जुगनू
जुगनू
कुछ तो है खास आज इस शाम में।ऑफिस के व्यस्त रूटीन से टाइम निकाल कर इतने साल के बाद इस बार वह गाँव आयी थी।
आज शाम गाँव के बाहर वह पैदल ही घूमने के लिए निकली थी।वापसी में रात गहरा गयी।यहाँ शहर जैसे हालात नहीं लग रहे थे,सब कुछ शांत था।
गावँ में उसे अब जुगनू भी दिखने लगे थे।कितने सालों के बाद उसे जुगनू देखने का मौका मिला था।बचपन की जुगनू पकड़ने की यादेँ उसके जहन में ताजा हो गयी।
शहर में जिंदगी रोशनी की चकाचौंध में सराबोर होती है।वहाँ कैसे जुगनू होंगें भला?इतनी चकाचौंध में वहाँ जुगनू की क्या कोई जरूरत भी है?
आज इतने साल बड़े बड़े भीड़भाड़ वाले शहरों में रहने के बाद और वहाँ के 'अकेलेपन' से भागकर वह अपने गाँव चली आयी है।गाँव के लोगों से अपनापन और प्यार भी बहुत मिला।
शहरों की चकाचौंध से उसे जुगनू की रोशनी ज्यादा भा गयी.....