कुर्सी
कुर्सी
नन्हा मोहित जन्मदिवस समारोह में आया था। बच्चों को गेम खिलाये जा रहे थे।"म्यूजिकल चेयर", जैसे ही म्यूजिक रुकता, एक चेयर कम कर दी जाती, फिर गेम चालू।
मोहित चौकन्ना से गेम खेल रहा था। अंत में बची एक कुर्सी पर वो ही विराजमान था। गर्व से उसका सर ऊंचा हो गया।
पढ़ाई में मोहित का मन लगता नहीं था। नेतागिरी उसके परिवार व स्वभाव में थी। बाद होते-होते मोहल्ले, फिर जिले की समस्याएं सुलझाते सुलझाते, देश की समस्याएं सुलझाने का संकल्प लिया, और पड़ गया, कुर्सी के चक्कर में।
साम-दाम, दंड-भेद सब तरह के उपाय आज़मा, वो सर्वोच्च कुर्सी पर पहुंच ही गया। बचपन का म्यूजिकल चेयर गेम दिमाग में आज तक ताज़ा था।
पर जब मंत्रिमंडल के गठन की बारी आई, तो दांतों तले पसीना आ गया।
कभी दलित, तो कभी मुस्लिम तो कभी किसी जाति को प्रतिनिधित्व न मिल पाने की कह कर, हो हल्ला मच जाता।
ये सब गणित बैठाते बैठते, काफी समय लग गया। फिर बात आई किस राज्य को कितना प्रतिनिधित्व?
कुर्सियों की संख्या और पदों की संख्या, बढ़ना जारी थी।
मोहित महाशय का सार घूम गया इनको सुलझाते, सोचा किस झमेले में पड़ गया।
क्योंकि अगली समस्या थी, किसको सूखा विभाग दिया गया और किस को मलाईदार---
हर कर सोचा, इस्तीफा दे दूं, पर वो भी कब आसान था?
अपने उतरने नहीं देंगे, विपक्ष बैठने नहीं देगा।
एकांत कमरे में बैठे मोहित महाशय उस घड़ी को कोस रहे थे
जब वो पड़े कुर्सी के चक्कर में!!!!