STORYMIRROR

Bhawna Kukreti Pandey

Others

4  

Bhawna Kukreti Pandey

Others

कसती सीमाएं

कसती सीमाएं

1 min
172

कोई सीमा नहीं है ईश्वर के आशीष की

और प्रकृति के स्नेह की,

न सीमा है पुरुष के प्रयास की,स्त्री के प्यार की 

बच्चे की चाह की और जीवन के उल्लास की।

किंतु और अधिक की आस में एक दिन 

हमने ही बना दी कुछ विशिष्ट संज्ञाएँ,

निर्धारित कर दी सबकी सीमाएं।

सीमाएं सभ्यताओं की,संस्कृतियों की

सीमाएं आवश्यक परम्पराओं की।

अब सीमा है हर देश की, हर प्रदेश की 

हर गांव की, घर की, दर की

सीमा हर जन की, हर मन की।

अफ़सोस इन कसती सीमाओं ने

अब हमारा ही अतिक्रमण कर लिया है।

अतिक्रमण,मानव के मानव पर

विश्वास का, सहयोग का, साथ का।

अब सीमा हमें सीमित कर चुकी है।

सीमित कर चुकी है 

हमे हमारी ही बनाई सीमा में।

हमें सीमित लगने लगी हैं 

ईश्वर की आशीषें,प्रकृति का स्नेह ,

पिता का प्रयास,मां का प्यार,

हो गयी सीमित बच्चे की चाह,

और जीवन का उल्लास।

ये सीमा बन कर फांस लील न ले

मानव का भविष्य और इतिहास

कि देखती हूँ 'मैं' 

अपनी सीमित दृष्टि से 

खिड़की से,देहरी से,बालकनी से

कहीं कहीं छत की सीमा के अंदर खड़े

उड़ते पंछी आकाश में।

जिन्होंने नहीं बनायीं कोई सीमा 

न जल में,न धरती पर 

न आकाश में।

इनके लिए अब भी 

सब कुछ असीमित है।



Rate this content
Log in