कंगूरे पर गिद्ध
कंगूरे पर गिद्ध


रात का खाना खाने के बाद छोटे दादा, जितेंद्र चाचा, पवन चाचा छोटी दादी, भीम मेरा छोटा भाई बैठ कर बातें कर रहे थे। घर के बगल में ही श्रीगुल महाराज का मंदिर है। शिवजी का एक रूप माना जाता है, (श्रीगुल महाराज जी को) किसी ने नरसिंह बिठा दिया है शायद मंदिर में पुजारी जी बता रहे थे, छोटे दादा बोले। नरसिंग कैसा होता है? डरते डरते पूछा मैने। अरे उसके लंबे बाल होते हैं, छोटा कद , नाखून बड़े बड़े। कुछ देर बातें कर हम सो गए। भीम मेरे साथ ही सोता था। रात में सपना देखा कि मंदिर में जागरण हो रहा है, सब लोग खूब मन से भजन गा रहे हैं, ताली बजा रहे हैं, सुंदरू दादा ढोलक बजा रहे हैं, बहुत अच्छा लग रहा था। हारमोनियम पर भगतू चाचा कमाल कर रहे थे।
हम सभी दोस्त खेतों में भाग रहें हैं, पीले फूल इकट्ठे करते हुए, तितलियों के पीछे दौड़ते हुए। पवन चाचा को चोट लग जाती है, दाहिने पैर के अंगूठे से खून निकल आया था। उनके अंगूठे पर मिट्टी डाल एक पुराना कपड़ा बांध हम लोग चुपचाप मंदिर में आ कर बैठ गए। कीर्तन अभी भी जोरों से चल रहा था।
राम प्रसाद पंडित जी शेरा वाली मां की भेंट गा रहे थे, सभी लोग जोश के साथ साथ दे रहे थे। ना जाने कहाँ से एक गिद्द आ कर मंदिर के कलश पर बैठ गया । उसके पंजों से चिं की आवाज़ आई, यह कैसा अपशकुन सब घबरा गए।
जितेंद्र चाचा ने तुरंत बंदूक निकाली, और फायर कर दिया। पसीने से लथपथ मेरी आँख खुल गई, बगल में भीम आराम से सो रहा था। घड़ी में टाइम देखा चार बज रहे थे। मैं हनुमान चालीसा पड़ते पड़ते सो गया। सुबह छः बजे के आसपास हल्की नींद में मुझे
दिखाई दिया कि एक लंबे बालों वाला छोटा आदमी भीम की तरफ हाथ बड़ा रहा है, मैने खींच कर एक लात मारी, वो गिरा धड़ाम और रोने लगा। भैया ने मुझे मारा, मेरी नींद खुल गई थी, देखा यह तो खुद भीम था, जो बाथरूम से वापिस आया था।
मां चिल्लाई क्यों मारा उसको, बदतमीज हो।
मैं चुपचाप पड़ा रहा , जैसे सो रहा हूं। भीम को मां ने अपने पास सुला लिया। मैं भी फिर से सो गया। सात बजे सो कर उठा, सपना डरावना था, अभी भी मन अच्छा नहीं था। फिर सोचा सपना ही तो था। कोई नहीं सब कुछ ठीक तो है, बस बेचारे भीम को एक लात पड़ गई खामख्वाह।
स्कूल की छुट्टी थी उस दिन, मतलब दिन भर खेल सकते हैं।
नाश्ते के बाद, पवन चाचा (मेरे उम्र के) और मैं बाकी दोस्तों के साथ खेलने चले गए। खेलते खेलते दोपहर हो गई, एक बजा होगा कि गोली चलने की आवाज़ आई, हम लोगों ने सोचा कि कोई जंगली जानवर खेत में घुस आया होगा, किसी ने गोली चला दी होगी। खेलने में मस्त हो गए।
दो बजे छोटी बहन खाने के लिए बुलाने आई, रास्ते में उसने बताया एक गिद्ध मंदिर के कंगूरे पर बैठ गया था। जितेंद्र चाचा ने बन्दूक से उसे मार दिया। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, ऐसा कैसे? रात को जो सपने में देखा, सच हो गया।
घर जाकर खाना खाते हुए दादी से पूछा क्या पहले भी कभी गिद्ध ऐसे आ कर मंदिर में बैठा। दादी ने कहा नहीं बेटा, कलयुग आ गया है अब यह सब भी देखना पड़ रहा है।
आज इतने सालों बाद भी मंदिर के कंगूरे पर गिद्ध बैठने की वो एकमात्र घटना थी। और एक रात पहले मुझे सपने में दिखाई पड़ गई। लिखते हुए रोंगटे खड़े हो गए।