कंचों के खेल
कंचों के खेल
रंगबिरंगी और चमकदार कंचों को देखते हुए मुझे हमेशा ही लगता था की ये कंचे चोट खाते है फिर भी जीतनेवाले की खुशी में फुले नहीं समाते है।कितने बेवकूफ होते है ये।
कंचों के खेल में चोट तो कंचों को ही लगती है। निशाना मारने वाला कंचे को मारता है तो निशाना सही लगने पर वह खुशी से झूमता है और बेचारे कंचे चोट खाकर भी खेल में जमे रहते है।फिर धीरे धीरे उन कंचों की चमक बार बार की चोट से कम होती जाती है पर वे उफ तक नही करते।वह तो बस खेलने वालों की जीत में ही मस्त रहते है।
आज वह लड़का फिर से नये कंचे लेकर खेलने के लिए खुशी खुशी अपने दोस्तों के पास गया।
और घर में पुराने कंचे किसी कोने में ही पड़े रह गए बिल्कुल मायूस।उनके दिल को आज कुछ ज्यादा ही चोट लगी थी।खेल में तो हमेशा ही चोट लगती थी,लेकिन आज की चोट शायद दिल को लगी थी।
लेकिन कंचे तो कंचे थे।कांच के कंचों ने फौरन रंग बदला।उदासी में भी वे हँसने लगे।उनको भी अंदाजा है कि ये नये कंचों का भी यही हश्र होगा।जो कंचे आज इतने इतरा रहे है,वे भी कुछ दिनों के बाद किसी कोने में ऐसे ही पड़े रहेंगे।खामोश और बेआवाज...