क्यों कि लड़के रोते नहीं
क्यों कि लड़के रोते नहीं
एक लड़के की डायरी का पन्ना
आज हृदय में तूफान आ गया। 24 साल से आंसुओं का जो समंदर सीने में छुपाया था, वो बांध तोड़ बह निकला। बहुत रोया मैं। बहुत कोसा समाज को कि आखिर लड़कों को क्यों रोना नहीं सिखाता। भूल गया मैं सबकी नसीहतें कि लड़के हो, इसलिए रोना नहीं। बचपन में जब भी चोट लगती, खून बहता तब दादी कहती बहादुर लड़के रोते नहीं।
दीदी शादी कर के ससुराल चली, मन बहुत भारी था। माँ का रो रो कर बुरा हाल था। लेकिन पापा चुप थे, एक आँसू भी नहीं आने दिया। सबक दिया कि कितना भी दुख हो, लड़के कभी नहीं रोते। माँ असमय दुनिया से चली गई। इतने रिश्तेदार थे, कैसे रोता? लड़का जो था। पग पग पर समाज यही सिखाता कि लड़के बहादुर होते हैं, मज़बूत होते हैं, रोते नहीं। जब किसी को रोते देखता तो मन भर आता। आँसू पलकों का बांध तोड़ बह निकलने को आतुर हो जाते। दिल कहता रो ले जी भर। दिमाग कहता ,रोना मत क्यूँ कि तुम लड़के हो।
दिल और दिमाग की इस बहस बाज़ी में दिमाग जीत जाता। लेकिन आज दिल दिमाग पर हावी हो गया। लड़का हार गया, इंसान जीत गया। आज मैं फूट फूट कर रोया जब सुबह अखबार में एक लाचार लड़की की खबर पढ़ी। वह भी मजबूत थी, बहादुर थी ,निर्भया थी।ले किन उसके सामने लड़के थे। वो लड़के जिसे समाज ने सिखाया कि रोना नहीं।वे मज़बूत थे, उन्होंने एक लड़की के कोमल अंगों में लोहे की छड़ें घुसेड़ दीं। उन्हें उस लड़की के रोने पर रोना नहीं आया क्यों कि वे लड़के थे। वह रो रही थी और वहशी अट्टहास कर रहे थे।
नहीं, मैं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकता। काश समाज रोने दे लड़कों को जब भावनाएं काबू में न रहें। काश माता पिता रोने दें लड़कों को जब उन्हें चोट लगे, जब उनके अपने उन्हें छोड़ कर जाएं। आज मैं खूब रोया। अब फिर मेरा मन भर आया है। अब मैं फिर से खूब रोऊंगा। कोई मत कहना कि रोना नहीं- क्यों कि लड़के रोते नहीं!
