कोई गुड न्यूज़ है, क्या?

कोई गुड न्यूज़ है, क्या?

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श्रद्धा अभी नाश्ता खाने ही बैठी थी...तभी उसकी जेठानी नीति उसके पास आयी और बोली "अब तुम्हारी शादी को दो महीने हो गए हैं, खूब मौज-मस्ती कर ली तुमने...अब जल्दी से खुशख़बरी सुना दो। पहला बच्चा जल्दी ही कर लेना चाहिए, नहीं तो फिर मुश्किलें आनी शुरू हो जाती हैं।" पहले तो श्रद्धा उसकी हाँ में हाँ मिलाती रही थोड़ी देर बाद श्रद्धा ने सकुचाते हुए अपनी जेठानी से कहा कि "अभी उसने और तन्मय ने कुछ समय बाद बच्चा करने का निर्णय लियाहै " इस बात पर उसकी जेठानी को बहुत बुरा लगा और गुस्से में उससे बोली "मैंने तो तुम्हें समझा दिया आगे तुम्हारी मर्ज़ी" क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था, क्या बोले।

नाश्ता करने के बाद श्रद्धा अपने कमरे में आई तो सोचने लगी...अभी तो तन्मय और उसने एक साल बाद ही अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोचा है ताकि वो एक दूसरे को अच्छी तरह समझ सकें और फिर बच्चा होने के बाद तो कितनी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं जिसके लिए अभी वो तैयार नहीं थे। धीरे-धीरे समय बीतने के साथ-साथ श्रद्धा और तन्मय की शादी को छः महीने बीत गए। इस बीच जितने भी रिश्तेदार उनसे मिलने आते चाहे वो तन्मय की साइड के हो या श्रद्धा की साइड के...सबका एक ही सवाल होता गुड न्यूज़ है क्या? सबके बार-बार ऐसा पूछने से श्रद्धा और तन्मय को लगने लगा कि अब उन्हें बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने बच्चे के लिए कोशिश करनी शुरू कर दी पर सबके इतने दबाव से वह बहुत चिंता में रहने लगे। जैसे ही श्रद्धा के पीरियड्स आये उसका तो रोना ही छूट गया। पीरियड्स के बाद वह डॉक्टर के पास चैक-अप के लिए गयी। डॉक्टर ने कहा "आप एक दम नार्मल हो, ज़रा भी टेंशन मत लो। टेंशन फ्री हो कर कोशिश करोगे तो जल्दी ही खुशख़बरी मिलेगी। करीब तीन महीने बाद श्रद्धा प्रेग्नेंट हो गई और नौ महीने बाद उसने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।

एक दिन उसकी चाची सास उसकी बेटी को देखने आई। उनकी बेटी की शादी को आठ महीने हो गए थे...श्रद्धा ने उनसे पूछा "चाचीजी दीदी की तरफ से कोई गुड न्यूज़ है, क्या"? उन्होंने छूटते ही श्रद्धा से कहा "पढ़े-लिखे बच्चे हैं, जब उनकी मर्ज़ी होगी कर लेंगे। हमारा उनसे कुछ कहना या पूछना अच्छा नहीं लगता।" श्रद्धा सुन कर अवाक रह गई, क्योंकि यह वो ही चाची थी जो जब भी श्रद्धा से मिलती थी उससे बच्चे के लिए पूछती थी। श्रद्धा को लगा "चाची कह तो ऐसे रही हैं, जैसे बस उनके ही बेटी-जवाईं पढ़े-लिखे हों और तन्मय और श्रद्धा तो अनपढ़ हों, इसलिए ही वह उसके पीछे पड़ती हो बच्चा करने के लिए। श्रद्धा का मन तो कर रहा था, उनसे इस बारे में पूछे पर वह उनकी लिहाज़ कर के चुप रही पर वह मन ही मन सोचती रही....अगर चाची हमारे लिए चिंतित थी, इसलिए जल्दी बच्चा करने को बोलती थी...तो अब क्या उन्हें अपनी बेटी की चिंता नहीं है। पता नहीं लोग दोहरी मानसिकता क्यूँ रखते हैं। मन ही मन श्रद्धा ने सोच लिया कि अब ऐसी फ़ालतू बातें सोच कर वो खुद को परेशान नहीं करेगी। ऐसे ही कुछ दिन बीत गए एक दिन तन्मय और श्रद्धा तन्मय की बुआ की बेटी की पहली एनिवर्सरी की पार्टी में गए...वहाँ तन्मय की मामी ने उसकी कज़न से जब बच्चे के बारे में पूछा तो उसने हँसते हुए कहा "अरे मामी अभी तो हमारी खेलने खाने की उम्र है। अभी कुछ समय तो हमें और मज़ा करने दो। बच्चा होने के बाद तो ज़िन्दगी बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। श्रद्धा को उसकी बात ने फिर परेशान कर दिया क्योंकि तन्मय की इसी कज़न ने श्रद्धा से कहा था "भाभी आप से तो सब अब बच्चे के लिए कह कह कर निराश हो चुके हैं।" श्रद्धा ने उसके पास जा कर धीरे से कहा "दीदी हमारी बारी में तो आप बहुत जल्दी निराश हो गयी थी।" श्रद्धा ने सोचा लोग कितनी दोगली मानसिकता रखते हैं...अपने लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ और पर अब श्रद्धा शांत थी और पार्टी का आनंद ले रही थी। श्रद्धा को उन लोगों पर गुस्सा तो आता था की उन्होंने उसको उसकी ज़िन्दगी का इतना अहम निर्णय भी उसकी मर्ज़ी से नहीं लेने दिया, पर वो मन ही मन उनका शुक्रिया भी करती थी क्योंकि आज उसकी नन्ही सी बेटी उसकी जान बन चुकी थी।

कभी कभी चुप रहना भी ठीक होता है वक़्त अपने आप जवाब दे देता है। तन्मय की चाची की बेटी ज़्यादा पढ़ी लिखी होने के चक्कर में बच्चा करने का निर्णय टालती रही। शादी के 5-6 साल बाद जब उन्होंने बच्चा करने की सोची तो उन्हें कामयाबी नहीं मिली फिर बहुत इलाज कराने के बाद 3 साल बाद उनके बच्चा हुआ। बच्चा करने का निर्णय इतने लम्बे समय तक भी नहीं टालना चाहिए की बाद में बच्चा होना ही मुश्किल हो जाए बस पति पत्नी को कुछ समय देना चाहिए ताकि वो बच्चे की ज़िम्मेदारी ठीक से उठा सकें।


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