मेरा दोस्त - सुपरमैन
मेरा दोस्त - सुपरमैन
लेखिका: मरीना द्रुझीनिना
अनुवाद: चारुमति रामदास
रूसी भाषा की कक्षा में एक सरप्राइज़ हमारा इंतज़ार कर रहा था.
“डिक्टेशन आज नहीं होगा!” तात्याना एव्गेन्येव्ना ने घोषणा की. “उसके बदले आप लोग “मेरा दोस्त” विषय पर एक निबंध लिखो. उम्मीद करती हूँ कि आप इस काम को ज़िम्मेदारी और कलात्मकता से करेंगे. तो, आपसे दोस्तों के संक्षिप्त और स्पष्ट वर्णन की उम्मीद करती हूँ, जो या तो आपकी कक्षा के हो सकते हैं या बस, जान-पहचान वाले!”
“मैं पेत्का के बारे में लिखूँगा!” मैंने फ़ैसला किया. “हो सकता है, वह मेरा अच्छा दोस्त न हो, मगर जान-पहचान का है – ये बात तो सही है. और ठीक मेरे आगे ही बैठता है – उसका वर्णन बड़े आराम से हो सकता है!”
इसी समय पेत्का ने जैसे महसूस किया कि मैं उसका निरीक्षण कर रहा हूँ, और उसने अपने कान हिलाए.
और इसीलिये मैंने निबंध की शुरूआत इस तरह से की :
“मेरा दोस्त बहुत बढ़िया तरह से कान हिलाता है...” पेत्का का वर्णन करना बेहद दिलचस्प था. मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि कब तात्याना एव्गेन्येव्ना मेरे पास आईं.
“वोवा, होश में आ! सबने अपना काम पूरा भी कर लिया!”
“मैंने भी ख़तम कर लिया है!”
“और ये, इतने मगन होकर तुम किसके बारे में लिख रहे थे?”
“ये, हमारी क्लास के एक व्यक्ति के बारे में है,” मैंने भेद भरे अंदाज़ में जवाब दिया.
“बढ़िया!” टीचर चहकीं. “ज़ोर से पढ़, और हम बूझेंगे कि यह व्यक्ति कौन है.”
“मेरा दोस्त बहुत बढ़िया तरह से कान हिलाता है,” मैंने शुरूआत की. “हाँलाकि उसके कान बड़े-बड़े हैं, गोखरुओं जैसे, और पहली नज़र में बिल्कुल बौड़म जैसे लगते हैं...”
“अरे, ये पाश्का रमाश्किन है!” ल्युद्का पुस्तिकोवा चिल्लाई. “उसके बिल्कुल ऐसे ही कान हैं!”
“ग़लत!” मैंने उसकी बात काटी और आगे पढ़ने लगा. “मेरे दोस्त को पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं लगता. मगर उसे खाना खूब अच्छा लगता है. मतलब, मेरा दोस्त खाऊ है. इसके बावजूद, वह दुबला-पतला और फ़ीका-फ़ीका है. दोस्त के कंधे सिकुड़े हुए हैं, आँखें छोटी-छोटी और चालाक. देखने में तो वह बेहद मामूली है – जैसे स्कूल के युनिफॉर्म में दुबली-पतली दियासलाई. या मुरझाया हुआ कुकुरमुत्ता...”
“तब ये व्लादिक गूसेव है! ऐसा ही तो दुबला-पतला है वो!” ल्युद्का पुस्तिकोवा फिर चिल्लाई.
“मगर कान तो वैसे नहीं हैं!” दूसरे लड़के चिल्लाये.
“शोर बंद करो!” टीचर ने कहा. “वोवा ख़तम करेगा, तभी बहस करेंगे!”
“कभी-कभी मेरा दोस्त बेहद ख़तरनाक हो जाता है,” मैंने आगे पढ़ा. “और कभी कभी बेहद ख़तरनाक नहीं होता. उसे औरों पर हँसना पसंद है. और उसके दांत अलग-अलग जगह से बाहर निकलते हैं. पिशाच की तरह.”
“बच्चों! ये तो ख़ुद वोव्का ही है!” अचानक पेत्का चिल्लाया. “सब कुछ वैसा ही है! कंधे भी! ख़तरनाक भी! और दाँत भी बाहर निकलते हैं!”
“सही है!” दूसरे लड़कों ने समर्थन किया. “बिल्कुल वोव्का! तूने ख़ुद का बहुत अच्छी तरह से वर्णन किया है!”
कुछ लड़कियाँ तो तालियाँ भी बजाने लगीं.
“जब सबने एक साथ पहचान लिया, इसका मतलब है, कि सचमुच में मिलता-जुलता है,” टीचर ने कहा. “मगर तुम अपनी बेहद आलोचना करते हो. जैसे कोई कार्टून बनाया हो!”
“अरे, ये मैं नहीं हूँ! आप लोग कुछ नहीं समझते!” मैं एकदम चुप हो गया और गुस्से से भर्राने लगा. “ये पेत्का है! क्या ज़ाहिर नहीं है?!”
सब ठहाके लगाने लगे, और पेत्का ने मुझे जीभ दिखाई और अपनी कुर्सी पर उछलने लगा.
“पेत्या, शांत हो जा! अब हम सुनेंगे कि तूने क्या लिखा है,” तात्याना एव्गेन्येव्ना ने कहा. “और तुझे, वोवा, वैसे कुछ और सोचना होगा.”
मैं बैठा, और पेत्का खड़ा हो गया. और ज़ोर से बोलने लगा.
“मेरे दोस्त का चेहरा बेहद ख़ूबसूरत है! वह चौंकाने वाली हद तक हट्टा-कट्टा, अक्लमन्द और ताकतवर है. और ये बात फ़ौरन समझ में आ जाती है. उसकी ऊंगलियाँ लम्बी और मज़बूत हैं, मसल्स फ़ौलाद जैसे हैं, मोटी गर्दन और बेहद चौड़े कंधे हैं. मेरे दोस्त के सिर पर तो आराम से कोई ईंट तोड़ सकते हो. मगर दोस्त पलक भी नहीं झपकायेगा. सिर्फ मुस्कुरायेगा. मेरा दोस्त दुनिया की हर चीज़ जानता है. मुझे उसके साथ इधर-उधर की बातें करना अच्छा लगता है. कोई भी ज़रूरत पड़े तो मेरा दोस्त फ़ौरन मेरी मदद करने आ जाता है. चाहे दिन हो या रात!”
“ऐसा होता है दोस्त!” तात्याना एव्गेन्येव्ना चहकी. “जलन होती है! मैं भी ऐसे सुपर-दोस्त से कभी इनकार नहीं करती! चलो, बच्चों, जल्दी से बताओ, कौन है वो?”
मगर हम कुछ भी नहीं समझे और अविश्वास से एक-दूसरे की ओर देखते रहे.
“हाँ, मुझे मालूम है! ये सिल्वेस्टर स्टॅलोन है!” पुस्तिकोवा अचानक उत्तेजित हो गई.
मगर किसी ने भी इस बेवकूफ़ी पर कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दिखाई. करने लगा बकवास स्टॅलोन पेत्का के साथ इसके बारे में- उसके बारे में!
मगर तात्याना एव्गेन्येव्ना इत्मीनान करती रही:
“और दोस्त इसी क्लास का है?”
“इसी का!” पेत्का ने पुष्टि की.
हम सब फिर से आँखें फ़ाड़कर चारों ओर नज़रें घुमाने लगे.
“अच्छा, पेत्या, हार मान लेते हैं,” आख़िरकार टीचर ने कहा. “तेरी कहानी का हीरो आख़िर है कौन?”
पेत्या ने आँखें नीचे कर लीं और शर्माते हुए बोला:
“ये, मैं हूँ”.