संजय असवाल

Others

4.7  

संजय असवाल

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फ्लाइट का अनुभव/संस्मरण

फ्लाइट का अनुभव/संस्मरण

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जीवन भी बड़ा अजीब होता है। हम अकेले इस संसार में आते हैं और संसार से विदा हो कर भी अकेले ही जाना होता है। इस जीने और मरने के बीच अनगिनत यादों का रेला साथ साथ चलता है। मां, बाप, भाई बहने, पति, बच्चे सब जब साथ होते हैं तो लगता है ये जीवन स्वर्ग है, पर परिवार को छोड़ कर जब संसार से जाने का वक्त आता है तो मन बहुत घबरा जाता है। अपनों का मोह, जीवन का आकर्षण इस दुनिया से जाने से रोकते हैं पर जो पैदा हुआ उसे एक दिन मरना तो है। अमर कोई नही होता, पर मन में क्यों इतना दर्द है, क्यों आखिर क्यों? ये प्रश्न दार्शनिक है पर अक्सर खुद से पूछती हूं, जब सभी को एक दिन इस सांसारिक जीवन को छोड़कर उस परम पिता परमात्मा की शरण में जाना है तो क्यों कोई अपनी मृत्यु को अपने पास धीरे धीरे आते देख घबरा जाता है। प्रश्न उस परम पिता से भी है कि आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों? क्यों मैं इस जीवन में इस तरह के दर्द को रोज सुबह शाम महसूस कर रही हूं और अपने परिवार को अपने दुख दर्द में भागीदार बना कष्ट दे रही हूं? प्रश्न बहुत हैं और उत्तर बस उस ईश्वर के पास है, पर ना जानें क्यों वो मेरे प्रश्नों के उत्तर देने से बच रहा है, खैर जीवन उसने दिया तो वो जैसे चाहे इस किरदार से अभिनय करवा ले हमे तो बस अपना किरदार निभा कर उसके कहे अनुसार खुद को ढालना है, हम इसमें कितने सफल होते हैं ये तो बस वो खुद ही तय करेगा। जीवन रूपी प्रश्नों के बीच मुझे अपने इलाज के लिए मुंबई जाना पड़ा वो भी पहली बार अकेले। COVID-19 की वैश्विक महामारी ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। यात्रा भी इससे अलग नहीं रही। इसके प्रभाव के कारण ही कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू उड़ानें बंद तक हुईं। वहीं महामारी के दौरान यात्रा कर मुझे इस तरह के अनुभव से दो चार होना पड़ा, मुझे उम्मीद थी कि मैं जिस इंडिगो की फ्लाइट में देहरादून से मुंबई यात्रा कर रही हूं उसमें कुछ लोग तो होंगे ही लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मेरी फ्लाइट में कोई और यात्री था ही नहीं मेरे सिवाय। जैसे ही फ्लाइट अटेंडेंड से यह पता चला कि मैं आठ घंटे की उड़ान में अकेले हूं तो मन में अजीब से ख्याल उभरने लगे। लगा वक्त हमेशा एक सा नहीं होता और ये यात्रा. उफ्फ..! मन बहुत घबरा रहा था । आज सच अकेलेपन की अजीब सी अनुभूति हो रही थी। बच्चे ,पति सभी का चेहरा आंखों के सामने घूम रहा था। खिड़की से बाहर आसमान के विशाल अस्तित्व को आज पहली बार ध्यान से देखा। लगा हम इस विशाल सागर में बस तिनके भर हैं और दुनियां जहां की समस्याएं सर पे ढोए जा रहे हैं। जिंदगी एक यात्रा ही तो है और इस यात्रा में कोई किसी का नही होता। सभी को अपनी जीवन यात्रा स्वयं ही पूरी करनी होती है। बस लोग चाहे अपने हो या पराए सब समय समय पर आप से जुड़ते जाते हैं और फिर बिछड़ कर अलग हो जाते हैं। जीवन के इस महानिर्वाण चक्र को खुद ही तो पूरा करना है। इस यात्रा को जो शुरू से अंत तक अनेक खट्टे मीठे अनुभवों से रूबरू कराती है उसे खुद ही पूरी करनी है। अपने अस्तित्व को समेटे जीवन संघर्ष में....! मन कभी शांत तो कभी उद्वेलित हुआ जाता है। पूरी जिंदगी की एक एक लम्हा पिक्चर की तरह आंखों के सामने घूमने लगती है। बचपन में भाई बहनों के साथ बिताया हसीन पल,स्कूल में दोस्तों का साथ फिर कॉलेज की यारियां सब जैसे सामने खड़े हो गए हैं। क्या दिन थे जहां कोई चिंता कोई लालच किसी तरह का कोई डर नहीं था। बस वक्त सफेद घोड़े पर सवार उड़ता जा रहा था और न जाने कब हाथों से रेत की तरह निकल आया। मैं तब भी अकेली थी और आज भी...! फ्लाइट में इधर उधर घूमने के पश्चात थोड़ा बैठकर खुद में खो गई। आंखों से आंसू भी ख़मखा निकल आए ना जाने क्यों? दर्शन विचार अपनों का साथ, दूर तक देखने की अजीब सी ख्वाइश अजीब बातों को सोचने के बाद फिर सोचा आना जाना तो लगा रहता है। सांसे जब तक चलती हैं, उनका हिसाब देना जरूरी भी है।


मैं अपने अकेले पहली बार यात्रा करने के इस अवसर को व्यर्थ जाने नहीं देना चाहती थी। मैंने अपने इस अनूठे अनुभव को फ़ोटोज और वीडियो से संजोना शुरू कर दिया। पूरी खाली पड़ी फ्लाइट का वीडियो बनाया। हर सीट पर बैठ गुनगुनाई सुस्ताई कभी फ्लाइट अटेंडेंट से उनके बारे में पूछा उन्हें भी गौर से सुना,सब बहुत अलग था कुछ बहुत ही खास सा।

इस सफर से मुझे अंदर से एक अलग ही ऊर्जा मिली। मैने खुद को पहली बार एक अलग पहचान से एक अलग व्यक्तित्व से ज्यादा महसूस किया। सच कहूं ये किसी तपस्या से कम नहीं था जहां उस ऊर्जा को हासिल किया जिसकी मुझे सख्त जरूरत थी। अब मैं खुश हूं कल जो भी हो उसे दिल से स्वीकार करने के लिए मैं तैयार हूं। उस परम पिता परमात्मा को मैने इन चंद घंटों में स्वयं के अंदर आत्मसात किया। उससे बातें की और सही मायने में मुझे मेरे हर प्रश्न का मेरी हर शंका का सटीक जवाब मिला। मैं खुश हूं मुझे किसी से कोई गिला शिकवा नहीं न मुझे इससे ज्यादा कुछ और चाहिए जो मिला उसे दिल से स्वीकार करती हूं जो आगे भाग्य में लिखा है उसे भी स्वीकार करने के लिए तैयार हूं। ये समय मैने खुद को खुदकी पहचान को ढूंढ लिया।

अब अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में इस अकेले यात्रा करने का शानदार अनुभव जो मुझे मिला उसे हमेशा अपने दिल में संजोए आगे की जीवन यात्रा को सही सच्चे अर्थों में जीने का प्रयास मेरा रहेगा और ये वादा मेरा खुद से कि चाहे कितनी समस्या आए दर्द दुःख आए मैं रुकूंगी नही। अब खुशी खुशी जीना है बस....! वादा लिया खुद से और इस एकाकी यात्रा में वो हासिल किया मैंने जिसका लोग बस सपना ही देखते हैं।



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