Avneet kaur

Children Stories Inspirational

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Avneet kaur

Children Stories Inspirational

माँ

माँ

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ये कहानी है दो भाई बहन की, जिनके ऊपर अपने बाप का सहारा नहीं था। ये उस बीते कल की बात है जब वो छोटे बच्चे अपनी माँ के साथ रहते थे। अमन और रिया हँसते खेलते रहते खुशी से पूरा दिन निकाल देते। उनकी माँ अपने दोनों बच्चों को देख कर पूरा दिन निकाल लेती। बच्चे छोटे थे और आमदनी का कोई साधन नहीं था।


पैसा कमाने के लिए उनकी माँ ने कहीं पर काम करना शुरू किया, जिसकी वजह से दो पैसे आने लगे और घर को आमदन का साधन मिल गया। उन पैसों से वो घर का खर्चा चलाने लगी। वो कभी भी किसी से पैसे माँग कर अमन और रिया की जिद्द पुरी न करती। एक - एक दिन गुजरता गया , अमन और रिया भी बढ़े हो गए । वो कहते हैं समय के साथ खुशियाँ भी आती है, वैसा ही हुआ। वो छोटा सा परिवार ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा। अमन की माँ पहले किसी के घर पे काम करती थी। बाद में वो एक कॉलेज में काम करने लग गई। वो रोज सुबह और शाम को काम के लिए जाती। दोपहर में वो घर वापिस आ जाया करती थी। वहाँ पर वो खाना बनाने का काम करती थी और वहाँ से ही वो अपने बच्चों के लिए खाना ले आती थी। अमन आठ साल का था वहीं रिया तीन साल की थी।


 अमन स्कूल जाता था और उसकी माँ काम पर जाती थी। रिया को वो सामने घर वालों के पास छोड़ जाती थी। जब दिन में काम से वापिस आती तो रिया को सामने घर से ले आती थी। उसी समय अमन भी स्कूल से लौट आता और सभी बैठ कर खाना खा लेते। अमन , रिया और उनकी माँ फिर आराम करते। शाम को अमन खेलने जाता था। उसकी माँ काम करने चली जाती थी। समय के साथ चीज़ों के बढ़ते दाम से आमदन कम पड़ने लगी थी। घर में बहुत तंगी आने लग गई। उनकी माँ अमन और रिया को नए कपड़े ला कर देती पर अपने लिए कुछ भी न लाती। पुराने कपड़ों से ही वो गुज़ारा कर लिया करती थी।


 वो कहते है हिम्मत हो तो इंसान कभी भी नहीं टूटता। एक दिन रिया को बहुत तेज़ बुख़ार हो गया। माँ बहुत घबरा गई। वो जल्दी ही रिया को डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिख कर दे दिए करवाने के लिए, पर उसके पास पैसे न थे। जहाँ पर वो काम करती थी ,वहां से पैसे उधार ले लिए। उसने रिया के टेस्ट करवाए और दवाई लेकर रिया को घर वापिस साथ ले आई। अब रिया की बीमारी की वजह से उन्हें काम से भी छुटी लेनी पड़ी। अमन रोज की तरह स्कूल जाता था। काम पर न जाने की वजह से उनकी माँ को खाना भी घर पर बनाना पड़ता था। पर पैसे इतने नहीं थे कि अच्छा खाना बनाया जा सके। इसलिए वो लोग सादी रोटी ही खा लेते। किसी तरह उन्होंने यह समय निकाल लिया। रिया अब बहुत हद तक ठीक हो गई थी। उनकी मम्मी फिर से काम पर जाने लग गई।

अमन के साल के फाइनल पेपर आ गए। अमन की मम्मी तो अनपढ़ थी, पर उसका सपना था कि उसका बेटा बढ़ा होकर बहुत बड़ा आदमी बने। वो अमन को हमेशा पढ़ने के लिये समझाती थी और कहती थी कि तुम हमेशा अच्छे इंसान बनो।


 अमन के फाइनल पेपर हुए और वो अगली कक्षा में हो गया। जैसे ही वो अगली क्लास में हुआ, उसकी फीस भी बढ़ गई। घर के ख़र्च फिर से बढ़ने लगे। अमन ने फिर अखबार बेचना शुरू किया। वहाँ से वो भी दो पैसे कमा लेता। इसी तरह घर का खर्च चलने लगा। रिया भी बढ़ी होती जा रही थी। अमन का फाइनल परीक्षा का रिजल्ट आ गया। वो अपनी क्लास में पहले नंबर पर आया। समय के साथ रिया भी स्कूल जाने लग गई। अमन और रिया दोनों स्कूल जाने लगे। अमन की माँ काम करती और दोनों की स्कूल की फीस जमा करवाती। समय गुज़रता गया।


 दोनों बढ़े हुए और कॉलेज में पढ़ने लग गए। अमन एक दुकान में काम भी करता था और कॉलेज की पढ़ाई भी करता। रिया सारा घर का काम सम्भाल लेती थी और कॉलेज भी जाती थी। छोटा सा परिवार खुशी खुशी रहने लग गए। 


एक दिन रिया कॉलेज से घर आ रही थी कि कार से टकरा कर उसकी मौत हो गई। अमन और उसकी माँ ये दर्द सहन न कर पाए, रिया उनकी लाडली जो थी। पर कहते हैं ना, वक्त के साथ हर घाव भर जाता है। वो लोग रिया को वापिस तो न ला सके पर उसको खोने के गम से उबरने लगे थे। अमन ने कॉलेज की पढ़ाई पुरी की और नौकरी पर लग गया। अमन अपनी माँ को वो हर ख़ुशी देना चाहता था जिसके वो हकदार थी। माँ की छाया अपनी औलाद पर आँच भी आने नहीं देती, वहीं उसकी औलाद हर खुशी अपनी माँ के कदमों में रख देती हैं।


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