Kumar Vikrant

Others

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कैदी सुधार कार्यक्रम

कैदी सुधार कार्यक्रम

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कल्लन जेब कतरे को फिर से अपनी जेल में आया देख जेलर मलखान सिंह को ज्यादा आश्चर्य न हुआ क्योकि वो जेल का रेगुलर पंछी था। जेल में अपनी सजा काट कर वो महीने दो महीने बाद फिर जेब काटता हुआ, चोरी करता हुआ पकड़ा जाता और फिर उसे जेल भेज दिया जाता।

'तो इस बार सिर्फ छह महीने के मेहमान बन कर आए हो, ये बहुत ही अच्छी बात है। जाओ ऐश करो जेल की रोटियां तोड़ो।' कहते हुए जेलर ने उसे उसकी बैरेक और कोठरी अलॉट कर दी।

'क्या टेंसन लेना जेलर साहब ये जेल तो अपनी ससुराल है यहाँ तो अपना आना-जाना लगा ही रहता है।' कल्लन हँसते हुए बोला।

'तो ले मजे ससुराल के।' कहते हुए जेलर ने संतरियों को कल्लन को उसकी बैरेक में ले जाने का इशारा किया।

कल्लन अंगड़ाई तोड़ता हुआ, सिटी बजाता हुआ, सिपाहियों को सलाम करता हुआ और जान पहचान के कैदियों को आँख मारता हुआ अपनी बैरेक की तरफ बढ़ चला। दिन के समय सभी कैदी अपनी कोठरियों से निकलकर बैरेक में इधर-उधर घूम रहे थे।

'जग्गू तेरी बैरक में एक नया मुर्गा आया है, गौर से देख ले।' कल्लन को बैरेक में लेकर आये संतरियों में एक ने बैरेक के बरामदे में बैठे एक कद्दावर कैदी की तरफ देखते हुए कहा।

वो कद्दावर कैदी जग्गू पहलवान बैरेक के बरामदे में बिछी चटाई पर फ़ैल कर बैठा हुआ था। दो कैदी उसके पैर दबा रहे थे, दो हाथ दबा रहे थे, एक उसके बालो की मालिश कर रहा था और चार कैदी हाथ में पंखे लिए उसे हवा कर रहे थे।

जग्गू ने कल्लन की तरफ घूर कर देखा और फिर संतरियों से कहा, 'यह तो कोई छँटा हुआ बदमाश लगता है, कोई बात नहीं यहाँ रहकर सुधर जाएगा………..छोकरों चलो पहले इसे जेल के अखाड़े में ले चलो; अखाड़े में ही फैसला होगा कि यह सिर पर बैठाने लायक है या जूतों के ढेर में बैठने लायक है।'

बात की बात जग्गू दादा के चमचों ने कल्लन का हाथ पकड़ लिया और उसे घसीटते हुए जेल अखाड़े की तरफ ले चले।

अखाडा बैरेक के दाहिनी तरफ खुले मैदान में था जो जग्गू पहलवान ने अपने चेलो से खुदवाया था। जेल की उस बैरेक में रहने वाले कैदियों के लिए अखाड़े के बारे में एक सामान्य नियम था, जग्गू पहलवान को कुश्ती में हरा दो और फिर जेल में जग्गू के बगल में बैठ कर ऐश करो और अगर हार गए तो सलामती इसी में थी की जग्गू पहलवान की गुलामी स्वीकार कर लो, जो वो कहे करते रहो और जिंदा रहते रहो।

बैरेक का हर कैदी जग्गू पहलवान से उसके अखाड़े में हार चुका था और अपने हाथ पैर टूटने के डर से जग्गू पहलवान की गुलामी स्वीकार कर चुका था।

'चल अब अपने कपड़े उतार कर जग्गू उस्ताद के साथ कुश्ती के लिए तैयार हो जा, जीत गया तो तू ही बैरक का बादशाह और हार गया तो हमेशा के लिए जग्गू उस्ताद का गुलाम।' मुखिया जो जग्गू पहलवान का ख़ास आदमी था, ने कल्लन को अखाड़े की उबड़-खाबड़ मिट्टी में धक्का देते हुए कहा।

कल्लन सामान्य डील-डोल का इकहरे शरीर का इंसान था वो ताकतवर तो था लेकिन एक कद्दावर पहलवान से कुश्ती लड़ना उसके बस की बात नहीं थी इसलिए वो रिरिया कर बोला, 'जग्गू उस्ताद ये सब कानून के खिलाफ है, तुम मुझे जबरदस्ती कुश्ती नहीं लड़ा सकते हो। मैं जेलर से शिकायत करूँगा।'

'बेटे कुश्ती तो तुझे लड़नी पड़ेगी, चाहे हँसकर लड़ या रोकर। कुश्ती के बाद जेलर से, जेलर के बाप जिससे तेरी तमन्ना हो शिकायत कर देना।' जग्गू पहलवान ने अखाड़े में उतरते हुए कहा।

कल्लन ने अखाड़े से भागने की कोशिश की लेकिन जग्गू ने उसे अड़ंगी लगाकर जमीन पर गिरा दिया। उसके बाद पूरे पाँच मिनट जग्गू पहलवान ने कल्लन पर कुश्ती के सारे पैतरे और दाँव आजमाए।

ये सब कल्लन की बर्दाश्त करने की क्षमता से बाहर था वो दहाड़े मारकर रोते हुए बोला, 'जग्गू उस्ताद तू मेरा बाप है, मैं तेरा गुलाम हूँ तू जो कहेगा वो करूँगा लेकिन अब और कुश्ती नहीं।'

उसकी इस दारुण पुकार के बाद भी जग्गू पहलवान ने उसे तीन चार बार और धोबी पाट मारी और उसके शरीर के अंजर पंजर ढीले कर दिए।

'चल छोड़ दिया तुझे, आज से तू मेरा पंखा बन जा जब भी जेल के लाइट गुल हो तेरा काम है मेरे ऊपर पंखा करना, जरा भी लापरवाही हुई तो यही अखाड़े में फिर तुझपर बचे हुए कुश्ती के दांव लगाऊँगा।' जग्गू पहलवान ने अपने बदन की मिट्टी झाड़ते हुए कहा।

'समझ गया बाप, मैं तेरा २४ घंटे का गुलाम बन गया………मुझे बख्श दे।' कल्लन दहाड़े मारकर रोते हुए बोला।

उसके बाद जग्गू पहलवान ने उसी दिन उसके हाथ में पंखा थाम दिया। जेल ग्रामीण क्षेत्र में थी इसलिए गर्मी के मौसम में बिजली की सप्लाई सिर्फ आठ घंटे थे वो भी पंद्रह दिन रात में और पंद्रह दिन दिन में।

जेल में जब भी बिजली गुल होती कल्लन पंखा लेकर जग्गू पहलवान को हवा करने लगता। रोज लगातार १६ घंटे पंखा चलाने से उसके बाजु दर्द करने लगे थे। दिन हफ्तों में बदले और हफ्ते महीनों में रहे कल्लन रोता-पीटता जग्गू पहलवान की मार से बचने के लिए उसे हवा करता रहा। एक दो बार उससे हवा करने में कुछ लापरवाही हुई जिसका खामियाजा उसने जग्गू पहलवान से जेल के अखाड़े में पिट कर भुगता।

कल्लन ने रोते पीटते छह महीने गुजारे और उसकी सजा खत्म हुई।

'बेटे मुझे तो अभी चार साल और इस जेल में काटने है, तू साथ रहता तो मस्त जिंदगी गुजरती अब तू जा रहा है तो जब तक तू वापिस जेल में नहीं आता तब तक तेरा काम किसी और से करा लेता हूँ।' जग्गू पहलवान ने कल्लन के रिहा होने वाले दिन दुखी मन से कहा।

'हाँ उस्ताद मुझे तेरी सेवा करके बहुत सुख मिला है, बहुत जल्दी फिर तेरी सेवा में हाजिर हो जाऊँगा।' कहते हुए कल्लन ने जग्गू पहलवान के पैर छुए और उससे विदाई ली।

'कल्लन आज तो तुम जा रहे हो लेकिन ये जेल तो तुम्हारी ससुराल है………फिर आना।' जेलर मलखान सिंह ने कल्लन की रिहाई के कागजात उसे देते हुए कहा।

'मेरे बाप की तौबा जो इस जेल के दरवाजे की तरफ भी देखूं……….मजदूरी कर रूखी-सूखी खा लूंगा लेकिन अब और जेल यात्रा नहीं।' कहते हुए कल्लन ने जेलर को नमस्ते कर जेल से विदा ली।

दो साल बाद 

जेलर मलखान सिंह को अचानक विल सिटी स्थित अपने हेड ऑफिस में कई दिन जाना पड़ा। ऑफिस का काम खत्म कर वो चाय पीने के लिए सड़क पर निकला तो टहलता हुआ मक्खन हलवाई की दुकान के सामने पड़ी बेंच पर जा बैठा और एक मैले कुचैले से लड़के को एक फीकी लेकिन कड़क चाय लाने को कहा।

तभी जेलर का ध्यान हलवाई के दुकान के झूठे बर्तन साफ़ करते एक फटेहाल इंसान पर पड़ी वो इंसान उसे कुछ जाना पहचाना सा लगा।

'नमस्ते जेलर साहब………धन्य भाग मेरे जो मुझ गरीब की दुकान पर आपके कदम पड़े।' कहते हुए दुकान का मालिक मक्खन हलवाई जेलर के सामने आ खड़ा हुआ और बोला, 'हुजूर आपने जेल में कोई कैदी सुधार प्रोग्राम चला रखा है क्या?'

'नहीं………' मलखान सिंह ने जवाब दिया।

'हुजूर आप बताना नहीं चाहते हो तो मत बताओ लेकिन सामने वो जो मरियल सा आदमी दुकान के झूठे बर्तन माँझ रहा है न वो आपकी जेल का रेगुलर कैदी कल्लन है, हुजूर जिस दिन से जेल से आया है उसी दिन से मेरी दुकान के झूठे बर्तन माँझ कर अपना जीवन जी रहा है। कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देता। धन्य हो आप जेलर साहब जो आपने ऐसे मक्कार आदमी को सुधार दिया नहीं तो ये तो कुत्ते की वो दुम थी जिसे सीधा करना किसी के बस की बात नहीं थी।' मक्खन विनम्रता पूर्वक बोलते हुए कल्लन की तरफ देखते हुए कड़क आवाज में बोला, 'कल्लन के बच्चे देख तेरे माई बाप जेलर साहब आए है, चल पैर छू इनके, आज तू इनकी वजह से ही इंसान बन सका है।'

कल्लन ने दौड़कर जेलर के पैर छूए और फिर अपने काम पर लग गया।


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