नायिका..
नायिका..
मनोरमा नई-नई ब्याह कर आई तो पति ने बताया- "बहुत कड़क हैंचाचाजी! प्रधानाध्यापक पद से रिटायर हुए हैं! अब बस किताबें लिखते रहते हैं!स्वयं तो विवाह किया नही पर मां,बाबूजी के जाने के बाद इन्होंने ही संभाला था मुझे! अब तो किसी से ज्यादा मिलते-जुलते भी नहीं,तुम तो बस समय से चाय बना कर देती रहना!" मनोरमा जाती ससुर जी के कमरे में,और चुपचाप मेज के कोने पर चाय का कप रख वापस आ जाती!
वह कुछ सोचते से,खोए से, लिखते रहते!
उसके ब्याह से पहले से ही सुशीला बाई जी दिनभर रहकर खाना बनाना और घर के बाकी काम करती थी! तो इसलिए उसे बाकी कामों की फिक्र ना थी!
एक दिन जब मनोरमा चाय का कप रखकर पलटने ही वाली थी कि श्याम लाल जी चौंके -कौन!
"जी!मैं चाचाजी! मनोरमा ने सर का पल्लू ठीक करते हुए कहा!
श्यामलाल ने नजरें उठाकर देखा-इतनी सुंदर काया!
अभी-अभी श्रृंगार की एक कविता लिख रहे थे, लगा.. वही कविता साकार रूप में सामने खड़ी है... सुगठित काया! सुंदर नैन-नक़्श!लहराते केश...भ्रमित से मनोरमा का हाथ पकड़ कर बोले- बैठो मनोरमा! मनोरमा सकुचाती सी, अचंभित सामने की कुर्सी पर बैठ गई!
अभी-अभी नायिका की सुंदर काया का विशद वर्णन करने वाले श्यामलाल स्वयं पर नियंत्रण न रख सके और मनोरमा का पल्लू हाथ से खींच लिया!
भयभीत हिरणी सी मनोरमा उठी और भागती सी बाहर निकल गई!
"चाचाजी को चाय तुम ही पकड़ा दिया करो मुझसे ना होगा.." अगली सुबह वह पति से कह रही थी..
"क्यों? क्या हुआ? चाचा जी ने कुछ कहा क्या?" पति ने हैरानी से पूछा!
"नहीं कुछ नहीं! उनका ध्यान भंग होता है.. कहकर मनोरमा वहां से चली गई!दो दिन तक चाचाजी ने बेटे से भी कोई बात नहीं की! दो दिन बाद उसे बुलाकर बोले..बहू से कहना, मेरे कमरे में ना आया करें... "क्यों क्या हो गया चाचा जी? कोई गलती हो गई?"
"नहीं मेरा लिखने में ध्यान भंग होता है!"कहकर चाचाजी अपने काम में लग गए.. कान लगाये बैठी मनोरमा ने भी चैन की सांस ली!
