मुरारी लाल-कैड़ी वाले-भाग २

मुरारी लाल-कैड़ी वाले-भाग २

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इस संक्षिप्त भाग २ को लिखने का उद्देश्य केवल इतना बताना है कि हर कोई अगर श्री मुरारी लाल जी की तरह वसुधैव कुटुम्बकम् (सम्पूर्ण धरती ही परिवार है) की विचारधारा पर चले तो हर तरह अम्न व् खुशहाली हो।


श्री मुरारी लाल जी का जनम सन १९११ होली के रंग वाले दिन गाँव कैड़ी, तहसील शामली, ज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ।प्र।) में श्री जानकी दास जी के यहाँ हुआ।


पूर्वज


हमारे आदरणीय पूर्वज: सभी श्री / स्वर्गीय: 


[जन्म स्थान: कैड़ी गाँव, जनपद व् तहसील शामली, ज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ।प्र।)


१।  मांगे राम जी 

२।  दौलत राम जी

३।  नानक चन्द जी

४।  बलदेव सहाय जी 

५।  जानकी दास जी 

६।  मुरारी लाल जी (मार्च १९११ –  २ मई १९८९) 

७।  राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी (१० मार्च १९३४ - २८ जुलाई  २००७)   

 

श्री बलदेव सहाय जी श्री जानकी दास जी के पिता व् श्री मुरारी लाल के बाबा थे।


उस समय के चलन के अनुरूप श्री मुरारी लाल जी का अपने बाबा श्री बलदेव सहाय जी से विशेष लगाव था। 


श्री जानकी दास जी के ४ पुत्र थे: 


१। श्री बशेश्वर दयाल जी (बड़े बाबा जी) 


२। श्री मुरारी लाल जी (बिल्लू के बाबा जी)


३।  श्री वेद प्रकाश जी (मझले बाबा जी)


४।  श्री कैलाश प्रकाश जी (छोटे बाबा जी) 



परिवार 


श्री मुरारी लाल जी को अपने उपरोक्त तीनों भाइयों से बहुत प्रेम रहा।


मुरारी लाल जी ने १९३१ में रूड़की इंजिनीरिंग कॉलेज, रूड़की से इंजिनीरिंग पास की।


१९३३ से १९३६ तक सरकारी नौकरी की. 


फिर सरकारी ठेकेदार बन गए।


सन १९३२ में विवाह हुआ।


नाइन डी (9 - D), नई मंडी, मुज़फ्फरनगर में अपना निवास बनवाया, अपने बाबा जी के नाम पर, बलदेव सदन।


आठ सन्तानें हुई, सत्या (बड़ी बुआ जी), राजेन्द्र (राजे - बिल्लू के पापा), शीला (छोटी बुआ जी), नरेन्द्र (मुन्ना चाचा), देवेन्द्र (काकी चाचा), महेंद्र (बब्बू चाचा), रविन्द्र (टल्लू चाचा) व् अशोक (मन्नी चाचा)।

मुन्ना चाचा डाक्टर बन कर इंग्लैंड में बस गए। बाकी पांचो लड़कों को श्री मुरारी लाल जी ने अपने साथ ठेकेदारी में ही लगा लिया।


 मित्र


मुख्यतया दो ही मित्र थे।


पहले मित्र, श्री श्याम कृष्ण जी।


श्री श्याम कृष्ण जी, गोखले मार्ग, लखनऊ, ने इंजिनीरिंग श्री मुरारी लाल जी के साथ ही पास की। शुरू शुरू में उन्होंने भी सरकारी ठेकेदारी की। फिर अपने छोटे भाई श्री बलराम कृष्ण जी के साथ ताले बनाने की फैक्ट्री खोल ली।


बहुत वृद्धावस्था को छोड़ कर, १९३१ से १९८९ (५८ वर्ष) तक आपस में लगातार सम्पर्क में रहे। साल में सपत्नी एक बार श्री श्याम कृष्ण जी मुज़फ्फरनगर आ जाते थे। कई दिन रुकते। बीच में श्री मुरारी लाल जी के साथ हरिद्वार हो आते। श्री श्याम कृष्ण जी हरिद्वार में गंगा जी में स्नान के लिए उतरने से पहले लोटे में जल लेकर अपने पैर बहार ही धोते थे, जिससे की गंगा जी की पवित्रता बनी रहे। मुज़फ्फरनगर से भी श्री मुरारी लाल जी के परिवार से कोई न कोई उनके घर लखनऊ जाता रहता था।


दूसरे मित्र, श्री कैलाश प्रकाश जी।


श्री कैलाश प्रकाश जी, मेरठ, से थे। उस जमाने के परा स्नातक।


भारत के आजादी आन्दोलन से जुड़े रहे। शुरू में क्रांतिकारी। फिर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अंग्रेजो के शाशन काल में कई बार जेल गए।आजादी के बाद मेरठ से कई बार एम।एल।ए। रहे और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। १९७७ से १९८० के बीच श्री मोरारजी देसाई के प्रधान मंत्री काल में सांसद भी रहे। पूर्ण ईमानदार। लखनऊ में मोती महल में रहते थे। 



थर्ड जैनरेशन यानिकि लेखक बिल्लू की जैनरेशन के सभी बच्चे श्री श्याम कृष्ण जी व् श्री कैलाश प्रकाश जी को बाबा जी ही बुलाते।



 सिपहसलार 


१। बुध्धा 


बुध्धा, नई मंडी घर का मुख्य चाकर (हैड / केयर टेकर) था। गाय भैंसों की देख भाल व् उनकी सानी, दूध दुहाई, साग सब्जी लाना, श्री मुरारी लाल जी का हुक्का भरना, रात को चोकीदार की तरह बहार के आंगन में सोना व् अन्य छोटे मोटे कार्य उसके जिम्मे थे।


बच्चे उन्हें बुध्धा बाबा ही बुलाते थे।


एक और चाकर था, मनई। बहुत साल रहा।



रात को श्री मुरारी लाल जी के एक दो बच्चे घर देर से आते थे। मनई ही को बहार का दरवाजा खोलना पड़ता था। सर्दियों में रात को एक बार सोने के बाद किसी के लिए दरवाजा खोलना बहुत कष्टकारी होता है। मनई मन ही मन या धीरे से बड़बड़ाता था। लेकिन एक दिन उसके मुहं से एक बच्चे के लिए कुछ बद्ददुआ निकल गई।


सुबह उठने पर मनई को बहुत आत्म ग्लानि हुई। वह बुध्धा बाबा को बता कर अपने गाँव चला गया।


बुध्धा बाबा खुद भी हुक्का पीते थे। उन्हें टी।बी। हो गयी। ११ जनवरी १९७२ की रात में शरीर छोड़ दिया। उनका लगातार इलाज श्री मुरारी लाल जी ही कराते थे।



२। बाबू राम 


बाबू राम जी श्री मुरारी लाल जी के ठेकेदारी कार्य के सी।ई,ओ। (मुन्शी) थे।


३। मजबूत सिंह 


श्री मुरारी लाल जी के पास शुरू से ही एमबैसडर कार रही। ज्यादतर काले रंग की, नंबर था ७४९९। श्री मुरारी लाल जी खुद गाड़ी चलाना जानते थे।


फिर भी श्री मुरारी लाल जी नें मजबूत सिंह जी को कार ड्राईवरी के लिए रखा हुआ था। लम्बे आने जाने व् परिवार के लिए।


मजबूत सिंह पहले फौज में थे।


बाद के कुछ वर्षो में श्री मुरारी लाल जी के पास एक एमबैसडर कार के इलावा एक स्टैण्डर्ड कम्पनी की छोटी कार गैज़ल भी रही।


 ४। चौबे जी 


चौबे जी भी कार ड्राईवर थे। बाद में चौबे जी देहरादून में अपनी टैक्सी चलाने लगे। सन १९७४ में श्री मुरारी लाल जी को अपनी टैक्सी में श्री केदारनाथ जी व् श्री बद्रीनाथ जी ले गए।


एक समय में एक बिलांद (बालिश्त – ९ इंच ऊंचाई / मोटाई का ढेर) अच्छे साइज़ की पूड़ीयां व् एक किलो मिठाई आराम से खा लेते थे।


बाद में चौबे जी नें ड्राईवरी छोड़ कर अपने लड़के को पलटन बाज़ार, देहरादून, में फोटोग्राफी की दूकान खुलवा दी।


५। रघुबर 


चौबे जी व् मजबूत सिंह जी के जाने के बाद रघुबर ही ड्राईवरी सँभालते थे।


६। तारा चन्द


तारा चन्द को बहुत कम सुनाई देता था। पहले उसने लगभग १० साल श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी (बिल्लू के पापा) के यहाँ घरेलू काम किया। फिर उसने लगभग १५ साल श्री मुरारी लाल जी के यहाँ काम किया। 



सभी सिपहसलारों को उनके पारिश्रमिक के इलावा उनके आवश्यक खर्चों को श्री मुरारी लाल जी ही वहन करते थे। उनके सभी कार्यों में घर के बुजुर्ग की तरह पूर्ण सहयोग।


आखरी के ९ साल, १९८० से १९८९ तक श्री मुरारी लाल जी, श्री राम चरित मानस पर बहुत मनन करते। आँखे सजल हो जाती।



श्री मुरारी लाल जी, उनके उपरोक्त सभी पूर्वजों, मित्रों, सिपहसालारों व् परिवार के सदस्यों को नमन।


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