महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण पर "मुखिया जी" ने एक मीटिंग बुलवाई । पार्टी के सब प्रमुख लोगों को बुलवाया गया । सांसद, विधायक, जिला प्रमुख, प्रधान और सरपंच । सभी के सामने मुखिया जी ने अपनी बात रखी
"बहनों और भाइयो, अब जमाना बदल रहा है । आगे का समय महिलाओं का होगा । आज महिलाएं हर क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही हैं । वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं । हम यों भी कह सकते हैं कि वे पुरुषों से आगे निकल रही हैं ।हमको भी अपनी पार्टी का विस्तार करना है तो हमें भी महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा पार्टी में लाना होगा । इसलिए हमें महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देना होगा । इस बारे में आप सब अपने अपने सुझाव दें कि हम किस प्रकार महिला सशक्तिकरण कर सकते हैं" । और इतना कहकर मुखिया जी बैठ गए ।
मीटिंग में खुसुर पुसुर होने लगी । महिला सशक्तिकरण की मीटिंग में गिनती की पांच महिलाएं मौजूद थीं ।एक तो मुखिया जी की पत्नी थीं । दूसरी मुखिया जी की "अघोषित पत्नी" थीं । इनके बारे में सब कोई जानता था कि "दिन में भैया और रात में सैंया" वाली बात लागू होती थी उन पर । मगर किसी की मजाल नहीं थी जो इस संबंध में एक शब्द भी कह जायें । पार्टी से निष्कासित थोड़ी होना था किसी को । तीसरी महिला मुखिया जी की साली थीं जो मुखिया जी का बाहर भीतर सबका हिसाब रखती थी । चौथी महिला पार्टी कार्यालय की साफ सफाई करती थी । और पांचवीं महिला एक सुंदर सी अदाकारा थी जिसे पार्टी में लिया ही इसीलिए गया था कि कुछ लोग उस सुंदर महिला को देखने के लिए ही पार्टी ज्वाइन कर लें । बाकी जितनी भी सांसद, विधायक, प्रमुख, प्रधान या सरपंच महिलाएं थीं उनकी जगह उनके पति या पुत्र पधारे थे ।
एक बुजुर्ग सांसद खड़े होकर कहने लगे " माननीय मुखिया जी । आपका कहना एकदम दुरस्त है । आज समय की मांग है कि हमें महिलाओं को आगे लाना होगा । इसके लिए मेरा प्रस्ताव है कि हमारी पार्टी की मुखिया भी एक महिला ही हो तो बेहतर होगा । इससे यह मैसेज जायेगा कि हमारी पार्टी कितनी मजबूती से महिला सशक्तिकरण में लगी हुई है" ।
उपस्थित सभी लोगों ने इस प्रस्ताव का करतल ध्वनि से स्वागत किया । बुजुर्ग सांसद का सीना फूलकर कुप्पा हो गया । उन्होंने गर्व के साथ मुखिया जी को देखा । मुखिया जी उन्हें खा जाने वाली निगाहों से घूर रहे थे । मुखिया जी "मुखिया" पद छोड़ना नहीं चाहते थे । मुखिया जी की भाव भंगिमा देखकर उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई । उन्हें अब पक्का यकीन हो गया कि अगली बार सांसद का टिकट उन्हें नहीं मिलेगा । एक क्षण को वे हताश हो गए मगर अगले ही पल उनके चेहरे पर मुस्कान तैर गई । वे खड़े होकर कहने लगे " अपनी पार्टी के मुखिया के पद के लिए मैं मुखिया जी की पत्नी का नाम प्रस्तावित करता हूँ" । अब एक बार फिर से उन्होंने मुखिया जी को देखा । अबकी बार मुखिया जी की आंखों से कृतज्ञता बरस रही थीं । यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पास हो गया ।
एक विधायक जी खड़े हो गए और कहने लगे "माननीय मुखिया जी । आप हमारी पार्टी के मुखिया ही नहीं अपितु मुख्यमंत्री भी हैं । आजकल आप देख ही रहे हैं कि विधानसभा में विधायकों की संख्या कितनी कम रहने लगी है । इसका कारण मैं बताता हूं । पहली बात तो यह है कि पार्टी में महिला हैं ही बहुत कम । जो हैं उन्हें टिकट भी नहीं दिया जाता है । इसलिए महिलाएं विधानसभा में चुनकर भी बहुत कम आती हैं । बिना महिलाओं के विधानसभा सूनी सूनी सी लगती है । जब तक सुंदर सुंदर चेहरे नजर नहीं आयें, विधानसभा में आने की इच्छा ही नहीं होती है । दाढी मूंछों को देख देखकर तंग आ गये हैं हम । कंटीले नैनों वाली, छबीली सूरत वाली, लंबे काले बाल वाली, मतवाली चाल वाली, सुरीली आवाज वाली अगर विधानसभा में हों तो बहस में भाग लेने में मजा आये । आखिर हम लोग इंप्रेस किसे करें ? मुछमुंडों को ? इसलिए मेरी गुजारिश है कि पार्टी में 50% महिलाएं हों और कम से कम 50% टिकट महिलाओं को दिए जाएं" ।
इस पर बवाल मच गया । बुजुर्ग नेता लोग इसके पक्ष में नहीं थे मगर "युवा" नेता इस पर अड़ गए । राजनीति में 60 साल का नेता भी "युवा" ही कहलाता है । 80 पार वाला बुजुर्ग कहलाता है । प्रस्ताव सबको पसंद आया मगर 50 के बजाय 33 % ही रखा गया । कारण पूछने पर बताया गया कि एक महिला दो पुरुषों पर भी भारी पड़ती है इसलिए 33 % महिलाएं 67 % पुरुषों पर भारी पड़ेंगी । प्रस्ताव ध्वनि मत से पास हो गया ।
एक नेता खड़े होकर कहने लगे "आजकल लोगों की प्रवृत्तियों में बहुत परिवर्तन हो रहा है । लोगों को "मसाज" करवाना बहुत अच्छा लगता है । इस काम को महिलाएं बहुत अच्छी तरह से करती हैं और पुरुष भी मसाज महिला से ही करवाना पसंद करते हैं । इसलिए एक तो हर गली मौहल्ले में कम से कम एक "मसाज सेंटर" खोल दिया जाये और इसमें 100 % आरक्षण महिलाओं के लिए कर दिया जाये । पैसा आयेगा तो महिला स्वतः सशक्त हो जायेगी । पुरुषों को भी आनंद आयेगा" ।
प्रस्ताव सबको जंच रहा था । बल्कि एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि विधानसभा में भी एक मसाज केंद्र होना चाहिये क्योंकि सबसे अधिक जरूरत यहीं पर है । दोनों प्रस्ताव पास हो गए ।
एक नेता ने चिंता जाहिर करते हुए कहा "जिस तरह कन्या भ्रूण हत्या का चलन बड़ी तेजी से हो रहा है तो इससे भावी पीढियों को ना तो शादी के लिए लड़की मिलेगी और ना ही "नाच गाने" के लिए । लोग एक एक महिला को लेकर लड़ेंगे । मार काट मच जायेगी । और फिर हम नेता लोग भी दो दो चार चार "रखैलें" कैसे रखेंगे ? इसलिए यह कानून बना देना चाहिए कि कम से कम एक लड़की हर दंपत्ति को पैदा करनी होगी । नहीं तो उसे कड़़ी सजा होगी । लड़की के जन्म पर 10000 रुपये दिये जायें । उसकी पढ़ाई फ्री होगी । उसकी शादी के लिए 100000 रुपए दिये जाएं । इससे गजब का महिला सशक्तिकरण होगा और अपने लिए भी जुगाड़ होता रहेगा" ।
बात थोड़ी कड़वी थी, मगर थी सोलह आने सच । यह प्रस्ताव भी पास हो गया ।
एक युवा नेता खड़ा हुआ और कहने लगा "मुखिया जी, आपने हर विधायक को एक एक बाबू दिया है । मेरा यह कहना है कि हमें चाहे एक ही बाबू दे दो मगर दो एक महिला ही । उसके होने से हमारी कार्य क्षमता दुगनी हो जाएगी" । सभी लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया । यह भी पास हो गया ।
एक नेता ने खड़े होकर कहा "मुखिया जी , विधानसभा में बहस के दौरान सब लोग बोर हो जाते हैं । बीच बीच में "नाच गाने" का प्रोग्राम होता रहे तो हम लोग स्फूर्त रहें । इससे महिलाओं का सशक्तिकरण भी होगा और हमें भी आनंद मिलेगा" । बात सभी के दिल की थी इसलिए मान ली गई ।
इसके बाद मीटिंग समाप्त हो गई । अखबारों में सुर्खियां बनी । मुखिया जी की वाह वाह होने लगी । हालांकि वाह वाह करवाने के लिए मुखिया जी के द्वारा मीडिया को भरपूर विज्ञापन दिये गए मगर विज्ञापनों पर पैसा कौन सा मुखिया जी की जेब से जा रहा था । जिन मीडिया संस्थानों को पैसा नहीं मिला उन मीडिया घरानों ने "पोल खोल अभियान" शुरू कर दिया । एक अखबार में एक रिपोर्ट छपी कि किस तरह "महिला विकास मंत्री" महिलाओं का विकास करते हैं ? उनकी रात अक्सर किसी "नारी सहायता केंद्र" में ही गुजरती है । महिला कर्मचारियों का स्थानांतरण "सेवा" के बदले किया जा रहा है । समाज कल्याण मंत्री ने किस तरह अपने बेटे की पत्नी को दहेज के लालच में जिंदा जला डाला । चिकित्सा मंत्री रात में कैसे नर्सों से अपनी "सेवा" करवाते हैं । ये लोग इसी तरह महिला सशक्तिकरण करते हैं ।
अगले ही दिन ऐसे सभी मीडिया घरानों को साध लिया गया और फिर उन्हीं चैनलों पर, अखबारों में मुखिया जी ए्वं पार्टी के कसीदे काढ़े जाने लगे ।
इस तरह महिला सशक्तिकरण शुरु हो गया ।