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Arun Gode

Others

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Arun Gode

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निमंत्रण-पत्र

निमंत्रण-पत्र

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कुछ घरेलू काम-काज के कारण एक दिन की आकस्मिक छुट्टी पर था। कार्य पूरा होने पर घर लौटा। चिलचिलाती धूप में की गई भ्रमन्ति से मन पस्त, तन त्रस्त हो चुका था। घर पहुंचते ही मन में पहली सोच आई कि भगवान करे ऐसे मई माह में नागपुर शहर की तपती गर्मी में किसी को भी तफरी करने का काम ना पड़े। हलका सा भोजन लेने के बाद बोझिल शरीर ने कुछ राहत पाई और तन-मन की शिथिलता ने अपने –आप पलंग की ओर रुख किया ही था कि अचानक डोर बेल धन-धनाई जैसे ही दरवाजा खोला, डाकिये ने निमंत्रण-पत्र मेरे हाथ में थमाते हुये कहा “लो साहब, खर्चे का न्योता”। डाकिया जाना-पहचाना होने से मैंने भी हंसते हुय कहा, ठीक कहा, पर कभी-कभी आमदनी वाली भी डाक तो लाया करो, भाई। उसी अंदाज में डाकिये ने कहा “क्यों भूलते हो साहब, जीवन बीमा पॉलिसी का धनादेश भी तो में ही लाता हूँ कि नहीं।

    दरवाजा बंद करते ही उत्सुक्तावश निमंत्रण-पत्र की ओर ध्यान गया। पढ़ने पर पता चला कि मेरे पैतृक गांव में मेरे भतीजे की मई माह के अंत में शादी होने वाली है। मैं अपनी पारिवारिक व्यस्तता के कारण कई सालों से वहां नहीं जा पाया था। पत्र के आशय से मन में हलचल सी मच गई, खून की रफ्तार तेज हुई। शायद यह इस बात का संकेत था कि अभी मुझे मेरे पैतृक गांव जाना ही है। पिताजी कुछ पुश्तैनी जायदाद वहां छोड़ चुके थे और अभी भी वह उनके नाम पर है। परिवार के कुछ स्थानीय सदस्यों के द्वारा उसकी देखभाल हो रही है। दिल की धड़कन कहने लगी, जाओ, तुम्हें अब तो जाना ही है। पत्र के हर वाक्य को बारीकी से निहारते- निहारते- ही धूप में लाल हुई और थकी आंखें धीरे-धीरे छोटी होने लगी और गांव के पिछले प्रवास की यादें ताजा होने लगी। पुराने यादों की गाड़ी पटरी पर धीरे -धीरे सरकने लगी।

     शादी होने के पश्चात कुछ साल पहले मैं अपने पत्नी के साथ गांव गया था। एक दिन दोपहर में मैं अपने गांव के खेतों की पगडंडियों से अपने पिताजी से मिलने खेत की तरफ जा रहा था। मुझ जैसे अनजान व्यक्ति को देखकर, रास्ते के ओर खेतों में काम करने वाले मजदूर- किसान मुझे निहार रहे थे। उनकी तरफ देखकर में हंसते –हंसते आगे बढ़ता और उनके बारे में सोचता, ये किसान अपने खेतों में इतनी कड़ी धूप में कैसे काम कर लेते है ? उनके खून पसीने से पैदा हुआ अनाज मैं बाजार से कितने आसानी से खरीद लेता। और अपनी जिन्दगी को आगे बढ़ाता रहता हूँ। पगडंडी पर पैर बढ़ाते हुये अपने पुश्तैनी गांव के मिट्टी की खुशबु और उससे उठती हुई हल्की हल्की सुगंध हौले-हौले मेरे नकासिरों और मन-मस्तिष्क से टकरा रही थी और यह संकेत दे रही थी कि तू अपनी मंजिल के करीब आ चुका है। मेरी पुश्तैनी हवेली की चोटी आंख से टकराने लगी और सांस की रफ्तार धीरे धीरे बढ़ने लगी। दिल अपने आप तेजी से धड़कने लगा और अपनों के चेहरे आंखों के सामने से गुजरने लगे। दिल कि धड़कन और सांस की रफ्तार ने मेरे पैरों की गति अपने आप बढ़ाई। जैसे ही चाल बढ़ी मैं अचानक एक पत्थर से टकराया। अपना संतुलन खोने ही वाला था कि जैसे तैसे अपने आप को किसी तरह सम्भाल लिया। थोड़ी देर रुककर इधर –उधर देखने लगा। जिस पत्थर से मै टकराया था वहीं से मेरे खेतों की शुरुआत होती है। अचानक सामने एक वृद्ध आदमी और उसका जवान किसान पोता मेरे सामने आए। मुझे देखकर कहने लगे “ मालिक ,बहुत साल बाद आ रहे हो ? उनकी हां में हां मिलाते हुए मैंने कहा, आने की तो बहुत इच्छा रहती है लेकिन शहर में काम-काज की व्यस्तता के कारण चाहकर भी आना नहीं होता है। मुझे समझाते हुए दादा स्वरूप वृद्ध ने कहा, बेटा, ये तेरे परदादा की जन्म और कर्म भूमि है। जहां से तुम्हारा परिवार एक वट वृक्ष में तबदील हो चुका है। आप को यह नहीं भुलना चाहिए। उनके सामने अपनी गर्दन हिलाकर मैंने हामी भर दी। बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा, दादाजी क्या खेतों में बुआई के सभी काम हो चुके है ? मानसून जल्दी ही आनेवाला है। दादाजी ने कहा, हर साल कड़ी मेहनत करके हम खेत तैयार करते है। इस आशा से इतनी कड़ी धूप में अपना खून पसीना एक करते है की इस साल अच्छी बारिश होगी और अच्छी फसल काटकर कर्ज से मुक्ति पायेंगे। थोड़ा बहुत पैसा बचे तो मकान की मरम्मत करेंगे। कुछ बचाकर बिटिया की शादी के लिए जेवर इत्यादि की व्यवस्था करें। मगर क्या करें बेटे, यह आजकल बस सपना सा बन गया है जो नींद खुलते ही टूट कर बिखर जाता है। आप शहर वाले अच्छे हैं। दादा से सवाल करते हुए मैंने कहा कि वर्षा तो हर साल आती ही है और बहुत अवसरों पर सामान्य भी रहती है। फिर आप लोगों की क्या समस्या है ? आजकल तो मौसम की जानकारी रेडियो, दूरदर्शन और समाचार पत्रों में भी उपलब्ध होती है। आप लोग इसका फायदा क्यों नहीं उठाते ? दादाजी ने मुझे समझाते हुए कहा, बेटे ,मौसम की भविष्यवाणी और उसका सही उपयोग कैसे करना हैं और मौसम पूर्वानुमान को कैसे समझना हैं यह बात हमारे दिमाग के परे हैं। कई बार तो वर्षा का अनुमान गलत हो जाता हैं और जब कभी अच्छी बारिश का आसार देखते हुये जिन फसलों का चयन करते हैं उस समय बारिश या तो ज्यादा या फिर इतनी कम हो जाती हैं कि फसल बेकार हो जाती है।


     मैं दादाजी से गांव के संबंध कुछ जानना चाहता था। बीते सालों में गांव में क्या –क्या सुविधाएं हुई हैं। गांव के रिश्तेदारों और मेरे कुछ मित्रों के बारे में पुछ -ताछ कर रहा था। ये सब मेरे मस्तिष्क चल रहा था। इस संवाद के दौरान ही मेरे श्रीमतीजी ने जोर से आवाज लगाई। “अजी “ सुनते हो, अब तो जाग जाओ, बहुत देर से सो ही रहे हो। यह जानी- पहचानी, डरावनी आवाज सुनकर में तुरंत बिस्तर से उठ बैठा और उसने पूछा क्या कह रही हो। श्रीमती जी हंसते हुए बोली, “उठो जी “ और चाय के कप की तरफ इशारा कर-कर कहा “ ये रही आपकी निंद उड़ाने वाली चाय। चाय पियो और घर में सामान की आवश्यकता हैं। उसे आज ही ले के आना ! कल से फिर तुम्हारी वही ऑफिस की भाग-दौड़ और मेरी रोज की घर गृहस्थी की कसरत। बस यही जिंदगी बची हैं। वह ताना मारते हुयें अपने काम-काज में व्यस्त हो गई थी।



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