STORYMIRROR

Vikas Sharma

Others

4  

Vikas Sharma

Others

कहानी एफ़एम की

कहानी एफ़एम की

8 mins
512


 

 

“काम भले ही उन्नीस –बीस हो जाए, पर रिश्ते खराब नहीं होने चाहिए” एक बात और “जो पूरी टीम एक बार सोच ले, बस एक ही रहना,पीछे मत हटना ।“ इन्ही शब्दों के साथ उमर जी एफ़ एम की ट्रेनिंग के उपरांत हम सबको अपने –अपने ब्लॉक मे भेज रहे थे ।एएमएम की लंबी व व्यापक योजना प्रिकिर्या के बाद एफ़एम ने दस्तक दे डाली थी ,ये बात जरूर कुछ आश्चर्य की थी की पूरी एएमएम के दौरान हमने पूरे साल होने वाले कार्यो के लिए तो योजना बनाई ,पर तुरंत बाद होने बाले एफ़एम को एक भी प्रश्न नहीं मिला! शायद आकलन व मूल्यांकन शब्द ही ऐसे हैं ,इनसे बचने मे ही सब अपनी भलाई समझते हैं ।

उमर जी के सहजता व स्पष्टता से अपनी बात को रखने के हुनर से तो हम एएमएम मे ही परिचित हो गए थे । यहाँ वो एक समन्वयक की भूमिका में थे, इस बात में कोई अतिशयोक्ति न होगी की उमर जी इस काम के लिए सबसे बेहतर थे ,अनुभव व धीरता का संगम ,विपरीत परिस्थितियों में उनकी सहजता और उदश्य प्राप्ति को लेकर उनकी प्रतिबद्धता-ने उमर जी को ठोस समन्वयक के रूप में प्रस्तुत किया।

ट्रेनिंग के दोरान हमारे साथी डाइट वोलेंटियर्स से कुछ खास खुश नहीं थे ,इसलिए की वो ट्रेनिंग को गंभीरता से नहीं ले रहे थे । उन्हे चुनने के दो कारण हमारे सामने थे एक तो भीलवाड़ा में ए पी एफ की अनुपस्थिति और दूसरा उनका कम अनुभव – चालाकी और बिना किए कार्य को अच्छे से प्रस्तुत करने की कला को भी शायद कम ही जान पाएं होंगे वो अभी । गौतम जी ने भी स्पष्ट कह दिया था की ए पी एफ वालों की ही ज़िम्मेदारी है ,हम उन पर ज्यादा निर्भर न रहें । और ट्रेनिंग में खड़े होकर डेमो देने और कक्षा में वास्तविक रूप से कार्य करने में जमीन –आसमान का फर्क होता है । सुभाष जी ,जो भीलवाड़ा के डीईओ हैं, वातावरण को उद्देश्य के प्रति अभिमुख कर दिया था , ए पी एफ़ के नाम का वास्ता और उनकी डाइट की शाख को धूमिल न होने के वास्ते ने उन पर कार्य को बेहतर तरीके से करने के लिए मनोवेज्ञाननिक दबाब बना दिया था । आरती ,नरेंदर ,विनोद व एमएसआर के प्रयासों से ट्रेनिंग अपने अंतिम सोपान पर पहुंची । सभी को घर जाने की अति आतुरता ने कुछ अव्यवस्थाओं को सींचने का अवसर दे दिया था । आवश्यक सामाग्री व उपयोगी फ़ारमैट को किनारे कर सभी को अपने अपने घर पहुँचने की जल्दी थी। जो ए पी एफ जैसी संस्था के जुड़े लोगों के लिए सुखद अनुभूति नहीं हो सकती ।

अब जो कुछ अगले पड़ाव थे जैसे सभी टीम के रुकने की व्यवस्था ,एफ़एम के दोरान गाड़ी की व्यवस्था ,सभी टीम के पास समय से पर्याप्त सामाग्री पहुँचाने की व्यवस्था इत्यादि । चिन्ता की बात यह थी कि कुछ टीम के सभी साथी नौ तारीख को ही आ रहे थे ,पर कार्य के प्रवाह में सब ठीक ही हुआ ,अब तक तो पृष्ठभूमि ही बन रही थी ,असली फिल्म तो अभी बाकी थी।


मैं मांडल ब्लॉक में था –इंद्रा पांचाल ,शिरोही व संदीप ,पाली के साथ । हमारे रहने की व्यवस्था होटल सिटि पैलेस जो बाज़ार के बीचों बीच ,आस-पास खाने के अच्छे होटल ,जूस –आइस क्रीम की दुकाने ,कुछ कदम की दूरी पर ही इनॉक्स व पार्क भी था । यह जानकर बाकी टीम मे ईर्ष्या का संचार तो अवशय हुआ होगा । पूर्व नियोजित योजना के साथ सभी अपनी अपनी टीम के साथ अपने अपने मोर्चे की ओर बढ़ रहे थे। ड्राईवर को भी रास्ते का कुछ ज्यादा अंदाज़ा न था ,फिर भी नाश्ता करते हुए पहुँच ही गए अपने अपने स्कूल में । प्रथम दो दिन नीरज जी भी हमारे साथ थे , मेरे स्कूल की प्रिन्सिपल को अंग्रेज़ी थोड़ा कम आती थी ,पर वो मैडम अपने शब्दकोश से नए नए शब्द ला रही थी ,एक बात तो स्पष्ट हो गई थी की आत्म विश्वास से बोली गई बातें भाषा संबंधी त्रुटियों को खा जाती है, हम चाह कर भी हँस नहीं पा रहे थे । स्टाफ की कमी व अभभावकों मे जागरूकता न होना मुख्य समस्या सामने आई । एक तो पहले ही स्टाफ कम था और जो था वो भी पढ़ाने मे रुचि कम ले रहा था । बच्चों में शिक्षा के लिए सकारात्मक उत्साह था ,वो अपनी क्षमताओं से अधिक प्रयास कर रहे थे । फ़ारमैट को भरते हुए ज्ञात हुआ अधिकतर के घर में शौचलाय नहीं था ,उनके घरों में आज के समय में टीवी का न होने को सुनकर आश्चर्य हुआ ,अधिकांश के माता – पिता पढ़े लिखे नहीं थे ,कुछ के थे पर वो भी पांचवीं के नीचे ही, विरले एक दो थे जिनके माता पिता ग्रेजुएट थे या सरकारी नौकरी में थे ,खेती मुख्य व्यवसाय सामने आया या बाहर के राज्यों में जाकर आइस क्रीम बेचेने का धंधा । उनके सपने उनके सीमित आकाश में ही सिमटे हुए थे ,न उन्हे आज पर मलाल था न ही कल की चिन्ता । वो बच्चे कुछ ज्यादा ही आज्ञाकारी थे ,झाड़ू लगाने, पानी पिलाने व बर्तन साफ करने मे जरा भी संकोच न था । हमारी टीम को किसी भी चरण में स्कूल में प्रवेश संबंधी कोई समस्या नहीं आई ,पर कुछ अन्य टीम को स्कूल में आकलन करने से रोक दिया गया किन्ही किन्ही कारणो से,ऐसा भी सुनने मे आया । कुछ टीम के लिए तो स्कूल की दूरी कुछ ज्यादा ही थी , सुनने मे आया की एक टीम के साथी तो एक बजे स्कूल पहुंचे।

पहला चरण कुछ चुनोतीपूर्ण जरूर रहा ,टीम में भी घनिस्ठ्ता बढ़ रही थी , और कार्य की प्रक्रिया का भी भलीभांति परिचय हो गया था। वोलेंटियर्स को नाश्ता कराने व भोजन कराने की व्यवस्था में सभी थोड़े या अधिक उलझे जरूर होंगे ,बिल की ज़िम्मेदारी से हर कोई बचना चाह रहा था ,पोर्टल को भरना अपने आप में एक जटिल काम के रूप में सामने आ रहा था ,सभी इससे किनारा करने का गणित लगा रहे थे, खाना सस्ता व अच्छा मिल तो जाये पर बिल के साथ हमारे मानको के साथ मेल खाना यह एक बड़ी चुनौती थी। रूबरिक वाले प्रश्न भी एक पहेली से कम न थे , यूं तो सभी की आन्सर की थी पर उसकी भाषा जैसे वाक्यो मे कर्मबद्धता हो, भावो की अभिव्यक्ति इत्यादि को सही सही आकलन करना भी एक जटिलता थी । कुछ ए पी एफ वाले तो सारा कार्य वॉलंटियर के जिम्मे ही करने मे समझदारी समझ रहे थे ,ऐसा सुनने में आया । स्कूल में परीक्षा लेना तो ठीक फिर बाद में टॉप शीट भरना अतिरिक्त समय को चुरा रहा था । यह भी सुनने मे आया की एक टीम को नए वॉलंटियर तो रोज सुबह दूंढ्ने पड़े । कुल मिलकर एक साथ कार्य करने का एक अनूठा अनुभव हो रहा था ,वो भी जब टीम के सदस्य एक दूसरे से ज्यादा परिचित न थे। एक दो बहुत रोचक प्रसंग भी सुनने को आए जैसे एक स्कूल में भारी वर्षा के उपरांत अभिभावक आए हुए थे ,सभी कमरों मे एकत्रित थे तथा बच्चे बाहर प्रांगड़ में बैठे थे , वो सभी स्कूल में अच्छे से पढ़ाई न होने की शिकायत भी कर रहे थे , हमारे साथी वहाँ आकलन के लिए गए थे ,इन परिस्थितियों को कुछ मीडिया वाले भी वहाँ आए ,तथा परीक्षा देते बच्चों की तसवीर इस खबर के साथ अखबार में आई कि इन कठिन दिनों में भी स्कूल में अच्छी पढ़ाई हो रही है, स्कूल की तारीफ से स्कूल स्टाफ को बल मिला । एक स्कूल में , वहाँ आठवीं का विदाई समारोह चल रहा था , स्कूल प्रधान अध्यापक की हिन्दी कुछ ठीक नहीं थी ,उन्होने हमारे साथी को कुछ इस तरह आमंत्रित किया “ आज हमारे बीच दुर्भाग्य से अमुक श्रीमान जी आए हैं, वो आयें और बच्चों पर पुष्पांजलि करें”।

कार्य की व्यस्तताओं के बीच घूमने ,गाने ,मजे करने के अवसर भी प्राप्त हुए, हमारी टीम मेजा डैम ,बेमाता का मंदिर जहां ऐसी मान्यता थी की कुवांरे के जाने से उसे मनपसंद दुल्हन मिलती है ,और अन्य मंदिर ये मंदिर भव्यता में जरूर कम हो सकते हैं, पर इनकी मान्यता व आस्था अटूट व अचंभित करने वाली थी। हम मजदूर किसान संघ की लोकतन्त्र शाला भी गए ,जो अपने को आरटीआई कानून को शुरू करने का दावा कर रहे थे । अंतिम चरण में कार्य को विधिवत समेटने मे भी रोचक अनुभव हुए, उमर जी सभी को क्रूजर मे लादे सबसे महत्वपूर्ण चरण को पूरा कर रहे थे , सभी बच्चों व शिक्षको के उत्तर लिफाफों मे बंद हो चुके थे ,सभी को चित्तौड़गढ़ में एक साथी के घर मे व्यवस्थित कर दिया गया था ,उनका एक कमरा तो हमने घेर ही लिया था । हमारे साथियों ने भीलवाड़ा के शिक्षकों व बच्चों से इन दिनों काफी जानकारी एकत्रित की,तथा समता व गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की ओर अग्रसर हुए। 

एक दिन की भारी वर्षा ने ,जो हमारे लिए आनंद दायक जरूर हो सकती थी ,पर जब किसानों के नुकसान के बारें मे ज्ञात हुआ तो हिर्दय मे अकुलाहट पनपने लगी। पल भर में सपनों के महल अवशेषों में बादल गए।

इन सबके बीच ए पी एफ द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रयास वोल्ण्टेर्स के सहयोग से राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के कक्षा तीन, पांच व आठ के विधार्थियों के अधिगमस्त व शिक्षक की मुख्य चुनौतियों को जानने के लिए व्यापक अध्यन किया गया।

और अंत में हमारे साथी के साथ घटी दुर्घटना ने ह्रदय में विषाद उतपन्न कर दिया , हम सब उनके जल्दी ठीक होने की कामना करतें हैं ।



Rate this content
Log in