Diya Jethwani

Children Stories Drama Inspirational

3.4  

Diya Jethwani

Children Stories Drama Inspirational

मित्रता....

मित्रता....

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बहुत समय पहले की बात हैं एक राज्य में एक पंडित हुआ करते थे..। पंडित दीनदयाल..। वो बेहद निर्धन थे..। उनके परिवार में उनकी पत्नी और एक बेटी थीं..। किसी तरह राज्य के मंदिरों में पुजा पाठ करके या फिर लोगों से दान पुण्य मिलने पर अपना और अपने परिवार का गुजारा कर रहें थे..। थोड़ा थोड़ा करके उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ रकम जमा कर ली थीं..। वो रकम उसने अपने एक मित्र सोहनलाल के पास रख ली थीं और कहा था की जब बेटी की शादी होगी तब वो वापस ले जाएगा..। सोहनलाल एक किराणे की दुकान चलाता था...। 

दिन बितते गए और एक रोज़ पंडित की बेटी की शादी तय हुई..। पंडित शादी की तैयारियों के लिए अपने मित्र के पास खुद की जमा पूंजी लेने गया...। पंडित ने सोहनलाल से रुपये मांगे लेकिन सोहनलाल मुकर गया और बोला :- तुमने कब मेरे पास रुपये रखें.. कोई लिखा हुआ कागज.. कोई सबूत हैं तुम्हारे पास..? 

पंडित सोहनलाल की बातें सुन बहुत दु:खी हो गया.. क्योंकि उसने दोस्ती पर विश्वास करके ऐसा कुछ जरुरी ही नहीं समझा था..। 

बेटी की शादी सिर पर थीं.. रुपयों की जरूरत तो उसे बहुत थीं..। लेकिन वो कर भी क्या सकता था.. । अत: वो अपना सा मुंह लेकर सोहनलाल की दुकान से बाहर आ गया..। बाहर आकर उसने सोचा की क्यूँ ना राजा से शिकायत करूँ ..। क्या पता वो सोहनलाल से मेरे रुपये दिलवा दे..। ऐसा सोचकर वो राजा के समक्ष गया और अपनी आपबीती बताई..। 

राजा ने पंडित से कहा :- कल नगर में मेरी सवारी निकलेगी.. उस वक्त तुम अपने मित्र की दुकान पर ही खड़े रहना..। 

पंडित :- लेकिन इससे क्या होगा महाराज..? 

राजा :- वो तुम्हें कल समझ आ जाएगा..। 

पंडित :- ठीक हैं महाराज.. जैसी आपकी आज्ञा...। 

ऐसा कहकर पंडित विचार करता हुआ वहाँ से चला गया..। 


अगले दिन नगर में राजा की सवारी निकली.. राजा पर फूल मालाएं चढ़ाई गई...। फुल बरसाएं गए..। सब तरफ हर्षोल्लास का माहौल था..। सवारी नगर से होते होते सोहनलाल की दुकान के सामने आई. ..। 

दुकान के सामने आते ही राजा ने अपनी बग्घी को रोकने का आदेश दिया..। बग्घी के रुकते ही राजा नीचे उतरे और पंडित (जो पहले से ही राजा की आज्ञा पर वहाँ खड़ा था.. ) के नजदीक गए और उनके पैर छुकर बोले :- अरे महाराज... आप यहाँ ... ऐसे क्यूँ खड़े हैं..। आप आइये हमारे साथ बग्घी में विराजमान होइये..। 

पंडित कुछ समझ नहीं पाया वो चुपचाप राजा के साथ उनकी बग्घी में बैठ गया..। कुछ दूर चलने के बाद राजा ने पंडित को बग्घी से उतार दिया और कहा :- मैंने तो अपना काम कर दिया हैं पंडित... अभी आगे तेरा भाग्य..। ऐसा कहकर राजा वहाँ से चला गया..। लेकिन पंडित अभी भी समझ नहीं पाया की ये कैसी मदद की हैं राजा ने..। 

वही दूसरी ओर....

ये सब देख सोहनलाल का माथा ठनका..। वो अपने मुनीम से बोला :- ये तो मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी....। इस पंडित की तो राजा से इतनी सांठगांठ हैं..। इसने तो कभी मुझे बताया ही नहीं..। अगर इसने कहीं राजा से मेरी शिकायत कर दी तो... । हे राम... फिर तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी..। ये पंडित तो साला बहुत पहुंची हुई चीज़ निकला..। मुनीम तू अभी का अभी जा और पंडित को कहीं से भी ढूंढ कर मेरे पास ले आ..। 

मुनीम सोहनलाल की बात सुन पंडित की तलाश में निकल गया....। कुछ दूर चलने पर उसने देखा पंडित एक पेड़ के नीचे बैठा था...। मुनीम पंडित को अपने साथ सोहनलाल की दुकान पर लेकर आया...। 

सोहनलाल :- अरे पंडित...आओ... आओ.... अरे मैंने बहुत सोचा तब मुझे याद आया की तुमने सच में सालों पहले मुझे कुछ रुपये दिए थे रखने के लिए.. ये लो तुम्हारे रुपये..। 

सोहनलाल ने कुछ अतिरिक्त रुपयों से भरी हुई एक पोटली देते हुए कहा:- अरे पंडित तुम्हारी बेटी यानि मेरी बेटी... ये कुछ रुपये मेरी तरफ़ से भी.. भेंट स्वरूप उसके ब्याह के लिए..। 

पंडित ये सब देखकर बहुत खुश हुआ और अपने पैसे और सोहनलाल की भेंट लिए हुए अपने घर आया और धूमधाम से अपनी बेटी की शादी करवाई.....। 


तात्पर्य....... जब एक मात्र राजा से संबंध होने पर हमारी मुश्किलें आसान हो सकती हैं तो उस जगत के राजा... यानी उस परमात्मा से अगर हम संबंध जोड़ ले तो कोई समस्या.. कोई कठिनाई... कोई परेशानी... कोई अन्याय होगा ही नहीं.....। 


जय श्री राम .....। 



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