुत प्यारी है।"

दोनों सास बहू का रिश्ता भी बहुत मजबूत हो गया।एक दूसरे के लिए दोनो के अंदर इज्जत का भाव बढ़ गया।रिश्तों में मधुरता का मधुमास हुआ।


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