नैना की समझदारी
नैना की समझदारी
भाग — १
नैना घर में घुसते ही चिल्लाती है माँ कहाँ हो जल्दी से आओ न। नैना ... इस तरह चिल्ला कर क्यों मुहल्ले को इकट्ठा कर रही हो आ रही हूँ न, सुगंधी बड़बड़ाते हुए आती है। देखो न माँ मैंने प्यार से इस शो पीस को ख़रीदा था और इसे सही जगह पर रखा था, पर आप लोग तो अपनी मर्ज़ी से सामान इधर-उधर रख देते हैं ...मैंने हर एक शो पीस के लिए एक जगह बनाई है। जब अच्छे से रखना नहीं आता है तो छूते क्यों हो ? मेरे लिए इंतज़ार नहीं कर सकते क्या ....बड़बड़ाते हुए शो पीस को वहाँ से हटा देती है और पहले वाली जगह पर रख देती है और पूरे घर का मुआवजा करते हुए कहती है, अब ठीक है, चलिए मुझे चाय पिलाइए आज मुझे जल्दी से वापस जाना है क्योंकि मेरी ननद आ रही हैं खाने पर .....
सुगंधी कुछ बोल भी नहीं पाती बस सुनकर चुप रह जाती है। नैना ऐसी ही है उसे हर समान जचा कर रखना अच्छा लगता है। किसी की मजाल है, जो इधर-उधर करें फिर तो पूरे घर में हँगामा मच जाता था।
सुगंधी सोचती है ...अभी तो ठीक है पर जब अजय की शादी हो जाएगी और उसकी बहू को यह सब पसंद नहीं आया तो सोच कर ही दिल धड़कने लगता है। ख़ैर .....
नैना के लिए चाय और पकोड़े बनाकर लाई। नैना ने खा पीकर कहा ..माँ अब चलती हूँ। अगले हफ़्ते आऊँगी और बॉय बोलते हुए चली गई। तेज बारिश के बाद की शांति के समान घर पूरा हो गया। सुगंधी थकी हुई सोफ़े पर आँख मूँद कर बैठी थी। अजय हौले से माँ के पीछे आकर उनकी आँखों को बंद करता है, सुगंधी हँसते हुए कहती है ...अजय ....कब आया ? अभी आया माँ कहते हुए ...पूरे कमरे की काया पलट देख कर हँसते हुए कहता है, माँ आज दीदी घर पर आई थी क्या ? हाँ आई थी, कहते हुए रसोई में जाती है और अजय के लिए चाय पकोडे लाती है, अजय माँ को चुप देख पूछता है माँ क्या हुआ दीदी ने कुछ कहा क्या ?
सुगंधी कहती है नहीं रे.... तुम्हें तो मालूम है न ...घर की साफ़ सफ़ाई को लेकर वह बहुत ही सीरियस हो जाती है। इट्स ओके ...माँ मैं तो बचपन से उन्हें देख रहा हूँ। वह तो ठीक है, अजय मुझे फ़िक्र होती है जब तुम्हारी शादी होगी तब क्या होगा ? नैना के शादी करके जाने के बाद भी वह अपने घर का ख़याल न रखकर बार -बार मायके आ जाती है, उनके घर वाले क्या सोचते होंगे। मैं उसे कुछ कह भी नहीं पाती क्योंकि तुम्हारे पापा की मृत्यु के बाद उसने ही पूरे घर की बागडोर को अपने कंधों पर ले लिया था और उसने ही तुम्हें पढ़ाया लिखाया और इस क़ाबिल बनाया कि तुम अपने पैरों पर खड़े हो सको। तब जाकर उसने अपनी शादी के लिए हाँ कही थी। अब तो तुम्हारी अच्छी नौकरी भी लग गई है। सुगंधी कुछ और कहती इससे पहले ही अजय बोल उठा ...माँ मुझे आपसे कुछ कहना है। सुगंधी ने कहा कह न क्या कहना है.. अजय ने गला साफ़ किया और हौले से बोला माँ मैंने एक लड़की को पसंद किया है। वह मेरे साथ ही काम करती है। उसका नाम वर्षा है। अपने माता-पिता की इकलौती संतान है।
सुगंधी ने कुछ नहीं कहा ...अजय भी वहाँ से चला गया। माँ को सोचने के लिए समय देना चाहता था। दो तीन दिन बाद सुगंधी ने अजय से कहा कि वह वर्षा से मिलना चाहती है। रविवार को जब नैना आई अजय वर्षा को भी लेकर आया। दोनों वर्षा से मिलीं दोनों को वर्षा पसंद आई।
भाग - २
सुगंधी ने पंडित से अच्छा मुहूर्त निकलवाया और सुगंधी, नैना, अजय और नैना के पति नरेंद्र वर्षा के घर पहुँच गए।
दोनों परिवारों में बातचीत चली सब ख़ुश थे क्योंकि परिवारों में ताल-मेल जम गया था बस जल्दी से शादी का मुहूर्त निकलवाने की ही देरी थी। वर्षा के पिता ने इस ज़िम्मेदारी को अपने ऊपर ले लिया उन्होंने ने कहा —पंडित से मिलकर मुहूर्त निकलवाते ही मैं आप लोगों को सूचित कर दूँगा। सब ख़ुशी - ख़ुशी घर वापस आ जाते हैं। नैना कल आने का वादा कर घर चली जाती है। दिन और रात कैसे बीते पता ही नहीं चला और वर्षा ने अजय की पत्नी बनकर घर में गृहप्रवेश किया। नैना खुश थी। सुगंधी भी बहुत खुश थी।
अजय और वर्षा घूम फिरकर आ गए और दोनों ने ही ऑफिस जॉइन कर लिया। अब रूटीन हो गया सुबह दोनों एक साथ निकलते और शाम को साथ ही वापस आते। शनिवार और रविवार की ऑफिस में छुट्टी होती थी। एक शनिवार वर्षा सुबह-सुबह उठ गई और उसने घर को अपने साथ लाए सामानों के साथ अपने तरीक़े से सजा दिया। माँ बेटे दोनों उठकर बैठक में आते हैं और एक दूसरे की तरफ़ देखते हैं ...अजय तो मुस्कुराते हुए वर्षा से कहता है— वाह वर्षा क्या बात है ? तुमने तो घर की काया ही पलट दी बहुत अच्छा लग रहा है क्यों माँ.....
सुगंधी बाहर से मुस्कुराते हुए कहती है, हाँ बेटा बहुत अच्छा लग रहा है, पर मन ही मन सोचती है ..कल नैना आएगी तो क्या होगा जिसका मुझे डर था, अब वह मेरे आँखों के सामने नाच रहा है .... हे भगवान मैं कैसे सँभालूँगी इस परिस्थिति को ?
अजय और वर्षा दोनों ने मिलकर नाश्ते की टेबल सजा दी और पुकारा माँ नाश्ता तैयार है। आ जाइए मैं भी उनकी शरारत भरी बातों को सुनते हुए नाश्ता करने लगी तभी वर्षा ने कहा माँ आपकी तबीयत तो ठीक है न .... आप गुमसुम बैठी हैं। सुगंधी ने कहा नहीं बेटा ...मेरी तबीयत बिलकुल ठीक है आप लोगों की बातें सुन रही थी।
अजय ने कहा, माँ कल हम दोनों सुबह- सुबह बाहर जा रहे हैं ...ऑफिस के कुछ दोस्तों के साथ शाम को वापस आ जाएंगे आपको कोई आपत्ति तो नहीं है न ? मैंने सोचा कल रविवार है और दीदी आएगी ही तो आपका दिल भी बहल जाएगा और आप अकेले भी नहीं रहेंगी। सुगंधी ने कहा आप लोग बेफिक्र होकर जाए और एनजॉय करें मैं अपने आप को सँभाल लूँगी। वर्षा ख़ुशी से सुगंधी के गले लग जाती है और कहती है थेन्क्यू माँ ......
भाग — ३
अजय और वर्षा रविवार की सुबह - सुबह बाहर घूमने चले जाते हैं। उनके जाने के बाद सुगंधी अपने लिए चाय बनाती है और बैठक में आराम से बैठकर चाय पीते हुए सोचती है। आज अगर नैना ने कुछ कहा घर की सजावट के बारे में तो मैं चुप नहीं रहूँगी। उसे ज़रूर समझाने की कोशिश करूँगी क्योंकि वह भी तो छोटी ही बच्ची है और अपने मायके से लगाव को छोड़ नहीं पा रही है। माँ होने के नाते मुझे ही पहल करनी पड़ेगी ऐसा सोचने के बाद दिल हल्का हो गया। जल्दी से नहा -धोकर पूजा किया और नैना के पसंद का खाना बनाया और उसका इंतज़ार करने लगी। रात भर ठीक से न सोने के कारण हल्की -सी आँख लग गई थी। डोर बेल ज़ोर- ज़ोर से बज रहा था। सुगंधी हड़बड़ा कर उठती है और दरवाज़ा खोलती है सामने नैना ......क्या है माँ कब से बेल बजा रही हूँ आप हैं कि दरवाज़ा खोल ही नहीं रही थी, मैं तो डर गई थी। माँ अजय और वर्षा नहीं है क्या कहते हुए अंदर आई। सुगंधी का दिल धकधक कर रहा था। माँ मैं आप से कुछ पूछ रही हूँ ?
भाई घर पर नहीं है ? नहीं ....वे दोनों दोस्तों के साथ बाहर घूमने गए हैं। तू आजा आज तेरी पसंद का खाना बनाया है मैंने... हम दोनों मिलकर खाते हैं। नैना ने कहा रुक माँ पहले घर को तो ठीक कर दूँ फिर खाएँगे कहते हुए बैठक में पहुँचती है और चीखती है माँ यह सब क्या है, किसने इतने गंदे तरीक़े से यह सामान रखा है और सब निकालने लगी। सुगंधी ने बहुत रोकने की कोशिश की पर नैना ने उनकी एक न सुनी और पूरे घर को अपने तरीक़े से सजाकर ख़ुश हो जाती है। चल माँ अब खाना खाते हैं। दोनों बिना बात किए चुपचाप अपना खाना खा लेते हैं दोनों ही अपने अपने विचारों में थे।
नैना ने कहा माँ अब मैं चलती हूँ शाम को नरेंद्र के कुछ दोस्त आने वाले हैं और चली गई। सुगंधी सोचती है, अब अजय के आने के बाद घर का क्या हाल होगा।
अजय और वर्षा घर देर रात से आते हैं और पूछते हैं आपने खाना खा लिया है फिर गुडनाइट कहकर सोने चले जाते हैं। सुबह उठकर वर्षा जल्दी -जल्दी खाना बनाकर ऑफिस चली जाती है उसे ध्यान भी नहीं था कि घर में कुछ बदलाव आया है क्योंकि कोई सोच भी कैसे सकता है कि सजे सजाए घर को कोई फिर से सजाएँगे। ख़ैर .... फिर शनिवार आया और फ़ुरसत मिलते ही वर्षा ने देखा उसने जैसे घर को सजाकर रखा था वैसा नहीं था। उसका सारा सामान हटा दिया गया था। उसे बुरा लगा मम्मी जी से पूछना चाहा, एक बार उन पर शक हुआ कहीं उन्होंने तो नहीं.......
फिर लगा ऐसा होता तो उस दिन वे इतनी तारीफ़ ही नहीं करती। बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली जाती है, जैसे ही अजय उठा उसने चाय पीते हुए कहा......अजय आपने देखा था न पिछले शनिवार को सुबह उठकर मैंने पूरी बैठक को सजाया था। अपनी शादी में आए अच्छे शो पीसेस को मैंने यहाँ रखे थे, पर अब वहाँ नहीं हैं किसने निकाल दिए ? पूरा बदल दिया और कहाँ रख दिया होगा मेरा पूरा सामान, तीन चार घंटे लग गए थे सजाने में आप चुप क्यों हैं ? कुछ बोलते क्यों नहीं? मम्मी जी बोलिए न क्या हो रहा है घर में, तभी धीरे से अजय ने कहा ..वर्षा
दीदी आई होगी। उसने ही चेंज किया होगा। वही हर रविवार को आकर बैठक और पूरा घर सजाती है। बचपन से उसकी यही आदत है।
वर्षा ग़ुस्से में पैर पटकते हुए कमरे में चली गई। अजय वर्षा - वर्षा करते हुए उसके पीछे भागा। दोनों में बहस छिड़ गई। सुगंधी रसोई में ही रह गई, मन खट्टा हो गया कि बेटा बहू में कहा सुनी हो रही है और वह कुछ नहीं कर पा रही है। उसने रसोई का दरवाज़ा बंद किया और भगवान को याद करने लगी। बंद दरवाज़े से भी बहू की आवाज़ सुनाई दे रही थी कि हनीमून के लिए भी तुम्हारी दीदी ने तय किया हमें कहाँ जाना है और टिकट अपने हाथ में थमा दिया। अजय इस तरह वह हमारे घर के हर मामलों में दखलंदाजी करेंगी तो मुझे पसंद नहीं है, मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूँ, तुम और मम्मी जी सुनते थे मैं नहीं सुनूँगी। ससुराल में रहकर भी यहाँ की बागडोर उन्होंने अपने हाथ से नहीं जाने दिया। वाहहहहह क्या कहने है, वहाँ रहकर यहाँ के लोगों को कठपुतली के समान नचा रही हैं। बोल दो अजय, अब नहीं चलेगा उनकी मनमानी इस घर में अब यह मेरा घर है ..मैं अपने तरीक़े से उसे सजाऊँगी बस यही मेरा आख़िरी फ़ैसला है। आप लोग कैसे उन्हें बताएंगे यह आपका सिरदर्द है। कहते हुए रोने लगी ..अजय उसे क्या समझा रहा था ....मैंने सुनना मुनासिब नहीं समझा। थोड़ी ही देर में अजय के कमरे से आवाज़ें बंद हो गई। सुगंधी ने ठंडी साँस ली यह दिन देखना पड़ेगा यह मालूम था पर इतनी जल्दी सोच न सकी।
भाग -४
सुगंधी को लगा कोई डोर नॉक कर रहा है उसने उठकर डोर ओपन किया सामने नैना खड़ी थी। मैं दंग रह गई यह कब आई होगी सोच ही रही थी उसने मेरा हाथ ज़ोर से पकड़ा और लगभग घसीटते हुए ले जाकर अपने कार में बिठाया मैं कुछ कहती इससे पहले ही उसने कार स्टार्ट कर दिया। दस मिनिट में हम एक पार्क के पास पहुँचे, कार रोक कर उसने कहा आप यहीं रुकिए, मैं कार पार्क कर आती हूँ।
मैं सोचने लगी क्या बोलेगी ? नैना क्यों यहाँ लाई मुझे कुछ और सोचूँ, नैना आ गई और हम दोनों पार्क के कोने की बेंच पर बैठ गए बस मेरी गोदी में सर रखकर वह फूट फूट कर रोने लगी। मैं चुप रही उसे रोने दिया, दस मिनिट बाद उसने रुमाल से अपने आँसू पोंछे और नार्मल होने का प्रयास किया फिर कहा ...... माँ मैंने क्या ग़लत कर दिया है ? मैं कहाँ ग़लत हूँ बोलिए न ? मैंने कहा तुमने सब सुन लिया है ..... हाँ माँ, मैं जैसे ही घर के पास आई डोर खुला था धीरे से अंदर आई तो वर्षा की आवाज़ सुनाई दी। जब मेरा नाम आया तो न चाहते हुए भी मुझे सब सुनना पड़ा। माँ मुझसे वह बहुत छोटा है और पापा नहीं है इसलिए मैं सोचती थी कि उसे कोई कमी न खले और बिना उसके मुंह से बात निकले ही मैं सब उसे देना चाहती थी पर मुझे नहीं मालूम कि वर्षा को इतना बुरा लगेगा।
सुगंधी ने कहा देख नैना जब लड़की ब्याह कर आती है न तब पति के घर को ही अपना घर मान लेती है उसे ही सजाकर सँवारकर पति को ख़ुश करना चाहती है पति के माता - पिता भाई-बहन सबको अपना बनाना चाहती है और ऐसे ही उसकी पूरी ज़िंदगी कट जाती है। मायका तो उसके लिए छुट्टियों में बिताने के लिए एक पिकनिक स्पाट जैसा होता है। एक बार अगर उससे इस हक़ को छीन लें तो वह कभी भी वह इस घर को अपना नहीं पायेगी और रिश्तों में दरार पड़ने की संभावना रहती है।
मेरी बात मान अब तक जितना प्यार तुमने मायके को दिया, अब वह सब अपने ससुराल वालों को दे बेटा नरेंद्र और तुम्हारे सास - ससुर बहुत ही अच्छे हैं उन्होंने ने तुम्हारे विचारों की तुम्हारी भावनाओं की कद्र की अब अपने घर पर ध्यान केंद्रित कर और अपने परिवार को खुश रख। तुम्हारी सास भी बड़ी हो गई हैं। उनकी मदद कर लिया कर बेटा जैसा हम चाहते हैं वैसे हमें बनना भी पड़ता है। तुम चाहती हो कि तुम्हारी माँ खुश रहे उसे कोई तकलीफ़ भाई-भाभी न दें, वैसे ही तुम्हारी ननद भी सोचती होगी, तुम्हारे पति भी सोचते होंगे, इसलिए अपनी चिंता कर और अपने मायके की चिंता छोड़।
नैना कहती है माँ आपने ठीक कहा मेरी दीदी (ननद) कभी दखलंदाजी करती हैं तो मुझे ग़ुस्सा आ जाता है तो फिर वर्षा का ग़ुस्सा जायज़ है। आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। बहुत खुश हूँ आप मेरी माँ हैं, चलो माँ अब घर चलते हैं हँसते हुए कहती है आपको आपके घर छोड़ते हुए मैं अपने घर जाती हूँ।
नैना जैसे ही घर में कदम रखती है घर के सारे सदस्य आश्चर्यचकित हो जाते हैं क्योंकि इन दो सालों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि रविवार को नैना मायके से इतनी जल्दी वापस आ जाए। आते ही नैना ने कहा माँ खाना मैं बनाती हूँ आप आराम कीजिए। माँ कुछ कहती इससे पहले ही नैना ने कहा माँ यह मेरा घर है। सबके चेहरों पर ख़ुशी छा जाती है।
उधर सुगंधी का परिवार भी खुश हैं। वर्षा भी कभी रविवार या त्योहार के समय नैना को फ़ोन करके कहती है नैना दी आज आप सब खाने पर हमारे घर आ जाइए न . ...