Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Inspirational

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

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कैसे करें विद्यार्थी गृहकार्य?

कैसे करें विद्यार्थी गृहकार्य?

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आज कक्षा के पॉंचों मॉनीटर रीतू, आकांक्षा, ओमप्रकाश, प्रीति , हसनैन और श्रवण मेरे कक्षा में पहुंचने पर कक्षा के सभी विद्यार्थियों के एक साथ खड़े होने पर खड़े हुए फिर एक साथ बैठ गए ।बैठने के एक क्षण बाद ये पॉंचों मॉनिटर एक साथ खड़े हुए !उनके खड़े होने के हाव- भाव से यह पता लग रहा था कि वे कुछ कहना चाहते हैं । एक साथ पांचों तो नहीं बोले लेकिन पांचों के प्रतिनिधि के रूप में आकांक्षा बोली हम पॉंच लोगों को आपने अपनी अपनी पंक्ति का मॉनिटर इसलिए बनाया था कि हम अपनी अपनी पंक्ति के हर विद्यार्थी के गृह कार्य की अभ्यास- पुस्तिका देखें। उसमें यदि कुछ त्रुटियां हैं तो उन्हें ठीक कर दें । हममें किस मॉनीटर ने उस अभ्यास पुस्तिका को देखा है इसके प्रमाण के तौर पर अपने हस्ताक्षर उस अभ्यास पुस्तिका पर कर दें। आपने यह व्यवस्था इसलिए की है जिससे किए गए कार्य की अभ्यास-पुस्तिकाओं का निरीक्षण करने के बाद किसी अभ्यास-पुस्तिका में कोई त्रुटि न रहे क्योंकि ।यह व्यवस्था इस समस्या के समाधान के लिए बनाई गई है कि एक अध्यापक के द्वारा एक साथ इतनी सारी अभ्यास-पुस्तिकाओं से सारी त्रुटियां दूर करना संभव नहीं है। केवल 'अवलोकित' लिख देने के बाद त्रुटिपूर्ण अभ्यास पुस्तिका को त्रुटिरहित मानकर याद करने पर त्रुटिपूर्ण विषय वस्तु को संबंधित विद्यार्थी याद करेगा जो ठीक नहीं है। यदि इस व्यवस्था को हम सब धीरे से चलाते तो यह बहुत अच्छी व्यवस्था थी लेकिन यहां इस व्यवस्था से अलग तरह की समस्या विद्यार्थियों की अभ्यास पुस्तिकाओं में देखने को मिल रही है।इस समस्या के बारे में रीतू भैया बताएंगे।

मेरी ओर से बोलने की संकेतात्मक स्वीकृति के बाद रीतू ने बताना शुरू किया कि जो भी गृह कार्य दिया जाता है उसे सभी विद्यार्थी स्वयं नहीं करते बल्कि कुछ विद्यार्थी ही करते हैं। शेष विद्यार्थी उसकी अभ्यास पुस्तिका से देखकर अपने मस्तिष्क का प्रयोग किए बिना उस कार्य को अपनी अभ्यास पुस्तिका में ज्यों का त्यों उतार देते हैं। यदि पहली अभ्यास - पुस्तिका में किए गए गृह कार्य में कोई भी त्रुटि है तो वह त्रुटि सभी अभ्यास पुस्तिकाओं में भी देखने को मिलेगी क्योंकि अन्य अभ्यास पुस्तिकाओं में वह कार्य को मस्तिष्क में गुजरे बिना अधिकतर ज्यों का त्यों पहुंच जाता है फिर तो उस विद्यार्थी की अभ्यास पुस्तिका पहली अभ्यास पुस्तिका की प्रति ही होती हैं। सर, यदि पहली अभ्यास पुस्तिका पर गृह कार्य करने वाले विद्यार्थी ने कुछ लिखा है और लिखने में अस्पष्टता होने पर अगली अभ्यास पुस्तकों में उस अस्पष्टता की वजह से और अधिक त्रुटियां देखने को मिलती हैं। फिर इस प्रकार दिए गए गृहकार्य करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता बल्कि मैं तो यह कहूंगा इस तरह अध्यापक की ओर से जो भी गृहकार्य करने के लिए लिए दिया जाता है विद्यार्थी इस गृह कार्य को स्वयं न करके किसी दूसरे के द्वारा किए गए गृह कार्य को उसकी अभ्यास पुस्तिका से अपनी अभ्यास पुस्तिका में केवल नकल करके लिख लेने मात्र से गृह कार्य देना और किया जाना बिल्कुल भी अर्थपूर्ण नहीं रहता। मैं चाहूंगा कि गृह कार्य किस उद्देश्य से दिया जाता है और इसको करने से विद्यार्थियों का किस प्रकार विकास होता है । सीखने - सिखाने की प्रक्रिया में गृहकार्य दिया जाने का उद्देश्य और महत्त्व क्या है? इसके बारे में बहन प्रीति बेहतर ढंग से पूरी कक्षा को समझाएं।

मेरी स्वीकृति के उपरांत प्रीति ने समस्त कक्षा को गृह कार्य दिए जाने के मूल उद्देश्य को समझाने का प्रयास प्रीति ने किया। प्रीति ने समस्त कक्षा को समझाया कि गृह कार्य इस उद्देश्य से दिया जाता है कि दिए गए गृह कार्य को जब घर पर विद्यार्थी स्वयं करेगा तो उसे विधिवत उस पाठ को एक से अधिक बार पढ़ कर उन प्रश्नों के उत्तर अपनी पाठ्य पुस्तक से ढूंढने पड़ेंगे । इस प्रक्रिया में प्रत्येक विद्यार्थी पाठ्य पुस्तक से उस पाठ को कई बार दोहराएगा चूंकि प्रश्नों के उत्तर पाठ्य पुस्तक से ज्यों के त्यों ना मिल सकेंगे। प्रश्न की मांग के अनुसार उस तथ्य के प्रस्तुतीकरण में विद्यार्थी का भाषाई विकास भी बेहतर ढंग से होगा। एक ही प्रश्न कई प्रकार से पूछा जा सकता है। एक प्रश्न विविध प्रकार से पूछने पर उसमें प्रश्न के विभिन्न रूपों की समझ का विकास होगा । पाठ्य पुस्तक में विषय वस्तु को जिन वाक्यों के रूप में दिया गया है उन वाक्यों के विन्यास में परिवर्तन करने पर भाषाई विकास निश्चित रूप से होगा।जिस प्रकार बहुत सारे सहपाठी केवल डांट से बचने के उद्देश्य से नकल करके अध्यापक को काम दिखा देते हैं इसमें स्वयं परिश्रम न करके दूसरे का केवल अनुकरण और अनुसरण की प्रवृत्ति का विकास हो रहा है यह औचित्य रहित और त्रुटिपूर्ण है ।इसमें गृह कार्य दिए जाने की मूल भावना का महत्त्व नगण्य हो जाता है क्योंकि अधिकांश विद्यार्थियों की इस अपेक्षित क्षमता का विकास हो ही नहीं पाता।

मेरे यह कहने पर कि इस समस्या का मूल कारण क्या है और इसका निराकरण किसके पास है? तो मेरे इस प्रश्न के जवाब में श्रवण ने अनुमति लेकर बताना प्रारंभ किया। सर, इस समस्या का मूल कारण हम विद्यार्थियों की मानसिकता ही है। हम विषय -वस्तु को समझने का प्रयास नहीं करते। हम सबके अनुसार हमें दिए गए गृह कार्य का एकमात्र उद्देश्य रह जाता है कि विद्यार्थी इस दिए गृह कार्य को येन- केन -प्रकारेण किसी प्रकार पूरा करके अध्यापक को दिखा दें। यह पता नहीं लग पाता है कि यह उसने काम स्वयं किया  या किसी दूसरे से नकल करके पूरा किया गया है । विद्यार्थियों के द्वारा गृह कार्य पूरा करके कक्षा में दिखा देने के उपरांत संबंधित अध्यापक भी इस भ्रम में रहते हैं कि वह कक्षा में सभी विद्यार्थियों ने गृह कार्य कर लिया है तो वह प्रकरण कक्षा के समस्त विद्यार्थियों की समझ में आ गया है और इस प्रकरण को और अधिक समझाने की कोई आवश्यकता नहीं है। जबकि स्थिति पूरी तरह से अलग ही होती है कि कक्षा के विद्यार्थियों को वह प्रकरण समझ में आया भी नहीं होता है और वे गृह कार्य पूरा करके यह प्रमाण दे देते हैं कि प्रकरण पूरी कक्षा को समझ में आ चुका है। इसके निराकरण के लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि हम सब की मानसिकता में बदलाव आए ।घर पर भी हमारे माता - पिता खुद अपने आप या किसी प्राइवेट ट्यूटर के माध्यम से विद्यार्थियों का केवल गृह कार्य पूरा करवा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं ।विद्यार्थी भी चाहते हैं कि उनका गृह कार्य पूरा हो जाए जिससे कक्षा में उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी न उठानी पड़े । अध्यापकों की ओर से भी स्थिति यह है कि जब बच्चा काम पूरा करके ले आया है तो उनके पास इतना समय नहीं होता कि वह दोबारा यह जांच सकें कि बच्चे ने काम स्वयं किया या किसी ने इसको केवल पूरा करवा दिया ।बच्चे की पाठ्य- वस्तु की अवधारणा स्पष्ट हुई या नहीं।उसे प्रकरण ठीक से समझ में या नहीं आया इसकी जानकारी नहीं हो पाती। कहीं न कहीं कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या का अधिक होना और अध्यापकों के पास शिक्षण के अलावा दूसरी बहुत सारी जिम्मेदारियां होना भी इस पठन-पाठन की क्रिया को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।

अब मैंने ओमप्रकाश से इस समस्या के पूर्ण समाधान के बारे में सुझाव मांगा तो ओमप्रकाश ने बताना प्रारंभ किया कि कक्षा में प्रकरण को समझा देने के बाद कक्षा -कार्य के रूप में उस प्रकरण के अधिक से बिंदुओं का अभ्यास करवा दिया जाए और जो कार्य कक्षा- कार्य के रूप कक्षा में करवाया गया है उसी से मिलता-जुलता गृह कार्य घर से करने को दिया जाए। हम सब अपना गृह - कार्य केवल अपने आप ही करें । यदि हम घर पर अपना गृह कार्य करते समय किसी कठिनाई का अनुभव करते हैं तो हम ऐसे व्यक्ति से ही अपने गृह कार्य को समझने में मदद लें जो हमें भली-भांति समझा दे लेकिन हम अपना कार्य स्वयं ही करें। हम किसी से भी कहीं पर कोई समस्या होने पर उसका मार्गदर्शन ले सकते हैं। उस प्रकरण को दोबारा समझ सकते हैं लेकिन गृह कार्य किसी दूसरे के द्वारा न करवा कर स्वयं अपने आप ही करें । इससे हम प्रकरण को ठीक से समझ पाएंगे और तब ही हमारा अध्ययन अर्थपूर्ण रह पाएगा और हम अगले प्रकरण को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे ।हम सब जानते हैं कि कोई भी प्रकरण पिछले प्राप्त ज्ञान को और आगे बढ़ाता है ।यदि हमने पहला प्रकरण की ठीक से समझ नहीं पाया है तो हमें अगला प्रकरण समझ में या तो आएगा ही नहीं या आएगा तो आधा अधूरा या बहुत अधिक कठिनाई के साथ आ पाएगा। इसके लिए हमें पहले वाले प्रकरण को दोबारा समझना ही पड़ेगा । तो क्यों न हमारे द्वारा जब गृह कार्य किया जाए उसी समय उस प्रकरण को कई बार दोहरा कर उसे भली-भांति समझ लिया जाए ताकि किसी प्रकार की कठिनाई से हम बच सकें । यदि हमें कोई प्रकरण या पाठ्यवस्तु ठीक से समझ न आती हो अध्यापक को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए ताकि वे इसे दुबारा नई रणनीति के अनुसार दुबारा समझा देंगे।

हसनैन भी ने भी इन सबसे पूरी तरह सहमति जताई।उसने कहा कि मेरे मत के अनुसार इसमें कुछ भी और नया तथ्य जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।

जब मैंने समस्त कक्षा को एक प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा तो समस्त कक्षा एक स्वर में बोली कि हम सब भविष्य में अपना गृह कार्य स्वयं करेंगे । यदि कार्य करने में यदि कोई समस्या आती है तो हम केवल उस विषय वस्तु को केवल समझने में ही किसी दूसरे की मदद लेंगे लेकिन हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। समस्त कक्षा के द्वारा इस स्वीकारोक्ति के बाद समस्त मॉनिटर आश्वस्त नजर आए और मैं स्वयं भी आश्वस्त था कि अब सचमुच इस समस्या का निराकरण हो चुका है।


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