सुरभि शर्मा

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4.6  

सुरभि शर्मा

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कुछ अधूरे अध्याय

कुछ अधूरे अध्याय

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गोवा का बागा बीच यूँ तो वैसे भी बहुत गुलजार रहता है,।पर आज उसकी रंगीन शाम कुछ अलग इंद्रधनुषी सी थी।जाने उस माहौल का सुरूर था या हाथ में पकड़ी हुई ठण्डी बीयर का नशा कि हर कोई इस शाम को यूँ ही रोक देने के लिए बैचैनी से मचल रहा था।जगमगाती रोशनी में उफनते लहरों का शोर और इधर तट पर बजता हुआ रोमानी संगीत मन में कुछ इच्छाओं को जगाता हुआ दिल में कुछ बौखलाहट भर रहा था ।हर तरफ शोर - शराबा, रंगीनियों में डूबे लोग, कुछ जोड़े पूरी दुनिया से बेखबर हाथों में हाथ डाले अपनी दुनिया में मगन ।और अपने चेयर पर बैठे हुए मेरे जेहन और मेरी आँखों में सिर्फ वो लड़की घूम रही थी, जो इस वातावरण के अनुकूल तो बिल्कुल नहीं लग रही थी ।लाल पीली लहरिया साड़ी, हाथों में चूड़ा, कमर तक लहराते बाल और मांग में दमकता लाल सिंदूर ।


भारत के इस विदेशी संस्कृति वाले पर्यटन स्थल पर ये देशी पहनावा विदेशियों पर्यटकों के बीच कौतूहल बना था और भारतीय पर्यटकों के बीच माखौल, दिखा था मुझे कुछ मिनी स्कर्ट और बेकलेस टॉप वाली आँखों में उसका व्यंगात्मक उपहास ।पर वो इन सबसे बेखबर रेत से घरौंदा बनाने में मशगूल थी, शायद वो अपने आने वाले कल के खूबसूरत सपनों को सजाने की कोशिश कर रही थी, और शायद समय उसका उपहास बनाने की कोशिश में लगा था ।


                '2'


घरोंदे बनाने और साथ ही साथ अपने बालों को सम्भालने की क़वायद में उसके चेहरे पर मिट्टी ने थोड़ा शृंगार कर दिया था । ये शोर मचाती हुई लहरे ज्यादा चंचल थी या उसके उलझते बालों की लटे अंदाजा लगाना मुश्किल था ।जाने क्यों मुझे मेकअप से इन लिपे - पुते चेहरों की जगह उसका गीली मिट्टी से सना चेहरा ज्यादा लुभा रहा था ।


उसे अपनी बाहों की छांव में जकड़ने के लिए मेरे कदम अपने - आप लहरों की तरफ बढ़ चले । ज्यों ही सोचा कि उसे "अपनी शीतल छांव में ढक लूँ" पीछे से आवाज सुनायी दी ।


"महक अब चलो भी बोला न बाबा सॉरी अब से नहीं होगा ऐसा, कान पकड़ता हूँ ।"ये आवाज सुन मैं कुछ चौंका था ।

चेहरा दिखा तो थोड़ी हैरत हुई, क्योंकि इसे मैंने कई बार सिर्फ गोवा के बीच पर ही नहीं बल्कि दूसरे शहरों के बीच पर भी देखा था अकेले नहीं बल्कि अक्सर कुछ हसीन चेहरों के साथ ।


"मैं थोड़ा मनमौजी हूँ अक्सर कहानियों की तलाश में कहीं भी पहुँच जाया करता हूँ ।"


वो दोनों अपने होटल की तरफ बढ़ चले थे ।मैं भी लाख कोशिश करने के बावजूद खुद को रोक न पाया और उनके पीछे चल दिया । उनके रूम में पहुँचने के बाद मैं काफी देर तक उनके कमरे की तरफ टकटकी लगाए देखता रहा, मद्धिम रोशनी और रूम का झीना पर्दा मुझे उकसा रहे थे ।और ये जानते हुए भी कि ये शालीनता नहीं मैं उनके कमरे में ताका - झांकी शुरू कर चुका था ।ऐसे भी मैं बदनाम हूँ इन हरकतों के लिए ।


मेरी हमेशा नाइट् ड्यूटी रहा करती है तो समय बिताने के लिए मैं अक्सर ही किसी न किसी की जिंदगी में ताका - झांकी करता रहता हूँ ।अब मुझे भी थकान हो चली थी और मेरी ड्यूटी का टाइम भी खत्म हो रहा था ।


सुबह की किरणें फूटने लगी थी, और मैं सो गया मेरी नींद तब खुली जब तारों ने आसमान में अंगड़ाई लेनी शुरू कर दी थी हड़बड़ाते हुए मैं भी अपनी ड्यूटी पर भागा और जाकर अपनी कुर्सी पर छा गया ।


ड्यूटी देते हुए मेरी निगाह फिर समुन्दर के किनारे पड़ी आज वो घरोंदे नहीं बना रही थी बल्कि एक जगह खड़े होकर किनारे पड़ी गिट्टियों को लहरों में डुबाने की कोशिश कर रही थी या इस हरकत से अपने जज्बातों को छुपाने की कोशिश कर रही थी ये मैं कह नहीं सकता, हाँ पर आँखों की सीपी से निकल मोतियों के दो बूंद उसके गालों पर चमकते दिखे मुझे ।


यूँ तो हर दिन मेरे पास हज़ारों कहानियाँ बिखरी पड़ी रहती हैं, पर जाने क्यों मुझे इस कहानी में बहुत दिलचस्पी आ रही थी ।मैं इसे और इसके जीवन को करीब से जानने को उत्सुक था, सोचा थोड़ी बातेँ करूँ, जैसे ही पास पहुँचा तो मोबाइल पर उसे किसी से बातेँ करते सुना । वो अब यहाँ से जाने की तैयारी में थी शायद इसलिए अपने होटल की तरफ बढ़ चली ।मेरा मन हुआ उसके पीछे दौड़ जाने का पर कुछ सोच मैं यहीं रुक गया । वैसे भी मेरी पहुँच इतनी है कि जब चाहूँ तब इसे कहीं भी खोज सकता था ।पर जाने क्यों मैं सबको ये कहानी गोवा में ही सुनाना चाहता हूँ ।वो और उसके पति दोनों गाड़ी में बैठ चुके थे ।


और मैं ये सोच रहा था कि तुम फिर बहुत जल्दी आओगी यहाँ मेरी कहानी के लिए अपने चेहरे पर वही सादगी भरी मासूमियत लिए उदास लहरों से अपनी खामोशी बतियाने ।


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छह महीने बीत चले थे इस बात को मेरी स्मृति में तुम्हारा चेहरा थोड़ा धुँधलाने लगा था कि अचानक तुम फिर दिखाई दी मुझे ठीक उसी जगह पर जहाँ पहली बार देखा था ।पर इस बार तुम कुछ बदली -बदली सी थी ।


              '4' 


मैं तुम्हारे करीब चुपचाप पानी में अपनी परछाई देख रहा था, और तुम पूरी दुनिया से अनजान अपनी सोचों में गुम थी ।एक बात मैंने नोटिस की कि आज तुम्हारे मांग में सिंदूर नहीं था जबकि पहली बार मेरा ध्यान तुम्हारी तरफ तुम्हारे दमकते सिंदूर के कारण ही गया था, आज तुम्हारा पहनावा भी विदेशी था पहले जैसा कुछ बचा था तुममें तो वो तुम्हारे चेहरे की उदास मासूमियत ।मैं तुमसे बाते करना चाहता था चाहता था कि अपने मन की गांठें तुम मुझसे खोलो, ।पर जब भी मैं तुमसे बाते करने के लिए आगे बढ़ता कोई न कोई तुम्हें पुकार लेता ।आज फिर वही हुआ, हैलो महक की आवाज सुनते ही मैं भी तुम्हारे साथ पीछे पलटा था । ये चेहरा मेरे लिए नया था ।मैं थोड़ी सोच में पड़ गया कि ये तुम्हारा पति तो नहीं फिर कौन है जिससे तुम यहाँ मिलने आयी हो ।


तुम दोनों सामने की टेबल पर बैठ चुके थे और तुमने शायद कॉफी ऑर्डर की थी । तुम्हारी आपस में बातें शुरू हो चुकी थी ।मैं तुम्हारी बातों को सुनने के लिए कान लगाए हुए था ।नजरे नीची किए हुए तुम जिस एतमाद से तल्ख सच्चाई से पर्दा उठा रही थी वो सच में ज़िन्दगी के फलसफे को सोचने पर मजबूर कर रहा था ।सारी बातें याद नहीं पर जो याद है वो आज सबको बता रहा हूँ.


"जानते हो सोम लोग गलत नहीं कहते की" लड़कियां बोझ होती हैं " । वो सिर्फ बोझ नहीं बल्कि बहुत भारी बोझ होती हैं क्योंकि जब वो जन्म लेती हैं न तो उनकी आँखे खुलने से पहले उनकी बंद मुट्ठीयों में दो कुलों की इज़्ज़त की रक्षा का भार समाया होता है, और उनके पीठ पर समाज के नियम को सरंक्षण का बोझ लदा हुआ होता है ।


उन्हें गिर कर चोट लगा कर चलने से पहले ही सम्भल कर चलना सिखाया जाने लगता है कि चोट ही न लगे । वो खुद के अस्तित्व को जानने से पहले लोरी और कहानियों में अपनी रक्षा करने वाले राजकुमार को पहचानने लगती हैं ।उन्हें उनकी खुद की ताकत से कभी परिचय ही नहीं करवाया जाता, उनके थोड़े बड़े होते ही समझाई जाने लगते हैं उसे सोने के हिरन की चाह और लक्ष्मणरेखा पार करने वाले नुकसान । पर उन्हें कोई ये नहीं समझाता की इन नुकसानों की परवाह तुम तब करना जब तुम्हारी जिंदगी में राम हों न कि... ।वो तो जन्म लेते ही खुद की जिंदगी को दूसरों के अनुसार ढालने लगती है उसकी अपनी इच्छायें, अपनी ख्वाहिशें अपनी खुशियां फिर बचती कहाँ है? क्या बचता है उनकी जिंदगी में समाज और परिवार की आड़ में सिर्फ छलावा.... ।फिर ये बोझ नहीं तो और क्या है ।"


और फिर कुछ देर चुप रहने के बाद तुमने धमाका किया था ।


"सोम मेरा और मिहिर का डाइवोर्स हो रहा है ।"

ये बात सुनकर सोम के साथ - साथ मैं भी चौंका था ।सोम ने कुछ देर का मौन रख कर फिर इस निर्णय का कारण पूछा था तुमसे ।


मैं तुम्हारी आँखों को झील समझता था पर अभी वह धूप में तपती रेत की तरह सूखी थी बिल्कुल सूखी । तुम थोड़ा व्यंग्य से हँसी थी ।अच्छा सोम एक बात बताओ.... 


"आखिर तुम पुरुष, अपनी प्रेमिका या दूसरी स्त्री के लिए जितनी प्रगतिवादी सोच के होते हो, उतनी प्रगतिशील सोच अपनी पत्नियों के लिए क्यों नहीं रख पाते? क्या वो तुम्हारा खरीदा हुआ सामान हैं या फिर कोई खिलौना जिसे तुम जब चाहो बिछावन पर फैला सकते हो या फिर जब चाहो उसे चाभी वाली गुड़िया की तरह नचा सकते हो ।"इतना कह वह फफक पड़ी थी, सोम हतप्रभ सा उसे देख रहा था फिर उसका हाथ पकड़ बोला, प्लीज बोलो न महक हुआ क्या है तुम्हारे और मिहिर के बीच? 


अब महक की कहानी जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी, और मैं सितारों को मना रहा था जल्दी न छुपने के लिए क्योंकि मैं ये कहानी आज ही सुन लेना चाहता था पूरी ।


महक ने सोम को बताना शुरू किया था ।


"शुरू में सब ठीक था हमारे बीच हम घूमने के लिए गोवा आए हुए थे, एक दिन मैं यूँ ही अकेले बीच पर घूमने आ गयी और रेत से घरौंदे बनाने लगी, घरौंदे! घरौंदे का अर्थ समझते हो न मीत? ये कह वो थोड़ा सा हँसी थी, पर उस हँसी में उसका बेइंतहा दर्द छुपा हुआ था ।

मैं बीच से वापस होटल अपने रूम की तरफ लौट रही थी रूम में पहुँची तो मिहिर नदारद था । मैं मिहिर को ढूँढने के लिए रूम लॉक कर जैसे ही घूमी तो देखा मिहिर सामने वाले कमरे से अस्त - व्यस्त हालत में निकल रहा था, मैं उसे देखकर अवाक थी । पर उसके चेहरे पर उस समय शिकन तक नहीं थी, उसने मुझे जल्दी से रूम खोलने को कहा और जैसे ही मैंने रुम खोला उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया और मुझे बिस्तर पर खींच लिया, और दो - तीन मिनट में अपनी भूख मिटा के सो गया, मेरा दिमाग सुन्न हो चूका था । उसके बाद मैंने एक दिन उससे बात नहीं की पर फिर वो धीरे - धीरे मुझे मनाने की कोशिश करने लगा, नारी हृदय जाने क्यों इतना कोमल होता है मिहिर! मैंने उसे माफ कर दिया हम गोवा से वापस अहमदाबाद लौट आए ।कुछ महीने हमारे बीच सब सही रहा फिर अचानक एक रात वो मुझे चूमते चूमते कहने लगा कि महक तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ, प्लीज मुझसे नाराज मत होना ।मैंने उससे पूछा कहो क्या बात है । उसने मेरे वक्ष को अपनी मुट्ठी से मसलते हुए अपना चेहरा वहाँ छुपा लिया और धीरे से कहने लगा महक मैं संतुष्ट नहीं हो पा रहा मैं एक बार एक साथ दो औरतों के साथ रात बिताना चाहता हूँ प्लीज महक मान जाओ, मान जाओ न महक ।पता नहीं उस समय में कौन सी अवस्था में थी थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैंने उसे इस बात के लिए जाने कैसे सहमति दे दी ।अगले दिन शाम में वो अपनी एक दोस्त के साथ था । चाय - नाश्ता कर के हम कमरे में चले गए, हम तीनों लगभग पाँच छः घण्टे साथ रहे ।वो बहुत खुश था उस दिन । अगले दिन उसने मुझे एक बहुत क़ीमती नेकलेस लाकर दिया, पर मैं बहुत अनमयस्क सी थी समझ नहीं पा रही थी कि ये मेरी जिन्दगी में क्या घट गया! उस दिन सोम तुम अचानक बहुत याद आये मुझे, कॉलेज में तुम्हारा वो सिर्फ मेरा हाथ पकड़ना मुझमें रोमांच भर देता था पर मिहिर के साथ ऐसा लगाव कभी महसूस नहीं हुआ सही कहूँ तो उससे संतुष्ट तो मैं भी कभी नहीं हुई ।पर स्त्री होने के नाते मर्यादा में बँधी हुई मैं ये बात कहाँ कह सकती थी कि तुम मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहे मैं भी एक प्रयोग करना चाहती हूँ ।


फिर कुछ दिनों बाद मिहिर ने अपनी वही घटिया मांग दोहरायी, इस बार मैंने इन्कार कर दिया ।कुछ दिन तक तो उसने मुझे प्यार से इस बात के लिए मनाने की कोशिश की पर जब मैं नहीं मानी तो उसने मुझे घर से निकालने की धमकी दी तो मैंने खुद ही उसका घर छोड़ दिया । 

और एक छोटी सी जॉब जॉइन कर ली अहमदाबाद के गर्ल्स हास्टल में रहती हूँ ।मन घबड़ाया तो दो दिन के लिए यहाँ घूमने चली आयी तुम सबसे करीबी थे तो तुम्हें बुला लिया ये बताने के लिए की मेरे घर जाकर मेरे घरवालों को ये बात बता देना जो हमारी शादी के विरुद्ध थे ।" इतना कह के वह फूट - फूट के रोने लगी ।


सोम ने उठकर उसे अपनी बाहों में भर लिया और धीरे - धीरे उसकी पीठ सहलाने लगा ।महक की सिसकियाँ बढ़ती जा रही थी और मैं देख रहा था कि सोम का पुरुषत्व धीरे धीरे जाग रहा था ।तारों के ढलने में अब बस कुछ समय ही शेष था उतना ही समय बस मेरी भी ड्यूटी का बचा था ।मैं समझ रहा था कि अब ये दोनों सीधे अपने कमरे की तरफ जायेंगे ।मैं खुश था आज एक अलग तरह के प्रेमियों के सुखद मिलन की कल्पना में ।दोनों अपने रूम में जा चूके थे मैंने मुस्कुराते हुए सोचा कि एक बार और इनके कमरे में झाँक लेता हूँ और दिल से दुआयें दे दूँ इन्हें ।


महक अभी तक सोम की बाहों में सिमटी हुई थी, सोम के हाथ उसकी पीठ सहलाते सहलाते धीरे - धीरे आगे की तरफ बढ़ने लगे थे, कि महक ने तुरन्त उससे खुद को अलग कर लिया ।


"नहीं सोम ये गलत है मैंने तुम्हें अपना दुःख बाँटने के लिए बुलाया था अपनी भूख मिटाने के लिए नहीं माना कि हम कभी एक दूसरे को पसन्द करते थे पर अब कुछ दिनों में तुम्हारी शादी भी तो होने वाली है क्या उसके साथ ये अन्याय नहीं होगा?" 


"महक मैं ये रिश्ता तोड़ देता हूँ मैं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूँ ।"

"नहीं सोम अब ये नहीं हो सकता ।"

"पर क्यों महक?" 


"जानते हो सोम हम प्यार या इश्क में कभी नहीं बहकते हम बहकते हैं अपनी उन विपरीत परिस्थितियों में जब कोई हमारी परेशानी में अचानक से सामने आकर हमसे कहे मैं हूँ न तुम्हारे लिए तुम अपने मन की गिरहें खोलो और हम अचानक से उसके कंधे पर सिर टिका निश्चिन्त होना चाहते हैं और ये भूल कर कि हम अपनी खुशी अपने दुख के लिए अब दूसरों पर निर्भर होने लगे हैं ।दूसरे शब्दों में हम खुद का खुद पर से विश्वास हारने लगे हैं, हम ये सोच कर पूरसुकून रहने लगते हैं कि एक टूटी चीज़ को टेप ने जोड़ दिया ये भूलकर कि जिस दिन टेप का लस खत्म हुआ चिटकी हुई चीज़ इस बार पूरी तरह टूटी मिलेगी ।इसलिए अपने दुखों के भार को आज के बाद मैं दूसरे के कंधे पर सिर रख कर नहीं रोना चाहती बल्कि उसे अपने हाथों से खुद ही पोंछ लेना चाहती हूँ ।इसलिए अपने हर परिस्थिति के लिए अब खुद पर ही निर्भर रहना चाहती हूँ ।और न मैं किसी की भी कहानियों मैं चटकारा बनना चाहती हूँ, मैं वो अफ़साना बनना चाहती हूँ कि जब कोई मुझे अपनी यादों में सोचे तो दिल में कसक, आँखों में नमी और होंठों पर मुस्कान सब एक साथ तैर जाए ।"


सोम धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया ।

और इस कहानी का लेखक "मैं चाँद" महक को खुश रहने की दुआ देते हुए, आसमान के टिमटिमाते तारों के साथ साथ छुपने लगा कल फिर अपनी ड्यूटी पर एक नयी कहानी की तलाश में ।


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