STORYMIRROR

Gita Parihar

Others

2  

Gita Parihar

Others

फिर भी मैं पराई हूं

फिर भी मैं पराई हूं

2 mins
239

क्यों लड़कियों का वर्णन हुआ हो और यह शब्द न जोड़े गए हों ....

बलिदान, कमतरी, बेबसी, समझौता, लाचारी, संजीदगी? क्या इन जैसे शब्दों को जोड़े बगैर एक लड़की के जीवन कि कहानी पूरी नहीं हो सकती? 

क्यों करुणामई, ममतामई, सहनशील और क्षमाशील होने जैसे गुण उसके आभूषण माने जाते हैं?

उसकी व्यथा और संताप क्या है ? जिस अपमान के घूंट वह छुप-छुपकर पीती है, जिस असुरक्षा में दिन-रात वह जीती है, वह क्या है?

रिश्तों में उसे इस क़दर उलझा लिया जाता है,

यह कहकर कि वह लड़की ही क्या जो हर रंग में न रंग जाए? हर माहौल में सामंजस्य ना बैठा ले?


अच्छी बेटी और संस्कारी और आज्ञाकारी बहु बन पाए, क्यों ? उसे पराए घर जाना है। मायके में वह मेहमान है। ससुराल की अमानत है।

वह समझ नहीं पाती कि जिस घर में उसने जन्म लिया, वहां वह पराई है या जिस घर उसे जाना है वह पराया है?

उसका अपना घर कहीं नहीं होता।वह घर संवारती है, घर बनाती है, दो परिवारों को एक करती है, सारी जिम्मेदारियां उठाती है, अपनी ख़ुशियों का गला घोंटना भी पड़े, तब भी उफ़ नहीं करती, फिर भी वह पराई है!

उससे उम्मीद रहती है कि वह हर फर्ज़ निभाए। मायके का मान बढ़ाए। ससुराल में तालमेल बैठाए। संस्कारों के बंधन में बंधी रहे। दोनों कुल की लाज निभाए। पंख होते हुए भी उड़ने की कल्पना न करे। अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाए। जिस घर डोली में जाए वहां से अर्थी में बाहर आए,क्यों ?

बदल गया ज़माना, अब आत्मनिर्भर लड़कियाँ हैं। जिन्हें ज़माने के साथ नहीं बदलना है, वे इस परायेपन के बोझ को ढोती रहें। नए ज़माने की लड़कियाँ नहीं पूछेंगी यह सवाल 

..... फिर भी मैं पराई हूं ?


 





Rate this content
Log in