ज़मीर
ज़मीर


कल रात कई बार नींद टूटी हर बार ट्विंकल और उस जैसी बच्चियाँ याद आयीं, वह किशोरी, जलता हुआ आग का शोला, हार न मानकर चलती जा रही, अंधे कानून से न्याय की आस में जब तक होशो हवास में रही। मेरी संवेदना सोते हुए जाग रही थी।
"एक अच्छे होटल में चार लोगों के खाने के बिल से शायद किसी के महीने भर की रोटी चल सकती है।" यह विचार आते ही मैं इस संवेदना को झटक देती हूं, "ऊह,अपनी - अपनी किस्मत " कहकर। (ज़मीर तू ज़िंदा है ) ना, कोई जवाब नहीं मिलता।
कामवाली बाई चिलचिलाती धूप में नंगे पाँव आंगन बुहार रही है, उसकी आठ वर्ष की नन्ही बच्ची पोंछा लगा रही है। मेरी बेटी सोफे पर पैर फैलाए वीडियो गेम खेल रही है।(ज़मीर सर उठाना चाहता है )फिर वही, उंह !
कल ही बेटे ने मॉल से ब्रांडेड सूट खरीदा, बहू ने डिजाइनर साड़ियाँ, बाहर निकले, गाड़ी के पास चिथडों में खड़ी भिखारिन को बेटे ने दुत्कार कर परे हटने को कहा। (ज़मीर ने कचोटा) ।
दावत के बाद फेंकी गई प्लेटों पर झपटते भूखे बच्चों और कुत्तों की छीना झपटी देखकर, ज़मीर ने फिर गर्दन उठाई, बमुश्किल मैने दूसरी ओर घुमाई।
कल मैने पढ़ा एक और छोटी बच्ची का रेप और क़त्ल हुआ, मैं बहुत दुखी हुई, मुझे रात ठीक से नींद नहीं आई, बार - बार उसका चेहरा आँखों के सामने आ रहा था।
मैने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वह मेरी बच्ची नहीं थी।(मेरा ज़मीर शायद पूरी तरह मर चुका था)