लक्ष्मी
लक्ष्मी
डॉ। मुक्ति के मोबाइल पर व्हाट्सएप पर मैसेज था, "आज दोपहर को बेटी बचाओ बेटी पढाओ का सरकारी कार्यक्रम है, उसमें चलना है।मैं तुम्हें लेने एक बजे आ जाऊंगी।"
"ओके" ,लिख कर स्माइली डाल कर वह पेशेंट को देखने में लग गई।
डॉ। मुक्ति और डॉ। गार्गी आपस में अच्छी दोस्त हैं इसके बावजूद दोनों की सोच में जमीन आसमान का फर्क है।एक सिद्धांतों को पकड़ कर चलने वाली तो दूसरी पैसे के पीछे भागने वाली। इसी वजह से दोनों के बीच कई बार लंबी बहस भी हो जाया करती थी।
उन्हें कार्यक्रम मे पहुंचने में देर हो गई थी। इसलिये वह दोनों पीछे की सीट पर बैठ गई थीं।शहर की सम्मानित धनी महिला मेयर श्री मती हर्षा जी की स्पीच चल रही थी,“हर स्त्री का निजी अधिकार है कि वह कब गर्भवती हो हम नारियों का व्यक्तिगत अधिकार होना चाहिये कि उसे, गर्भ धारण करना है या अभी नहीं करना। । ये इक्कीसवीं सदी है अब स्त्री पुरुष या परिवार का दबाव नहीं स्वी कार करेगी।आधुनिक स्त्री शिक्षित है, सशक्त है वह अंतरिक्ष तक अपने कदम बढा चुकी है, वह जेट चला रही है।आप स्वयं बतायें कि कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां स्त्री की पहुंच न हो। अपने गर्भ में पल रही बेटी की रक्षा करना हम स्त्रियों का धर्म है। ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने गर्भ में पल रही बेटी की रक्षा करें। उसके साथ अपने गर्भ की रक्षा करना हमारा अधिकार भी है।हम सब महिलाओं को यह संकल्प करना होगा कि हम अपने गर्भ में बेटी की हत्या नहीं करेंगें वरन् उसकी रक्षा करेंगें।’’
हॉल तालियों से गूंज उठा था न।उनकी दर्प भरी ओजस्वी स्पीच से सभी महिलायें प्रभावित और गद्गद दिखाई पड़ रही थीं । हर्षा जी उत्साह और जोश से भर उठीं । उन्होंने सभी महिला से अपने हाथ उठाकर संकल्प लेने को कहा, कि आज के बाद हम किसी के दबाव में अपनी कोख में पलने वाली बेटी की हत्या नहीं करेंगीं।
डॉ मुक्ति ने भी उनके भाषण से प्रभावित होकर गंभीरता पूर्वक संकल्प लिया था तो दूसरी ओर डॉ। गार्गी के चेहरे पर व्यंग से भरी हुई मुस्कान थी ।कार्यक्रम समाप्त होने के बाद दोनों अपने अपने घर चली गईं ।
डॉ मुक्ति के नर्सिंग होम से इमरजेंसी काल था ,इसलिये वह नर्सिंग होम पहुंचीं ।वहां हर्षा जी को देख चौंक उठीं,’’ डॉ। प्लीज मेने आपका बहुत नाम सुना है, प्लीज मुझे मेरी मुसीबत से छुटकारा दिलवाइये।’’
“क्या प्राब्लम है?’’
“कल मेरे पति ने अल्ट्रासाउंड करवाया तो मेरे गर्भ में बेटी है। दो बेटी तो मेरे पास पहले ही हैं।इतने बड़े अम्पायर की देखरेख के लिये तो एक बेटा तो चाहिये ही, आप ही बताइये, क्या मैं गलत कह रही हूं।हमारे पुरखे और पितर तो मोक्ष के लिये भटकते ही रह जायेंगें। उनको मोक्ष प्राप्त हो उन्हें पानी मिले इसलिये हमारा भी तो कुछ कर्तव्य बनता है। किसी भी तरह आप इस गर्भ से मुझे मुक्ति दिलवाइये। मैं आपको मुंहमांगी फीस दूंगी। वह रुआंसी हो उठीं थीं।’’
मुझे उनकी दर्प भरी हुंकार और गर्वित चेहरा याद आ रहा था। वहां सबके साथ उन्होंने भी संकल्प लेकर गर्व महसूस किया था।
“आप दोपहर में तो बहुत बड़ी बड़ी बातें बोल रहीं थीं।’’
“आप वहाँ थीं क्या? ऐसी मीटिंग में तो अपने चेहरे पर नकली मुखौटा लगाना पड़ता है।’’
मैंने उन्हें लगभग डांटते हुये नर्सिंग होम से बाहर तो कर दिया लेकिन मन विक्षोभ से भर उठा था।तनाव और उलझन के कारण वह घर आ गईं थीं । वह अपने बगीचे में तेज तेज कदमों से चहलकदमी करके अपना तनाव कम करने की कोशिश कर रहीं थीं ।साथ में स्त्री को अपने ऊपर पहने हुये मुखौटे को देख मन बेचैन ,दुखी और उदास था। तभी उनका मोबाइल बज उठा था।उधर डॉ। गार्गी की चहकती हुई आवाज थी,’’ आज मजा आ गया। आज पांच हजार के काम के लिये मुझे एक लाख मिल गये। तुम बड़ी आदर्श वादी बनती हो न, जो अपने चौखट पर आई लक्ष्मी को ठोकर मार दिया।