Chandra Prabha

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नारी शक्तिस्वरूपा

नारी शक्तिस्वरूपा

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अभी कुछ दिन पहले दुर्गा पूजा की धूम थी। अष्टमी पर कन्या पूजन हुआ। इस देश में स्त्रियों और कन्याओं की वास्तव में क्या दशा है यह किसी छिपा नहीं है। वे गहन तमस में डूबी हैं, किसी को उनकी चिंता नहीं है। ये बस खाना पकाने और बच्चा पैदा करने का साधन मात्र रह गई हैं। उनके साहस, वीरता ,बुद्धिमत्ता आदि गुणों का कोई सम्मान नहीं है। बल्कि उन्हें बुद्धि में कम समझा जाता है। 

     नारी का गौरव समझना होगा। घर में वह शक्ति है ,अन्नपूर्णा है।

   एक न्यायाधिकारी हैं, बाहर वे क्या न्याय करते होंगे ,जो अपने घर में ही स्वस्थ वातावरण नहीं रख सकते। वे अपनी पत्नी से बोलते नहीं हैं। उसके साथ कहीं आते जाते नहीं हैं। 

    पत्नी को कहीं आने जाने कुछ करने की स्वतंत्रता नहीं है। उसके हाथ में एक भी पैसा नहीं देते हैं। राशन वग़ैरह ख़ुद लाकर रखते हैं। दूध और चावल उतना ही आता जितना वे खाते हैं। स्त्री कैसे अपना पेट भरेगी इसकी उनको चिंता नहीं है। 

    स्त्री से चार लड़के हो गए। पुत्रों की माता होने पर भी उसे सुख नहीं। वह सुबह से उठकर काम में लगती है रात तक काम करती है। पति को खाना देना, घर की सफ़ाई, कपड़े धोना, बर्तन मलना, बच्चे पालना। पति से कोई सुख नहीं, सिवाय रूखे सूखे खाने से पेट भरने का। उनकी छोड़ी हुई जूठन से पेट भरने का। उनकी जूठी थाली का बचा खुचा खाने का। 

     एक बार उनसे पूछा कि यदि आपकी स्त्री भी खाना बनाने से मना कर दे तो? उनका स्पष्ट जवाब था कि "कहाँ जाएगी, भूखों मरेगी। उसे खाना नहीं दूँगा। मैं ही खाना दूँगा तो खाती है। उसका अपना क्या है? काम करती है तो खाना मिलता है।" यह उनकी निगाह में स्त्री का भरण पोषण था। 

     आज तक उनकी स्त्री की शकल नहीं देखी। बस सब काम सुचारु रूप से हो रहा है। पर कौन कर रहा है ,करने वाले का पता नहीं। आये गये को चाय नाश्ता मिल रहा है। पति को खाना मिल रहा है, धुले कपड़े मिल रहे हैं। पर जो दे रहा है उसका कोई सम्मान नहीं ,कोई कृतज्ञता नहीं। 

     किसे परवाह है यह जानने की कि शास्त्र क्या कहते हैं। अत्याचार सहते सहते ये ममतामयी नारियॉं यह भी भूल गईं कि वे भी मनुष्य हैं। सदियों से मजबूर ,जो केवल खाना पकाती और बच्चे पैदा करती आ रही हैं उनके मन में यह बैठा दिया गया है कि वे जन्म से दासी हैं, कमज़ोर हैं, वे केवल बच्चे पैदा करने और खाना बनाने के लिए ही बनी हैं। पुरूष की सेवा करना और उसकी आज्ञा मानना उनका धर्म है। चाहे वह आज्ञा कितनी ही अनुचित , कठोर , और निर्मम हो। स्त्री की आवाज़ को एकदम दबा दिया गया। 

     घर की रीढ़ स्त्री है। बिन घरनी घर भूत का डेरा। ममतामयी स्त्री दबती चली गयी। स्त्री को ख़ुद ही अपनी शक्ति को संभालना होगा ,अपने गौरव का ध्यान रखना होगा। 

    पार्वती भव की भवानी हैं , शिव की शिवानी हैं, रुद्र की रूद्राणी हैं, शर्व की शर्वाणी हैं, ईश की ईशा हैं ,शिव की शिवा हैं। हर स्तर पर बराबर हैं। शिव के बराबर ही दुर्गा का सम्मान है, वीरता साहस में किसी से कम नहीं। देवताओं को भी नारी का सहारा लेना पड़ा।


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