मेरे गन्नू
मेरे गन्नू
यूं तो! हमारे पुराणों, धर्म ग्रंथों में भगवान गणेश की पूजा का विस्तृत वर्णन है। हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि चाहे किसी भी देवी - देवता की पूजा हो, सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा से ही शुरुआत की जाती है, सर्वप्रथम भगवान गणेश को पूजा में स्थान दिया जाता है। बाद में अन्य किसी देवी - देवता की पूजा की जाती है।
भाद्रपद मास की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि भगवान गणेश 11 दिन के लिए सबके घर आते हैं और सबको आशीर्वाद देते हैं और फिर 11वीं दिन चले जाते हैं। इन11 दिनों में लोग उनकी खूब पूजा अर्चना करते हैं, उनका स्वागत करते हैं ,वह प्रसाद चढ़ाते हैं, उनके बाल रूप की पूजा करते हैं ।
ऐसे ही हमारे घर में बाल गणेश ( गन्नू ) का आगमन हुआ, मेरी बड़ी ख्वाहिश थी कि मेरे यहां भगवान गणेश बाल रूप में आए। लेकिन ऐसा संयोग ही नहीं बन पा रहा था। कहते हैं ना की जब वो चाहेंगे तभी वह आएंगे आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लो जब उनको आना होगा तभी वह आएंगे। इस साल शुभ संयोग बना और मेरे गन्नू मेरे घर भी आए। उनके यहां आने के नाम से ही मन झूमनें लगा और मन में उत्साह जगा। लगा कि मेरे गन्नू मेरे घर पर इस बार आएंगे । गन्नू के आने का इंतजार ही नहीं हो पा रहा था ,लग रहा था कितने जल्दी समय बीते और हम अपने गन्नू को अपने घर लेकर आए। जब गणेश चतुर्थी का दिन आया और हम लोग सुबह - सुबह ही तैयार हो कर वहां गये, जहां गन्नू की मूर्तियां मिल रही थी उस स्थान में पहुंचते ही ऐसे एहसास हुआ कि “मानो कोई कब से इंतजार कर रहा हो” गन्नू को लेते ही ऐसा एहसास हुआ कि कोई बालक कितने दिनों बाद अपने चाहने वालों के गोद में बैठा हो और उसकी गोद में बैठ कर खुशी से झूम रहा हो। गन्नू को गोद में बैठाकर एक अलग ही अनुभूति महसूस हो रही थी, मन गदगद हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि गन्नू खुद कह रहे थे कि हम आपके घर में आ रहे हैं ।गन्नू को लेते ही ऐसा एहसास हुआ कि कोई बालक कितने दिनों बाद अपने घर में आया हो ।
फिर मैंने द्वार पर उनकी (गन्नू) पूजा की, पैर धोए, उनका स्वागत किया,जैसे किसी मेहमान का हम स्वागत करते हैं। फिर उनके लिए उचित स्थान बनाया और उसमें गन्नू को बैठाया, उनकी पूजा की और जो खाना उनको पसंद है (मोदक) उसका भोग चढ़ाया, फिर गन्नू को सुलाया। इन 11 दिनों तक इसी तरह पूरी तैयारी से गन्नू की पूजा की, हर एक दिन बीतता गया, गन्नू से एक अनोखा रिश्ता बन गया ।उनके लिए सुबह से तैयारी करना कि हर रोज किस तरह का भोग, हवन ,पूजन ,भजन आदि करना है। उनके (गन्नू) आने के बाद 11 दिन तक कुछ काम करने की फुर्सत हि नही थी। सिर्फ गन्नू की सेवा करना ही काम था उन्हें सुलाना , जगाना उनकी पूजा करना। सारा समय बीतता गया, पता ही नहीं चला कब 11वां दिन आ गया और गन्नू के जाने का दिन आ गया मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे गन्नू के जाने का दिन आ गया। इतना जल्दी समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला? उस दिन ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बालक अपनी मां को छोड़कर जा रहा हो ।
अब गन्नू के भेजने की तैयारी शुरू हो गई उनके लिए भोग तैयार करना, जाने की तैयारी करना, प्रसाद, हवन की तैयारी की। अब गन्नू के जाने की बारी आई तो मेरा मन उन्हें जाते देख ही नहीं पा रहा था ।ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मेरा बेटा ही मुझे छोड़कर जा रहा हो फिर घर के लोग बोले – विदा करो ! गन्नू की विदाई तो करना ही होगा। गन्नू को भेजोगे तभी तो फिर वापस आएंगे और फिर मेरे गन्नू चले गए और मेरे गन्नू बोले फिर से वापस आऊंगा। उस दिन तो मेरा मन बहुत दुखी था लग रहा था कि जैसे मेरा बालक मुझे छोड़कर साल भर के लिए कहीं चला गया हो ।घर पूरा खाली लग रहा था कि जैसे घर की सारी रौनकता ही खत्म हो गई हो। लग रहा था अब कुछ काम ही नहीं । सबके लिए “ भगवान गणेश ,गजानन, गणपति, बप्पा उनके लाखों करोड़ों नाम” लेकिन मेरे लिए सिर्फ एक ही नाम (गन्नू) मेरे गन्नू जरूर आना और जल्दी आना ।
