Sandeep Murarka

Children Stories Inspirational Others

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Sandeep Murarka

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पद्मश्री तुलसी मुण्डा

पद्मश्री तुलसी मुण्डा

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जीवन परिचय - ओडिशा के एक छोटे से गांव काइन्सि के ट्राइबल परिवार में देश की आजादी के ठीक एक माह पूर्व डॉ. तुलसी मुण्डा यानी तुलसी आपा वहाँ के बच्चों के साक्षर भविष्य की उम्मीद लेकर जन्मी। दो भाई और चार बहनों से छोटी तुलसी को पिता का प्यार ना मिल सका। विधवा माँ के साथ उनके कामों में हाथ बंटाते हुए, चूल्हा चाकी माटी से खेलती तुलसी बड़ी हो रही थी , गांव में स्कूल तो था नहीँ, जो पढ़ाई करती। उस समय 12 साल की भी नहीँ रही होगी तुलसी, जब अपनी बहन के साथ दो जून की रोटी की तलाश में अपने गांव से 63 किलोमीटर दूर बड़बिल ब्लॉक के सेरेण्डा गांव में पहुंच गई। रोजगार तो मिला , पर क्या, आयरन ओर माइंस में मजदूरी, फूल से हाथ और पत्थर को तोड़ने का काज, और तनख्वाह कितनी , 2 रुपए प्रति सप्ताह यानी 29 पैसे प्रतिदिन। यदि मुद्रास्फीति की दर को देखा जाए तो 1959 से 2020 में लगभग 7634% * की वृद्धि हुईं है, यानी आज के दृष्टिकोण से भी मात्र 22.43/- प्रतिदिन। ये आंकड़ा देना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कुछ विद्वान कहेंगे कि उस जमाने में 29 पैसे बहुत होते थे। परन्तु इससे इतर सच्चाई यह है कि जंगलो के मालिकों को ही मजदूर बना दिया गया, उन्ही की खानों से लोहा निकालकर, उन्ही के खून से भट्टी जलाकर, लोहा गलाया गया, और ये काम बदस्तूर जारी है।

इसी बीच वर्ष 1961 में लडकियो की शिक्षा के लिए समाज में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से समाजिक कार्यो के लिए प्रतिबद्ध निर्मला देशपांडे, मालती चौधरी और रोमा देवी ओडिशा आई, संयोगवश उनकी मुलाकात 14 वर्षीय मजदूर तुलसी से हुईं, जो इतना अक्षरज्ञान जरूर चाहती थी कि साप्ताहिक मजदूरी देते समय माइंस का मुंशी उससे कितने रुपयों पर अँगूठा लगवाता है और देता कितना है , यह पता रहे। गरीबी और भूख इंसान को जल्दी समझदार बना देती है, तुलसी अशिक्षित थी, उसे किताबी ज्ञान नहीँ था, किन्तु इन महिलाओं के सम्पर्क में आकर उसे शिक्षा का महत्व समझ में आने लगा। तुलसी की नई यात्रा प्रारम्भ होने लगी, राज्य के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समाजिक शैक्षणिक संघर्ष में तुलसी उनके साथ भाग लेने लगी। वर्ष 1963 में भूदान आंदोलन पदयात्रा के दौरान विनोबा भावे ओड़िशा पहुँचे। गरीब ग्रामीणों के जीवन को उत्कृष्ट बनाने के लिए आचार्य विनोबा की प्रतिबद्धता में युवती तुलसी उनके पदचिन्हों पर चल पड़ी। उस पदयात्रा पर तुलसी ने विनोबा से वादा किया कि वह जीवन भर उनके दिशानिर्देशों और सिद्धांतों का पालन करेगी। तुलसी दी ने सभी ट्राइबल्स को अपना परिवार माना, अविवाहित रहीं।

योगदान - लगभग एक साल बाद वर्ष1964 में आचार्य विनोबा के आदर्शों और लक्ष्यों से उत्साहित और उनकी सामाजिक सेवा प्रशिक्षण से लैस हो कर तुलसी सेरेण्डा गांव लौटी और माइंस में कार्यरत ट्राइबल श्रमिकों के बच्चों के लिए महुआ वृक्ष के तले एक स्कूल खोला ।

ट्राइबल्स बहुल इलाकों की जितनी अनदेखी हुईं है, वह पीड़ा एक ट्राइबल ही समझ सकता है। सेरेण्डा गांव को चयन करने का कारण यह नहीँ था कि तुलसी आपा ने इस गांव में मजदूरी की, बल्कि कारण यह था कि उन्होनें गांव के दर्द को ठीक से समझा। वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान सेरेण्डा गांव की कूल जनसंख्या 2282 है , जिसमें 63% लोग ट्राइबल हैँ।

लेकिन यह सफर इतना आसान नहीँ था, बच्चे अपने माता पिता के साथ माइंस में लौह अयस्क चुनने का कार्य किया करते थे। तब तुलसी आपा ने रात्रि विद्यालय प्रारम्भ किया, स्वयं घर घर जाकर श्रमिकों के घरों से बच्चों को बुलाकर लाती, गांव के मुखिया समझदार थे, और आने वाली पीढ़ी के लिए चिन्तित भी, धीरे धीरे बच्चे स्कूल में जुटने लगे। पढ़ाई प्रारम्भ हुईं, देश के स्वतंत्रता आन्दोलन के किस्से, महान नेताओं और महापुरुषों की कथा कहानियाँ सुनाकर, यानी चरित्र निर्माण कार्यशाला से। धीरे धीरे रात वाली कक्षाएँ दिन में लगने लगी, ट्राइबल्स अपने बच्चों को पूरा दिन तुलसी आपा की देखरेख में स्कूल में छोड़कर काम पर चले जाया करते, तुलसी मुड़ी और सब्जी बेचा करती, वही मुड़ी वह बच्चों को भी खिलाया करती, अब 30 बच्चे जुटने लगे थे।

दो तीन ऐसे ग्रामीण नवयुवक भी साथ जुड़ गए, जो प्राथमिक शिक्षा प्राप्त थे, वे भी छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान करवाते। खर्च बढ़ने लगा, लेकिन जहाँ चाह वहाँ राह, ग्रामीणों ने स्कूल को मदद के रूप में चावल देना शुरू कर दिया। बच्चों का व्यवहार बदल रहा था, वे साफ स्वच्छ रहने लगे, ग्रामीण माता पिता को यह बदलाव भा रहा था। गर्मी की कड़ी धूप और बारिश में महुआ के पेड़ के नीचे स्कूल का संचालन असम्भव था, इसका उपाय भी ट्राइबल ग्रामीणों ने ही निकाला, 1966 में पहाड़ के पत्थरों को काटकर गांव के बाहर एक भवन तैयार किया गया, उस पर पैन्ट से नाम लिखा गया ' आदिवासी विकास समिति '।

तुलसी आपा ने उड़ीसा के खनन क्षेत्र में एक विद्यालय स्थापित कर भविष्य के सैकड़ों ट्राइबल बच्चों को शोषित दैनिक श्रमिक बनने से बचाया है। समय के साथ टाटा स्टील एवं त्रिवेणी के अलावा वैसी कम्पनियों ने अपने निगमित समाजिक उत्तरदायित्व (सी.एस.आर.) के तहत मदद करना आरम्भ कर दिया, जो उस क्षेत्र में खनन कार्य कर रही थीं।

शिक्षा के प्रति समर्पित तुलसी आपा निःस्वार्थ भाव से अनवरत सक्रिय रहीं , अगले 50 वर्षों में, उनके प्रयास से 17 स्कूलों की स्थापना हुईं, उस ट्राइबल क्षेत्र के 100 किलोमीटर के दायरे में लगभग 25000 लड़के लड़कियों को शिक्षित करने का श्रेय तुलसी को जाता है। आज आदिवासी विकास समिति स्कूल 10 वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करता है , प्रतिवर्ष 500 से अधिक छात्र छात्राएं मैट्रिक की परीक्षा पास करते हैँ, जिनमें आधे से अधिक लड़कियां होती हैं।

तुलसी आपा का मानना ​​है कि ट्राइबल्स की दासता के कारण हैँ - गरीबी, बेरोजगारी,नशा, अंधविश्वास और भय , किन्तु सबसे मुख्य कारण है - निरक्षरता। हमारा देश भले आजाद हो गया है, किन्तु गावों में आज भी मानसिक गुलामी है और सभी समस्याओं का जड़ है अशिक्षा। डॉ तुलसी ने समाज सेवा, शिक्षा के प्रसार, ग्रामीणों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और नशा उन्मूलन अभियान में ही अपना सर्वस्व जीवन परमार्थ में अर्पित कर दिया।

सम्मान- ट्राइबल्स के मध्य साक्षरता के प्रसार के लिए विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता तुलसी मुण्डा को वर्ष 2001 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

उन्हें 2008 में कादिम्बनी सम्मान प्रदान किया गया। महामहिम उपराष्ट्रपति ने 10 जून 2009 को तुलसी आपा को लक्ष्मीपत सिंहानिया- आई आई एम लखनऊ राष्ट्रीय नेतृत्व पुरस्कार से सम्मानित किया। 2011 में ओडिशा डेयरी फाऊंडेशन द्वारा तुलसी मुण्डा को समाज सेवा के लिए ओडिशा लिविंग लीजेंड अवार्ड प्रदान किया गया था। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ ओडिशा , कोरापुट के तृतीय दीक्षांत समारोह में 1 जुलाई 2013 को तत्कालिन केंद्रीय मन्त्री, मानव संसाधन विभाग द्वारा तुलसी मुण्डा को डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई। फरवरी 2016 में द टेलीग्राफ द्वारा इन्हें ट्रू लिजेण्ड्स अवार्ड से सम्मानित किया गया।

निर्माता अनुपम पटनायक एवं निर्देशक आमीया पटनायक द्वारा उनके जीवन पर आधारित 121 मिनट की बायोपिक 'तुलसी आपा' में उनकी भूमिका वर्षा नायक ने अदा की है, इस फिल्म का प्रीमियर 2015 में 21वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सम्पन्न हुआ, जहाँ इसे भरपूर प्रशंसा मिली। 2016 में चतुर्थ तेहरान जैस्मीन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के अलावा शिमला, बेंगलुरु, नासिक एवं हरियाणा में भी इस फिल्म की स्क्रीनिंग की गई और फिर 19 मई 2017 को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज हुईं। नवम्बर 2019 से एमेजॉन प्राईम वीडियो पर आने वाली पहली ओडिया मूवी है तुलसी आपा।  


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