फौजी भाई
फौजी भाई
कुछ शब्द बड़े अच्छे लगते हैं सुनने में। एक संबोधन, एक पहचान, एक उपाधि ....। जो भी उच्चारण करते हुए एक जो सुरक्षात्मक अनुभूति होती है उसे सिर्फ बोल कर और सुनकर ही महसूस किया जा सकता है। बचपन में रेडियो पर एक कार्यक्रम आता था दोपहर ढाई बजे फौजी भाइयों के लिए उसमें पुराने गाने फौजी भाइयों के फरमाइश पर सुनाए जाते थे। मैं समझती थी फौजी भाई आम इंसान नहीं बहुत खास होते होंगे तभी तो उनकी फरमाइश पूरी की जाती है। मेरी मां फौजियों का बहुत सम्मान करती थी। उन्होंने बहुत सारे फौजियों के जीवन की सच्ची रोमांचक कहानियां सुनाया करती थी । फिर मैंने एक टीवी सीरियल देखा "फौजी "शाहरुख खान फौजी की भूमिका में बहुत भा गया। फिल्मों से ज्यादा सिरियल अच्छा लगने लगा था। तभी इत्तफाकन मुझे भी एक फौजी भाई मिल गया जिन्होंने मेरे आजीवन कुंवारी रहने का प्रण तोड़ने पर मजबूर कर दिया। मैंने अपने जीवन को अपने हिसाब से व्यतीत करने का फैसला कर लिया था लेकिन फौजी भाई ने आकर सब गड़बड़ कर दिया। एक दिन बारात लेकर आएं और मैं बन गई उनकी जीवन संगिनी तब शुरू हुआ जीवन का एक नया सफ़र ..... बहुत सुहाना सफ़र। हर कदम पर एक नया मोड़ , रोमांच और हैरतअंगेज घटनाएं। किसी सपने जैसा एक अलग ही दुनिया में सैर करने लगी थी। फिल्मी जिंदगी जीने लगी। वर्दी में पति को देखकर आंखों को बहुत सुकून मिलता था और मन ही मन बहुत गौरवान्वित होती रही। सचमुच "फौजी" आम इंसान नहीं बहुत खास होते हैं। जब भी उनके साथ निकलती सैनिकों की सलामी लेते लेते मेरे पति भले ही थक जाते हों लेकिन मैं बहुत आनंदित होती थी। जो मान सम्मान मुझे फौजी भाई की पत्नी बन कर मिला है वो सम्मान किसी डॉक्टर , इंजिनियर , प्रोफेसर या वकील की पत्नी बनकर नहीं मिल सकता था ना किसी बड़े बिजनेसमैन की पत्नी बनकर। सबकी अपनी-अपनी ख्वाहिश होती है। किसी को धन चाहिए किसी को पद और किसी को प्रतिष्ठा। मुझे मिला एक "फौजी भाई " जिन्हें पा कर मैंने सब कुछ पा लिया।
नानी और दादी मां बन गई हूं लेकिन अभी भी उन्हें फौजी भाई बोल कर बहुत अच्छा महसूस करती हूं। भारत माता की रक्षा करने वाला जांबाज सिपाही पर क्यों न भरोसा हो। फौजी भाई के फौलादी बाजुओं का सहारा पाकर जब भारत माता सुरक्षित महसूस करती हैं फिर मैं क्यों नहीं ?
