पायल
पायल
गणपति उत्सव में आरती के दौरान पम्मी का पायल कहीं गिर गया। जब पम्मी घर आयी तो उसने देखा एक पैर में पायल नहीं था, फिर से लौट कर पहुंची पूजा पंडाल के पास कि शायद पायल कहीं गिरी हुई मिल जाएं, लेकिन बहुत ढूढने के बाद भी पायल नहीं मिली। थक हार कर पम्मी घर को लौट आयी। शाम को जब पम्मी के पति ने उदासी का कारण पूछा तो पम्मी ने पायल के गुम होने की पूरी कहानी बता दी। पम्मी के पति ने पम्मी से कहा
"मन उदास करने की जरूरत नहीं है, एक पायल ही तो थी मैं तुम्हे दूसरी दिला दूंगा। अभी गणपति जी का उत्सव चल रहा तुम पूरे मन से गणपति जी की सेवा करो वैसे भी गणपति जी पूरे साल में एक ही बार आते है।"
"आप बात तो सही कह रहे, लेकिन वो पायल, पापा ने अपनी रिटायरमेंट में दिया था, अब पापा तो नहीं रहे लेकिन उनके हाथ से दिया हुआ वो आखिरी गिफ्ट भी मैंने गुम कर दिया।"
यह कहकर पम्मी अपने घर के काम में व्यस्त हो गयी। अगले दिन शाम को पम्मी ने प्रसाद में सूजी का हलवा बनाया और गणपति जी के आरती में शामिल होने के लिए अपनी सोसायटी के पूजा पंडाल में पहुंच गई। पंडाल में सभी बड़े बूढ़े और बच्चे आरती के लिए पंडित जी का इंतज़ार कर रहे थे। पम्मी ने भी अपना प्रसाद गणपति जी के पास रखा और हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद कर ली। थोड़ी देर बार जब पम्मी ने आंखे खोली तो सामने देखा कि पंडित जी अपने बैग से पायल निकाल कर गणपति जी के पैरों के पास रख रहे थे। पम्मी ने पंडित जी से पायल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया
"कल आरती के बाद सोसायटी का एक सफाई कर्मचारी आया और मुझे ये पायल दिया जो उसे गणपति जी के पंडाल के पास गिरा हुआ मिला था, तो मैंने सोचा यह पायल गणपति जी के पैरों के पास रख दूं जिस भक्तगण का होगा जब वो देखेगा तो ले लेगा।"
पम्मी ने कल की पायल गुम होने की सारी कहानी पंडित जी को कह सुनाई और अपने बैग से दूसरा पायल निकाल कर दिखाने लगी।
पंडित जी मुस्कुराए और बोले
"एक ईमानदार व्यक्ति ने अपना फ़र्ज़ निभाया और किसी की गिरी हुई वस्तु को उस तक वापस पहुंचा दिया,
"वसुधैव कुटुंबकम्।"
यह कहते हुए पंडित जी ने पम्मी का पायल उसे लौटा दिया।
पम्मी पायल लेते हुए गणपति जी की तरफ देखा और सोचने लगी -गणपति जी हमारे, है कितने प्यारे, देते हरदम साथ लेकिन हम ही ना जाने।
