मां के उपकार
मां के उपकार
कितना छोटा सा शब्द है पर कितनी मजबूती से जोड़ने वाला शायद लोहे की जंजीर से भी अधिक मजबूत। मेरे जीवन में भी मां हमेशा ही साथ खड़ी रहीं। पापा बहुत अनुशासित थे इसलिए उनसे बड़ा डर लगता था। कुछ भी पूछना हो या कहीं जाने की अनुमति लेनी हो तो मां मध्यस्थ बन बात पहुंचाने का काम करतीं। मैंने भी बी एड की एंट्री परीक्षा दी थी जो कि पापा को नहीं पता था मां को बताया था। परिणाम आया और मैं अच्छे गुणों से पास भी हुई पर अब समस्या यह थी कि बी॰एड॰ के लिए दाखिला लेना था । वैसे मैं एम ए प्रथम वर्ष में थी लेकिन द्वितीय वर्ष में ड्राप लेकर बी एड करना था लेकिन पापा से कैसे पूछा जाए पापा पढ़ाई के खिलाफ नहीं थे नहीं तो मुझे एम ए कैसे करने देते, पर नौकरी के खिलाफ थे लड़कियां नौकरी नहीं करेंगी 1999 की बात है मां ने मेरा साथ दिया और मैंने बी एड में दाखिला ले लिया और अपनी पढ़ाई करने लगी तब तक पापा को पता नहीं चल पाया उन्हें लगा कि मैं एम ए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहीं हूं ।
फिर एक दो महीने बीत जाने पर मां ने पापा को समझाया तो पापा मान गये । सच में उस दिन मां ने मेरा साथ न दिया होता तो आज मैं अध्यापिका ने होती। पर दुख इस बात का है कि अब मां इस दुनिया में नहीं है। पर हमेशा मेरा मन उनके लिए नतमस्तक रहेगा हर सीख को मैं साथ लेकर चलती रहूंगी। मां तुम्हारे सभी उपकारों का बहुत उपकार मन से तुम्हें नमन ।