माँ की अनन्त यात्रा
माँ की अनन्त यात्रा
पलकों को मूँदते ही माँ के द्वारा अनन्त यात्रा की ओर प्रस्थान करते समय का दृश्य सामने घूम जाता है।माँ द्वारा घर्र घर्र आवाज़ करनें के साथ खुली आँखो से अपलप मुझे देखने पर मुझ बेअक्ल का उन्हें उलाहना देना कि "क्या माँ मुझे देख भी रही हो और घर्राटे भी भर रही हो ।"हर पल याद आता है।
नहीं जानती थी कि ये उनकी अनन्त यात्रा पर जाने से पूर्व का संदेश है। कुछ समझ ही नहीं पाई और उनको उसी अवस्था में अस्पताल में छोड़ घर पर इंतजार करते पापा के पास आ गयी ।
कहतें हैं कि भविष्य के बारे में कुछ पता नहीं होता पर आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो भविष्य के गर्भ में छिपे रहस्यों के ज्ञाता होते हैं ।और हमारे भारतवर्ष में ऐसे सिद्ध राह चलते मिल जाते हैं ।करीब साल भर पहले हमारी माँ यूँ ही घर के दरवाजे पर खड़ी थीं कि धोती कुर्ता पहने दो नवयुवकों नें "बुढ़ापा कैसा होगा" इस जिज्ञासा को शान्त करते हुये उनके पास आ कर उनका भविष्य बताते हुए कहा कि बहुत अच्छा गुजरेगा ।एक लड़का कहीं दूर से आयेगा और खूब सेवा करेगा।
आज जब माँ नहीं हैं तो हमनें पाया कि सब सच कहा था उन अनजान योगियों नें ।जिस अनजान लड़के को हमनें सहयोग के लिये रखा था ।उसनें माँ की अपनों की तरह बहुत सेवा की।हमारे सामने अनन्त यात्रा पर प्रस्थान करते समय वह भी सामने मौजूद था। जबकि पूरी तरह जी जान से लगे रहनें वाले उनके अपनें उनसे दूर थे।
एक बात और मैं उन सभी नवयुवकों के जज्बे को सलाम करतीं हूँ जिन्होंने आगे बढ़ कर रक्तदान किया ।ये सभी उनको नानी व दादी कह बहुत प्यार करते थे।। एक तरह से इस विषय में उनको मैं बहुत भाग्यशाली ही कहूँगी ।
सभी नें उनको बचाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वो शायद बहुत पहले ही दुनिया का माया मोह त्याग चुकी थीं तो उनके शरीर नें वह दिया हुआ रक्त भी स्वीकार नहीं किया ।
जीवन पर्यंत जहाँ से वो सदा दूर ही भागती थीं ।दवा बिल्कुल भी नहीं खाना चाहतीं थीं । नलियों द्वारा स्वयं हमनें उन्हें दवा दी जो फीका दलिया उन्हें पसन्द नहीं था उसी का पानी दिया और सब त्याग वो अनजान लोगों के मध्य ही कुछ कहे बगैर अस्पताल परिसर से ही अनन्त यात्रा पर चल दीं।जहाँ रहो माँ खुश रहो यही ईश्वर से प्रार्थना है