Priyanka Gupta

Others

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जन्नत day-29

जन्नत day-29

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स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अक्सर सुनाई दे जाने वाला गीत 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिन्दुस्तान की " अपने आप में एक सन्देश भी प्रसारित करता है कि हिन्दुस्तान की झाँकी दर्शनीय है।  भौगोलिक विविधता वाले इस देश में कहीं रेगिस्तान है, कहीं युवा और विशाल पहाड़ हैं, कहीं विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रेणी है, कहीं पठार है, कहीं डेल्टा है, कहीं नदी द्वीप है, कहीं कोरल द्वीप है, कहीं सागर है।  भारत में ही पेरिस का मज़ा लेना है तो जयपुर घूम सकते हैं, वेनिस के लिए उदयपुर, स्विट्ज़रलैंड के लिए खजियार ,चिकमंगलूर और वेगमन, स्कॉटलैंड के लिए मेघालय, नियाग्रा प्रपात के लिए धुआँधार प्रपात।  

अपने दोस्तों के मध्य यायावर के नाम से प्रसिद्ध हूँ, यात्रा की शौकीन जो हूँ।  यात्रा हमारे दिमाग की खिड़कियों को खोलती है, हमारे कई पूर्वाग्रहों को दूर करती है, जिंदगी जीने के नए सलीके सिखाती है,  एक लेखक को लिखने के लिए विविध विषय उपलब्ध करवाती है।  विविधता में एकता वाले भारत देश में तो यात्रा का महत्व और बढ़ जाता है।  एक -दूसरे की संस्कृति को समझने के लिए वहाँ जाना जरूरी है, इसीलिए तो भारत सरकार ने 'एक भारत ,श्रेष्ठ भारत ' योजना का प्रारम्भ किया है।  

भारत के सुदूर दक्षिण पश्चिम में स्थित कोरल द्वीप लक्षद्वीप समूह के बारे में बहुत सुना था, दिल में एक बार वहाँ जाने की ख़्वाहिश ने जन्म ले लिया था। यात्रा करने के लिए धन तो चाहिए होता ही है, लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक समय होता है।  

कोरोना ने तो हमारे आने -जाने पर और अधिक प्रतिबन्ध लगा दिए हैं।  अब समय और धन के साथ कोरोना के बारे में भी सोचना पड़ता है।  कोरोना के दौरान ही मलयालम सिनेमा से भी दोस्ती हुई।  वायरस, प्रेमम, बैंगलोर डेज आदि कई मलयालम फिल्में देखी।  तब ही पृथ्वी की मलयालम फिल्म अनारकली भी देखी।  यह फिल्म लक्षद्वीप में ही फिल्माई गयी है, इसके खूबसूरत दृश्यों ने लक्षद्वीप जाने की इच्छा को और बलवती कर दिया था।  

अब यह तय कर लिया था कि लॉक डाउन समाप्त होते ही लक्षद्वीप जाना है। लक्षद्वीप समूह में जाने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है, यहाँ तक कि वहाँ डिप्लोमैटिक पासपोर्ट पर भी जाने की अनुमति नहीं है, केवल टूरिस्ट वीजा पर भी विदेशी यात्री घूमने जा सकते हैं। रणनीतिक और पर्यावरणीय कारणों से सीमित संख्या में ही यात्री लक्षद्वीप में प्रवेश क लिए अनुमत किये जाते हैं। भारत का यह केन्द्र शासित प्रदेश 36 कोरल द्वीपों का द्वीप समूह है। इन 36 में से केवल 10 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं, बाकी के द्वीप निर्जन हैं। इस प्रदेश की राजधानी कवारत्ती है। लक्षद्वीप तक या तो हवाई जहाज से जा सकते हैं या पानी के जहाज से।

लक्षद्वीप के लिए दिन भर में एयर अलायन्स की केवल एक फ्लाइट चलती है।  यह फ्लाइट कोचीन से चलती है।  वैसे यह फ्लाइट बैंगलोर वाया कोचीन होते हुए लक्षद्वीप के अगात्ती द्वीप तक जाती है।  अगात्ती द्वीप पर ही लक्षद्वीप का एकमात्र छोटा सा एयरपोर्ट है।  मेरी यात्रा की शुरुआत कोचीन से हुई।  कोचीन एयरपोर्ट विश्व का प्रथम और भारत का एकमात्र सौर ऊर्जा से संचालित हरित एयरपोर्ट है।  इस एयरपोर्ट के निर्माण में पारम्परिक तकनीकी का उपयोग किया गया है।  शीशे के कम से कम उपयोग के कारण ऊर्जा संबंधी जरूरतें भी कम हो जाती हैं।  एयरपोर्ट जाते हुए, रास्ते में बहुत सारे सोलर पैनल दिख जाते हैं।  

अगात्ती द्वीप तक छोटा 2 x 2 की फ्लाइट जाती है। अगात्ती द्वीप पर जब फ्लाइट ने लैंड किया, तब बिना किसी बस और एयर ब्रिज के पैदल ही एयरपोर्ट तक जाते हैं।  एयरपोर्ट पर पहुँचने के बाद, स्पीड बोट आदि के जरिये यात्री और स्थानीय लोग विभिन्न द्वीपों यथा बंगाराम ,कवारत्ती ,क़दामात ,मिनिकॉय आदि तक जाते हैं।  मैं बंगाराम द्वीप पर जा रही थी।  बंगाराम द्वीप पर स्पोर्ट्स (सरकारी प्राधिकरण जो पर्यटन से संबंधित सभी गतिविधियाँ देखता है ) का एक रिसोर्ट है, जिसमें 24 कमरे हैं।  स्पीड बोट से हमें बंगाराम रिसोर्ट पर ले जाया गया।  स्पीड बोट से रिसोर्ट तक जाते हुए ,हमने ३-४ टर्टल देखें।  स्पीड बोट पर हमारे अलावा 2 युगल और थे।  हम सभी टर्टल देखकर बहुत उत्साहित थे।  टोरटॉइज जमीन पर रहते हैं, जबकि टर्टल समंदर में रहते हैं और केवल अन्डे देने के लिए जमीन पर जाते हैं।  

कुछ दूर जाने पर हमें डॉल्फिन समंदर में अठखेलियाँ करते हुए दिखाई दी।  कहते हैं डॉल्फिन एक दूसरे से संवाद करती हैं और संवाद क लिए एक व्हिस्ल जैसी आवाज़ उत्पन्न करती हैं।  यह एक बहुत ही मधुर संगीत होता है और नींद लाने के लिए दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संगीत माना जाता है।  यात्रा का बहुत ही अच्छा आगाज़ हो चुका था, अपने ड्रीम प्लेस पर खुद को पाकर मैं सातवें आसमान पर थी।  समंदर छिछला होता जा रहा था, द्वीप क निकट पानी एकदम स्वच्छ था, पानी में कोरल और मछलियाँ दिखाई दे रही थी।  हम बंगारम रिसोर्ट की जेट्टी पर पहुँच गए थे, बीच, सफ़ेद मिट्टी वाला बीच था। रिसोर्ट के मैनेजर ने हम सभी का स्वागत करते हुए कहा कि ,"वेलकम टू पैराडाइस। "

उस समय मुझे उनकी बात अतिश्योक्ति लगी थी, लेकिन यात्रा के अंत में मैं खुद कह रही थी कि मैं अभी जन्नत से लौटी हूँ।  लक्षद्वीप पर न तो फ़ोन चलते हैं और न ही टेलीविज़न।  यहाँ आप अकेलापन नहीं एकान्त को महसूस करते हैं।  यहाँ से हम तिन्नीकरा द्वीप पर भी गए, वहाँ एक प्रकाश स्तम्भ है।  लक्षद्वीप के लोगों की ज़िन्दगी थोड़ी मुश्किल है क्यूँकि यहाँ पर केवल नारियल और मछली ही उत्पन्न होती है, बाकी सब वस्तुएँ मुख्य भूमि से मँगाई जाती हैं।  लेकिन यहाँ के लोग काफी विनम्र हैं।  

समंदर के अंदर की एक बेहद खूबसूरत दुनिया से मेरा परिचय यहीं पर आकर हुआ।  इंद्रधनुष से भी अधिक रंगों वाले कोरल देखने को मिले।  मछलियाँ, ऑक्टोपस ,केकड़े आदि अनेक जीवों का घर है ये कोरल। समंदर सीपियाँ आदि अपनी धाराओं द्वारा लौटाता है।  कहते हैं कि समंदर कभी किसी का कुछ नहीं रखता, वह जो किसी एक किनारे पर निगलता है, वही दूसरे किनारे पर उगल भी देता है।  

शांत और गहरा समंदर आपको एहसास दिलाता है कि ,"जिंदगी में ठहराव का कितना अधिक महत्व है।  शान्ति और एकांत में ही हम ज़िन्दगी क महसूस कर सकते हैं। "

अगर आप शांति और सुकून की तलाश में हैं तो लक्षद्वीप से बढ़िया जगह कहीं नहीं मिलेगी। अगर आप सीमित साधनों में असीमित ख़ुशी चाहते हैं तो आपकी तलाश यहाँ आकर खत्म हो सकती है। अपने अंदर गहरे समंदर को समेटने की कोशिश करते हुए मैं जन्नत से लौट आयी थी।  


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