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Priyanka Gupta

Others

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Priyanka Gupta

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मैं हूँ न तुम्हारे साथ day-7

मैं हूँ न तुम्हारे साथ day-7

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चेहरा सब कुछ कह देता है। चेतन का चेहरा तो भावना एक मिनट में पढ़ लेती थी। चेतन के चेहरे को पढ़कर भावना समझ गयी थी कि एजेंट ने पैसे लौटाने से इंकार कर दिया है। चेतन अभी-अभी घर लौटा था। स्टूल पर बैठकर अपने जूते खोल रहा था। 

अपने आपको सामान्य दिखलाने के लिए उसने भावना से पूछा "रिशु सो गया क्या?"

"हाँ यहीं पर तो सो रहा है।" वहाँ सो रहे अपने बेटे की तरफ इशारा कर भावना किचेन में चेतन के लिए पानी लेने चली गयी थी। पानी लेने जाना तो एक बहाना मात्र था वह स्वयं बहुत निराश थी। अपने आंसुओं को पीकर उसे चेतन को हिम्मत जो देनी थी। अपने आपको सम्हालकर भावना किचेन से पानी का गिलास हाथ में लेकर आ गयी थी। 

चेतन अब कमरे में रखी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया था। कुर्सी पर बैठा हुआ वह एकटक रिशु की तरफ देखे जा रहा था। सोच रहा था कि इस मासूम को वह एक अच्छी परवरिश भी नहीं दे पा रहा है। भावना ने एक बार चेतन की तरफ देखा और फिर उसके पास आकर खड़ी हो गयी। 

"सब ठीक हो जाएगा। मैं हूँ न तुम्हारे साथ।" भावना ने पानी का गिलास चेतन को पकड़ाया और उसके कन्धे पर अपना हाथ रख दिया। भावना का प्रेमभरा स्पर्श पाकर चेतन के दिल में जमा हुआ दुःख उसकी आँखों से बाहर आ गया और आँसू बनकर बह निकला। भावना ने चेतन का सिर अपने अंक में छिपा लिया था। 

"भावना मैंने अपने साथ-साथ तुम्हारी भी ज़िन्दगी ख़राब कर दी। सोचा था कि तुम्हें दुनिया-जहां की खुशियाँ दूँगा लेकिन दो वक़्त की रोटी भी जुटाना मुश्किल हो रहा है।" चेतन ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा। 

"तुम्हें किसने कहा कि मैं खुश नहीं हूँ। मैं तुम्हारे साथ बहुत ही खुश हूँ। मुझे अपने निर्णय पर न तो कल कोई पछतावा था और न आज कोई पछतावा है और न ही कल कोई पछतावा होगा।" भावना ने कहा। 

"लेकिन अब हम क्या करेंगे?",चेतन ने कहा। 

"मेहनत। वैसे भी हमें थोड़े न पता था कि कोरोना आ जाएगा और हम इस मुसीबत में फँस जाएँगे।" भावना ने कहा। 

भावना और चेतन एक साथ कॉलेज में पढ़ते थे। भावना के मम्मी-पापा विदेश में बस गए थे भावना भारत में अपनी दादी के पास ही रहकर पढ़ रही थी। साथ पढ़ते-पढ़ते भावना और चेतन एक-दूसरे को पसंद करने लगे ;दोनों एक -दूसरे से शादी करना चाहते थे । दोनों ने तय किया था कि कॉलेज ख़त्म होने के बाद दोनों ही पहले अच्छी नौकरी ढूँढेंगे और उसके बाद शादी करेंगे ।लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही भावना के मम्मी -पापा ने उसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया । विदेश में रहने के बावजूद भी उनकी सोच भी यही थी कि ," लड़की को सेटल करने के लिए उसकी शादी होना जरूरी है ।" उन्होंने तो उसे पढ़ाया भी इसलिए था ताकि उसकी शादी के लिए एक अच्छा लड़का मिल जाए । 

ऐसी परिस्थितियों के कारण भावना और चेतन को अपने घर पर एक -दूसरे के बारे में बताना पड़ा । जाति अलग-अलग होने के कारण दोनों के घरवाले शादी के लिए तैयार नहीं थे।भावना के माता -पिता को तो जैसे ही चेतन के बारे में पता चला ,उन्होंने तुरंत भारत आकर भावना की किसी दूसरे लड़के से शादी करवाने की योजना तक बना डाली थी । विदेश में रहने के बावजूद भी भावना के मम्मी -पापा जातिवाद की जंजीरों से खुद को मुक्त नहीं कर पाए थे । 

भावना की दादी ने अपनी पोती के निर्णय को सम्मान देते हुए दोनों की शादी करवा दी। धीरे-धीरे भावना के घरवालों ने तो चेतन को अपना भी लिया लेकिन चेतन के घरवालों ने भावना को नहीं अपनाया। उन्होंने तो चेतन से भी सारे संबंध तोड़ लिए। 

चेतन के पापा ने उसे बुलाकर कहा कि "जायदाद में से अपना हिस्सा ले लो और हमेशा क लिए हमें भूल जाओ। "

"पापा जब आपका आशीर्वाद और प्यार ही नहीं मिल सकता तो जायदाद लेकर क्या करूँगा। आपको मुझ पर न सही;लेकिन अपनी परवरिश पर तो यकीन होगा। मैं अपने परिवार को अपने दम पर चला सकता हूँ।" चेतन ने अपन मम्मी-पापा के पैर छुए औरअपना घर छोड़ दिया था। 

भावना स्कूल में पढ़ाने जाने लगी और चेतन कैब चलाने लगा। दोनों की शादीशुदा ज़िन्दगी प्रारम्भ हो गयी थी।स्वाभिमानी चेतन ने भावना के परिवारवालों से भी किसी प्रकार की मदद लेने से इंकार कर दिया था। भावना भी चेतन के इस स्वाभिमान का सम्मान करती थी। 

सब कुछ ठीक चल रहा था। दोनों की ज़िन्दगी पटरी पर आ गयी थी। चेतन ने इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा कर रखा था और भावना ने MBA। परिस्थितियों के कारण दोनों को जो भी नौकरी मिली वह करना शुरू कर दिया था। भावना के मम्मी-पापा ने कई बार कहा कि "आप दोनों यहाँ आ जाओ अच्छी नौकरी मिल जायेगी। टिकट्स और वीजा आदि हम करवा देते हैं। "

लेकिन चेतन ने मना कर दिया। ऐसा नहीं था कि "चेतन विदेश नहीं जाना चाहता था। लेकिन वह अपने बलबूते पर जाना चाहता था। " चेतन और भावना ने पैसे जोड़ने शुरू भी कर दिए थे। 

इसी बीच भावना गर्भवती हो गयी थी। भावना और चेतन की ज़िन्दगी में उनके बेटे रिशु का आगमन हुआ। छोटे बच्चे को संभालने वाला कोई नहीं था इसीलिए भावना ने नौकरी छोड़ दी। दोनों ने अच्छी बचत कर ली थी सब कुछ ठीक चल रहा था। चेतन ने टूरिस्ट वीजा के लिए ब्रोकर को पैसे दे दिए थे। चेतन और भावना को 90 डेज का वीजा भी मिल गया था। चेतन ने ब्रोकर के जरिये फ्लाइट के टिकट्स भी ले लिए। 

भावना बहुत खुश थी कि "चलो रिशु को दादा-दादी का न सही नाना-नानी का प्यार तो मिल जाएगा। "

चेतन ने सोचा था कि "वहाँ जाकर नौकरी ढूँढ लेगा और फिर वर्क परमिट के आधार पर दूसरा वीजा मिल जाएगा। वैसे भी भावना के पापा तो हर बार यही कहते हैं कि एक बार यहाँ आ जाओ फिर सब ठीक हो जाएगा। "

लेकिन हम इंसान जैसा-जैसा सोचे सब वैसा ही हो जाए तो ख़्वाब और हकीकत में अंतर ही समाप्त हो जाएगा।कोरोना रुपी पत्थर ने एक झटके में चेतन और भावना के सारे सपनों को काँच के जैसे चकनाचूर कर दिया। भावना नौकरी छोड़ चुकी थी चेतन की नौकरी भी चली गयी। पहले की बचत धीरे-धीरे खर्च होने लगी कहते भी हैं कि बैठे-बैठे खाने से तो पहाड़ भी ख़त्म हो जाते हैं। 

चेतन ने ब्रोकर से टिकट्स के पैसे लौटाने के लिए निवेदन किया लेकिन ब्रोकर ने मना कर दिया। आज भी चेतन बड़े भारी मन से घर लौटा था। 

"चेतन हम कोरोना पीड़ित व्यक्तियों के लिए टिफ़िन सेन्टर शुरू कर सकते हैं। तुम डिलीवरी का काम अच्छे से कर सकते हो। हिम्मत मत हारो मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।" भावना ने कहा। 

"लेकिन भावना कैसे शुरू करें ?हमारे पास तो कुछ भी नहीं है । ",चेतन ने कहा । 

"यह लो मेरी अँगूठी;इससे हमें गोल्ड लोन मिल जाएगा । ",भावना ने अपनी दादी से शादी में उपहार में मिली अंगुठी चेतन की तरफ बढ़ाते हुए कहा । 

"यह कैसे हम गिरवी रख सकते हैं ?",चेतन ने कहा । 

"बाद में छुड़ा लेंगे । मैं अपने मम्मी-पापा के सामने गलत साबित नहीं होना चाहती । हम दोनों मिलकर प्रयास करेंगे तो इस मुसीबत से बाहर आ जाएंगे । अब ज्यादा सोचो मत । ",भावना ने कहा । 

गोल्ड लोन लेकर दोनों ने टिफ़िन सेंटर शुरू किया । दोनों ने सोशल मीडिया द्वारा अपने टिफ़िन सेन्टर का प्रचार किया । शुरू में २-4 ऑर्डर मिले ;लेकिन उन्होंने अपने खाने की गुणवत्ता बनाये रखी । माउथ पब्लिसिटी से 2 महीनों में ही उनका टिफ़िन सेन्टर अच्छा चल गया । 

कोरोना संकट के बाद चेतन की नौकरी भी वापस लग गयी;भावना ने अपना टिफिन सेन्टर जारी रखा। 


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