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dr Jogender Singh(Jaggu)

Others

3.5  

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नॉनस्टॉप??

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जिस प्रवाह से गालियां उनके मुंह से निकलती थी। कथा कराने वाले पंडित जी की स्पीड भी कम पड़ जाती। तरह तरह की गालियों को, भिन्न भिन्न युक्तियों से अलग अलग समूहों में प्रयोग करना। राम दादा की इस विशिष्टता के आस पास पहुँचता मुझे जीवन भर कोई भी नजर नहीं आया।

वैसे तो उनका पूरा नाम संत राम था। मां /बाप ने नहीं उनकी परदादी जी ने यह नाम रखा था।

हम लोगो के इलाके में, विदाई के समय डोली के साथ गांव के सात आठ लड़कों को भेजने का रिवाज़ है। शायद इसलिए कि कहार रास्ते में थक जाएं तो जवान लड़के मदद कर सकें, या पतले पहाड़ी रास्तों में बीच बीच में डोली का रास्ता बनाने के लिए? या शायद लड़की को अकेलापन ना लगे इस के लिए ? खैर जो भी कारण हो। यह रिवाज़ है।

रीता बुआ की शादी में डोली के साथ मैं, सुरेन्द्र, भगवंत, विक्रम, मदन, राजू, श्याम भेजे गए। सात किलोमीटर के रास्ते में कहारों के तमाम ड्रामे देखने को मिले। मंदिर रास्ते में आ गया, डोली आगे नहीं बढ़ेगी? फिर ? चढ़ावा चाहिए। सुरेन्द्र ने जेब से नोट निकाल कर दिया, डोली आगे बड़ी। रास्ते में झरना आ गया, पानी के देवता की दक्षिणा।

खैर दो बजे के चले चले, सात बजे रीता बुआ की ससुराल पहुंचे। आते ही शीटने (औरतें गाना गाती हुई लड़की के साथ आए लोगों का मज़ाक बनाती हैं) शुरू हो गए। औरतें दो दो के दो ग्रुप

बना कर सवाल/जवाब में गाने गाती है। गाना: क्यों जी सुरेन्द्र अकेले अकेले आ गए अपने पापा को नहीं लाए? दूसरा ग्रुप ना जी ना। पहला ग्रुप अरे हम तो इंतजार कर रहे थे, इतने पकवान बनाए है। दूसरा ग्रुप कैसे लाते उनके पास कपड़े नहीं थे। पहला ग्रुप अरे तो पत्ते लपेट कर ले आते , कोई देखने वाले नहीं था। फिर ज़ोर की हंसी। चाय/नाश्ते के बाद रस्में हो रही थी। 

नौ बजे रीता बुआ के बड़े भाई , संत राम दादा और गांव के चार पांच लोग और आ गए।

रात का खाना खाने सभी लड़की के तरफ वालो को पंगत में बैठा दिया गया। खाना परसना शुरु हुआ और औरतें शिटने देने लगी। पता नहीं संत राम दादा को क्या हुआ ? गालियों की ऐसी बौछार शुरू कर दी । सब लोग हक्के बक्के रह गए। अरे बस करिए। क्या बस करिए क्या क्या उल्टा सीधा बोल रही है? अरे यह रिवाज़ है। ऐसी की तैसी रिवाज़ की कई गालियां देते हुए। औरतें गाना छोड़ कर भाग गई। लड़के वाले नाराज़ होने लगे, किसी तरह माफ़ी मांग कर मनाया गया। 

सोने के समय राम दादा से पूछा, क्या हो गया था दादा, इतना गुस्सा क्यों। अरे कान को दिल्ली गेट समझ एक कीड़ा घुस गया, कुछ सुन नहीं रहा था। गुस्सा आ गया। सब लोग हँसने लगे। कान में तेल डाल कर, पतली चिमटी से कीड़े को निकाला गया।

निकालने वाले को भी दादा के प्रसाद स्वरूप गालियां मिली। कितनी ? ढेर सारी।


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