कॉलेज की वह सुनहरे दिन
कॉलेज की वह सुनहरे दिन
"मोनू क्या है? तुझे अपने रूम को साफ रखने में कोई दिक्कत है।"
" सोमू तू है ना,जब तू होती है तो मुझे कोई चिंता नहीं होती।"
"देख मोनू हम हमेशा तो साथ नहीं रहने वाले, तुझे अपनी चीजों को साफ रखना उनहे तरीके से रखना सीखना होगा ।"
मोनू ने कहा "अच्छा बाबा ठीक है। चल अभी लेक्चर मत दे असली लेक्चर का टाइम हो रहा है।"
"चल दोपहर में मिलते हैं।"
दोनों दोस्त कॉलेज चली गईं ।
नोकझोंक के बाद भी सौम्या मोनू की बहुत ही अच्छी दोस्त है। भगवान का दिया हुआ तोहफा। लड़ाई करते मगर फिर भी एक मिनट भी एक दूसरे के बिना नहीं रह सकतीं थीं ।
चाहे दोनों एक दूसरे से कितना ही नाराज क्यों ना हों ,लेकिन शाम को हॉस्टल के रूम में आने पर पूरे दिन की भड़ास एक दूसरे पर निकाल देतीं । वह दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकतीं थीं।
सौम्या को सब कुछ सही तरीके से करने की आदत थी और मोनू बेपरवाह सब कुछ इधर उधर । मोनू की जिंदगी किसी ना किसी तरीके से उलझी रहती जब दुखी होती तो उस दुख को कागज के पन्नों पर उतार देती सौम्या कहती "मोनू तू लिखती अच्छा है, क्यों ना अपनी एक किताब लिख।
मोनू हंसी में टाल जाती और कहती "सौम्या अभी समय नहीं आया जब आएगा तब लिखूंगी।"
एक साथ लड़ने, झगड़ने ,प्यार करने वाले दोस्त ,एक साथ खाना खाने वाले दोस्त, अब बिछड़ने वाले थे क्योंकि कॉलेज खत्म हो गया था। एक दूसरे से बिछड़ने का समय आ गया अब इस समय के बाद कौन कब किसको कहां मिले , किसी को पता न था ।
रोईं तो इतना रोईं कि पूरा कॉलेज में समंदर आ जाए ,लेकिन हां एक उम्मीद दोनों के मन में थी कि दोनों जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर जरूर मिलेंगे।
एक दिन अचानक सौम्या ने फेसबुक पर मोनू के लिखी कविता पढ़ी और उसने कमेंट लिखा "मोनू आखिर तूने लिखना शुरू ही कर दिया" मोनू ने सौम्या का धन्यवाद दिया "तुम ही हो सोमू जिसने हमेशा मुझे लिखने की प्रेरणा दी बस आज तुम्हारी याद में कुछ लिखा"।