कटहल का पेड़
कटहल का पेड़
काफ़ी समय पहिले की बात है, उस समय लोगों को यह पता नहीं था कि कटहल का फल खाया जा सकता है। देवताओं के राजा इन्द्र चाहते थे कि लोगों को यह बात पता चले। सो एक दिन इन्द्र ने, जिन्हें शक्र भी कहा जाता है, एक यात्री का वेश बनाया और एक घर में गये और जाकर खाना माँगा।
पर उस समय घर में कुछ खाना बचा नहीं था, तो गृहस्वामिनी ने कहा -" इस समय भोजन तैयार नहीं है।"
तो शक्र ने बाहर लगे हुए एक कटहल के पेड़ को दिखाकर कहा-" इस पेड़ के पके फल को तोड़ लो , और इसे काटकर इसके पके बीज निकाल लो, उन्हें उबाल लो और उसमें से थोड़े मुझे खाने के लिये दे दो।"
गृहस्वामिनी ने उसकी बात मान ली, और एक बड़ा सा पका हुआ फल तोड़ लिया। उसे चाकू से काटकर उसके बीज अलग किये और उन्हें पानी में उबाल दिया। उन्हें उबालने पर उनकी सोंधी खुशबू सब और फैल गई। गृहिणी ने बीज का छिलका छुड़ाकर उसे चखकर देखा, तो उसे बहुत स्वादिष्ट लगे।
उसने अतिथि बनकर आये इन्द्र को वे बीज खाने को दिये, साथ ही उसे यह बताने के लिये धन्यवाद दिया कि ये बीज और फल खाया जाता है। इन्द्र कटहल फल के बारे में जानकारी देकर चले गये। तबसे लोग कटहल खाना सीख गये।
कटहल के बीजों को यदि सूखे रेत या मिट्टी में गर्म करके भूने, तो वे मीठे लगते हैं खाने में। उन्हें उबालें या रेत और मिट्टी में भूनें, फिर उन्हें साफ़ करके चूरा कर लें और इसमें नारियल का चूरा व गुड़ मिलाकर लड्डू बना लें। स्वादिष्ट लगेंगे।
कटहल का पेड़ अच्छी छाया देता है और चिड़ियों व अन्य प्राणियों को आश्रय देता है। यह तेज हवाओं को रोकता है, और इसकी जड़ें मिट्टी को कटने से रोकती हैं। इसके फल व कच्चे बीजों को भी उबालकर या भाप में पकाकर स्वादिष्ट सब्ज़ी बनती है और नारियल डालकर रसेदार सब्ज़ी बनती है। इसके फल व बीजों को धूप में सुखाकर सुरक्षित भी रख सकते हैं और उसके बाद ज़रूरत पड़ने पर भूनकर या मीठा डालकर इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
कटहल पेड़ और भी काम में आता है। बकरी इसकी पत्तियॉं खाती हैं और इसकी लकड़ी मकान और फ़र्नीचर बनाने के काम में आती है और बाक़ी बची जलावन के काम आती है।