मंगल की यात्रा
मंगल की यात्रा
मंगल गृह के लिये यान निकल चुका था। अमेरिका, रूस जैसे विकसित देशों की नाकामयाबी के बाद मंगल पर इंसान भेजने की जिम्मेदारी भारत ने उठाई थी। विगत दिनों भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में जो सफलता हासिल की थी, इससे परियोजना के संपन्न होने की पूरी संभावना थी। पर सब कुछ अनिश्चितता का खेल है। बर्ना अमेरिका और रूस कौन से कम थे। रूस का अंतरिक्ष विमान तो न जाने कहाँ अंतरिक्ष की गहराइयों में गुम हो गया था। इसके बाद किसी भी देश का साहस इतना बड़ा जोखिम लेने का नहीं था। पर भारत ने साहस कर दिखाया।
सन दो हजार सत्ताईस का नवंबर का महीना था। मिशन की कमान दिवा शंकर सारस्वत के हाथ में थी। वैसे सारस्वत जी पहले कभी अंतरिक्ष अभियानों में नहीं जुड़े थे। पर भारत अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष श्री राजेश सिंह को उनमें न जाने क्या दिखाई दिया कि उन्हें बुलवा लिया। शायद इसकी वजह पुरानी मित्रता हो सकती है। क्योंकि श्री सिंह और श्री सारस्वत दोनों ही बी०टेक में सहपाठी थे।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने अजीब पहल की थी। अलग अलग विभागों के अधिकारियों को अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा बनाया था। दिवा शंकर सारस्वत भारत संचार निगम लिमिटेड में अधिकारी थे। श्री अवधेश गौतम आयुध अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक थे। श्रीमती अंजना बंसल भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड में अधिकारी थीं। राज की बात यह थी कि ये सभी राजेश सिंह के सहपाठी थे।
अंतरिक्ष सूट पहनकर पता ही नहीं चल रहा था कि कौन क्या है। राजेश खुद अंतरिक्ष यान पर बैठे थे। बजरंग बली के जयघोष के साथ ही यान मंगल की ओर उङने लगा।
पृथ्वी के कितने चक्कर काटकर यान पृथ्वी की कक्षा छोड़ेगा, इसपर बात हो रही थी।
राजेश :यान को कम से कम बीस चक्कर काटने चाहिये। तभी सफल तरीके से मंगल तक पहुंच सकते हैं।
पर परियोजना के लीडर दिवाकर को बात पसंद नहीं आयी। वैसे राजेश कह सही रहे थे। पर सही गलत की बात नहीं। परियोजना का लीडर कौन - मैं। तो तीन पांच तो करनी है।
'नहीं। बस पंद्रह चक्कर पृथ्वी के लगाने हैं। इस तरह धरती के चारों और घूमते रहे तो कब मंगल पहुंचेंगे।'
बात बढ़ गयी। राजेश का कहना था कि वह अंतरिक्ष मिशनों पर काम कर चुका है। पर सारस्वत भी कम पड़ने को तैयार नहीं। आखिर लीडर तो वही है। यह बात पहले सोचनी थी।
अंजना और अवधेश ने बीच बचाव किया।
' यह पंडित भी ना। न तब किसी की सुनता था और न अब समझने को तैयार है। मेने पूरी गणना कर ली है। बीस से कम चक्कर लगाये तो यान मंगल तो नहीं पहुंचेगा।' राजेश बोलता जा रहा था।
फिर अंजना ने न जाने क्या समझाया कि राजेश झट से सारस्वत की बात मान गया। अब सारस्वत को क्या मालूम कि यान ने पंद्रह चक्कर लगाये या बीस। पर बात लीडर की ही चलनी चाहिये। यान पूरे बीस चक्कर काटकर पृथ्वी की कक्षा से दूर चल दिया। पर इसकी भनक भी परियोजना लीडर सारस्वत को नहीं हुई। बर्ना यान में आर पार की हो सकती थी।
राजेश को अंजना ने गुरु मंत्र दे दिया। अब पूरी यात्रा में कोई विवाद नहीं हुआ। बात लीडर सारस्वत की मानी जाती। पर राजेश करता सब मन मुताबिक। सारस्वत को अपनी लीडरी पर गर्व हो रहा था। बाकी दोनों तो बस घूमने आये थे जो राजेश से मित्रता के कारण संभव हुआ। राजेश भी उस पल को कोस रहा था जब सारस्वत जी को अच्छा लगेगा, बस यह सोचकर उन्हें परियोजना का लीडर बना दिया।
मंगल तक पहुंचने में पूरे बीस दिन लग गये। सारस्वत जी की योजना इक्कीशवें दिन मंगल पर लैंड कराने की थी। पर राजेश के मुताबिक यह संभव नहीं है। अब लैंड करना होगा। तो फिर विस्फोटक स्थिति बनती। इससे पहले बाकी दोनों ने मामले को सम्हाल लिया।
मंगल पर उतरते ही सारस्वत, अवधेश और अंजना फोटो खींचने लगे। सैल्फियों का दौर चालू हो गया। एकदम लाल जमीन आग जैसी लग रही थी। इश्क का दरिया आग का बताया है। बार बार आग होने का भ्रम होता।
राजेश - साथियों। जिस काम के लिये यहाँ आये हैं, पहले उसे पूरा करो। देखो कि कहीं पानी के अवशेष हैं। कहीं कोई धातु तो नहीं। चट्टानों के सैंंपल लेने हैं।
अवधेश - हाँ तो ढूंढो पानी, खनिज सब। भाई हम तो फोटो खींचने आये हैं। राजेश तुम लग जाओ। अगर कुछ मिले तो आवाज दे देना। फोटो खींचने आ जायेंगे। सही है ना अंजना। कुछ तो बताओ।
अंजना - अवधेश सही कह रहा है। राजेश। तुम काम पर लगो।
राजेश - यह क्या मजाक है। मैंने तुम्हें इस परियोजना में केवल घूमने के लिये बुलाया था।
अवधेश - मुझे नहीं मालूम। पर हम तो घूमने आये हैं।
अंजना - और तुम हुक्म कैसे दे रहे हो। तुम क्या लीडर हो। लीडर बतायेंगे कि किसे क्या करना है।
अब तो सारस्वत के भीतर का लीडर जग गया।
सारस्वत - राजेश। तुम अपने काम पर लग जाओ। अंजना। ऐसा करते हैं। मम्मी ने जो मठरी और लड्डू रखे थे, उसे निकाल लाओ। अंतरिक्ष में तो पेस्ट पी पीकर जी खराब हो गया। न मीठा, न नमकीन। स्वाद भी बेकार। पीछे एक छोटा सा सिलेंडर ओर एक भगौना भी रखा था। यहीं चाय बनाओ। हम चाय और मठरी खाते हैं। राजेश जी। आप सब ढूंढ ढाढ लेना। कुछ गलती नहीं होनी चाहिये।
राजेश - जी लीडर।
और मंगल की धरती पर भारतवासी चाय मठरी की दावत मनाने लगे। मिशन की फिक्र बस राजेश को थी। सो वह अपना काम करता रहा। दो दिन लगकर सारी जानकारी जुटाई।
राजेश - लीडर। कुछ यान में गड़बड़ दिखती है। मुझे देखना होगा।
सारस्वत - ठीक है। तुम यान ठीक करो। अंजना। तब तक एक एक कप चाय और हो जाये।
सारस्वत, अवधेश और अंजना चाय मठरी में मग्न थे कि यान के स्टार्ट होने की आवाज आयी। यान मंगल की धरती से ऊपर उठ रहा था। तीनों चाय छोड़ यान के पीछे भागे।
सारस्वत चीख चीख कर बोल रहे थे - राजेश। जल्दी यान नीचे उतार। ऐसे नहीं उड़ सकते। सबको लेकर आये हो और सभी को लेकर जाना होगा। मैं लीडर हूं। लीडर की बात सुननी होगी।
अरे। क्या सपने में बड़बड़ा रहा है। इतनी रात को क्या चीख रहा है। "मम्मी के फटकारने पर नींद टूट गयी।
तब जाकर पता चला कि मैं तो सपना देख रहा था। पर आज राजेश की खबर तो लेनी है कि वह हमें मंगल पर क्यों छोड़ आया, भले ही सपने में।
