फाइव ट्रिलियन इकॉनमी
फाइव ट्रिलियन इकॉनमी
आज दिन भर टीवी में बजट की बातें ही छायी रही।सारे न्यूज़ चैनल्स में यही बातें.....
बजट में इसको यह मिला और इस मद में इतना पैसा।हम सब गवर्नमेंट नौकरी करने वाले परेशान हो रहे थे क्योंकि इनकम टैक्स की स्लैब में कोई भी बदलाव जो नही हुआ था।
उसी रात को मुझे बाहर जाना पड़ा।अपनी गाड़ी से जाते हुए उस कड़ाके की ठंड में सड़क किनारे लोगों को सोये हुए देखकर मुझे दिन भर टीवी की बजट की बहस बेमानी लगने लगी।सारा दिन टीवी के वे सारे एंकर देश के विकास का बजट कहते कहते थक नही रहे थे और इस सर्द रात में कड़ाके की ठंड में लोग चिथड़े ओढ़कर सो रहे थे।शायद उनमें से कुछ भूखे प्यासे भी हों।इन बड़े बड़े शहरों की बेहिसी में किसी को इस सबके बारे में सोचने की ज़रूरत भी है क्या? और अगर ज़रूरत है तो उन्हें फुर्सत है क्या?
ये कड़ाके की ठंड में रातों को सड़क पर सोनेवाले मात्र शरीर होते है।इसलिए की उन्हें सस्ते गेहूँ,चावल की ज़रूरत होती है बस!पीडीएस सिस्टम से उन्हें वे दे दो। सरकारी घाटे की चिंता अगर है तो मत दो।कोई रूल बना दो की आधार के बिना सस्ते गेहूँ,चावल नही मिलेंगे।जिंदा तो सबको रहना ही होता है।ये कोई अलग थोड़े ना होते है। सरवाइवल इंस्टिक्ट से वे भीख़ माँगना शुरू करते है क्योंकि ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने से आजकल नौकरियाँ कहाँ बची है?
हमे देश की इकॉनमी को फाइव ट्रिलियन इकॉनमी तक लेकर जाना है।हमे देश के विकास की बात करनी होगी। हमे देश को विकास की राह में लेकर जाना ही होगा।हमने भी बजट की तारीफ़ करनी होगी।