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Chandra prabha Kumar

Children Stories Comedy

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Chandra prabha Kumar

Children Stories Comedy

मास्टर जी

मास्टर जी

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बचपन में ज़्यादातर पढ़ाई घर पर ही हुई। घर पर मास्टरजी पढ़ाने आते थे। एक पढ़ने का कमरा था जिसमें नीचे दरी बिछी हुई थी। उसी पर बैठकर हमलोग पढ़ते थे। किताब रखने के लिए छोटी छोटी टेबिल थी। बड़े भाई उन्हीं मास्टरजी से पढ़ चुके थे ,अब हम लोगों की बारी थी ।हम दो बहनें और एक भाई अब उनसे पढ़ते थे। 

मास्टर जी दीवार के पास बैठते थे और बाक़ी तीन तरफ़ से हम तीनों उन्हें अपनी अपनी टेबिल से घेरे रहते थे। मास्टर जी बारी बारी से हम लोगों को पढ़ाते थे। जब कभी हमारी तरफ़ ध्यान नहीं देते थे ,तो हम अपनी मेज़ें आगे खिसका कर 'मास्टरजी!मास्टरजी !' बोलकर उनका ध्यान खींचते थे। कभी वे सुन लेते तो कभी कहते थे ,'अपनी मेज़ें पीछे हटाओ'। उनके पीछे दीवार थी उनको किसी तरह की कोई जगह पीछे हटने की नहीं थी। 

जब वो हमारी नहीं सुनते और भाई को बताने समझाने में लगे रहते ,तो मुझे ख़ाली समय मिलता। उसके चेहरे की परछाई पीछे दीवार पर पड़ती थी। मैं पेंसिल से उस पर रेखाएं खींचने लग जाती। उनकी नाक की बड़ी लंबी परछाईं पड़ती थी। मैं शरारत से उनकी नाक और लंबी खींच कर पेंसिल से बनाती। हम दोनों बहनों को हँसते देखकर वे पूछते हैं कि क्यों हँस रहे हो। फिर दीवार की ओर देखते, पेंसिल से उनकी परछाई पर लकीरें खिंची हुईं मिलतीं। तो वे कहते कि दीवार पर पेन्सिल मत चलाओ।

अब वे न डॉंट पाते, न कुछ कह पाते। कभी कभी कहते कि ," ड्रॉइंग बाद में करना ,अब पढ़ाई करो"। पर हम लोग बाद में भी हँसते रहते। 

मास्टर जी को अंग्रेज़ी नहीं आती थी। हमारे बड़े भाई अब उनसे नहीं पढ़ते थे और स्कूल जाकर अंग्रेज़ी पढ़ना सीख गए थे। 

मास्टर जी ने एक दिन हम से ऐसे ही कहा था कि मैं तुम्हारे बड़े भाई से अंग्रेज़ी पढ़ना सीखूंगा। हमें बड़ा अचंभा लगा कि मास्टरजी को भी पढ़ने की ज़रूरत है। 

हमने बड़े भाई से कहा कि मास्टरजी आपसे अंग्रेज़ी पढ़ेगें। भाई ने सुना तो वे हँस दिये। वे बड़े मज़ाकिया थे। वे बोले कि 'मैं अंग्रेज़ी तो पढ़ा दूँगा, पर पिटाई भी करूँगा गलती करने पर'। सुनकर हम लोगों की भी हँसी नहीं रुकी, कि मास्टर जी भी पढ़ेंगे और ठीक नहीं करने पर पिटेंगे भी। 

जब दूसरे दिन मास्टरजी पढ़ाने आए तो मैंने उनसे कह दिया ,"भाई आपको अंग्रेज़ी तो पढ़ाएंगे पर बोल रहे थे कि वे मास्टरजी की पिटाई भी करेंगे ,ठीक से नहीं सीखने पर"। मास्टर जी तो चुप हो गए ,कुछ बोले नहीं। 

भाई को जब यह बात पता , तो वे परेशान हुए। मुझसे कहने लगे कि " मैंने तो हँसी में कहा था, तुम्हें समझना चाहिए कि कौन बात कहने की है ,कौन नही। मैं मास्टरजी की सच में पिटाई थोड़े ही करता। "

ख़ैर ,बात आयी गयी हो गई। पर मेरी साफ़ गोई से बात ऐसे बनी कि मास्टरजी ने फिर कभी अंग्रेज़ी सीखने की बात नहीं उठायी।


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